सरसंघचालक की न्याय से टूटी आस, कहा- राम मंदिर निर्माण को कानून लाए मोदी सरकार
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नागपुर : राम मंदिर निर्माण को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने केंद्र की मोदी सरकार से अपील की है कि वह कानून बनाकर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करे। राम मंदिर का निर्माण स्वगौरव की दृष्टि से जरूरी है और मंदिर बनने से देश में सद्भावना एवं एकात्मता का वातावरण बनेगा। सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या को लेकर 29 अक्टूबर 2018 से शुरू होने वाली सुनवाई से ठीक पहले सरसंघचालक का यह बयान न्याम में उनके अविश्वास को दर्शाता है।
विजयादशमी के अवसर पर नागपुर के रेशमबाग में अपने सालाना समारोह को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा, राम जन्मभूमि स्थल का आवंटन होना बाकी है, जबकि साक्ष्यों से पुष्टि हो चुकी है कि उस जगह पर एक मंदिर था। राजनीतिक दख़ल नहीं होता तो मंदिर बहुत पहले बन गया होता। हम चाहते हैं कि सरकार कानून के जरिये राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे। उन्होंने कहा, राष्ट्र के स्व गौरव के संदर्भ में अपने करोड़ों देशवासियों के साथ श्रीराम जन्मभूमि पर राष्ट्र के प्राणस्वरूप धर्म मर्यादा के विग्रहरूप श्रीरामचंद्र का भव्य मंदिर बनाने के प्रयास में संघ सहयोगी है। श्रीराम मंदिर का बनना स्वगौरव की दृष्टि से आवश्यक है। मंदिर बनने से देश में सद्भावना व एकात्मता का वातावरण बनेगा।’
सरसंघचालक ने कहा कि कुछ तत्व नई-नई चीजें पेश कर न्यायिक प्रक्रिया में दखल दे रहे हैं और फैसले में रोड़े अटका रहे हैं। बिना वजह समाज के धैर्य की परीक्षा लेना किसी के हित में नहीं है। आरएसएस प्रमुख ने कहा, राष्ट्रहित के इस मामले में स्वार्थ के लिए सांप्रदायिक राजनीति करने वाली कुछ कट्टरपंथी ताकतें रोड़े अटका रही हैं। राजनीति के कारण राम मंदिर निर्माण में देरी हो रही है।
भागवत ने माओवादियों पर निशाना साधते हुए कहा कि माओवाद की प्रकृति हमेशा से शहरी रही है और शहरी नक्सलियों के नव-वामपंथी सिद्धांत का मक़सद एक राष्ट्रविरोधी नेतृत्व स्थापित करना है जिनके पीछे उनके लिए प्रतिबद्ध अंधप्रशंसक खड़े हों। उन्होंने आरोप लगाया कि शहरी माओवाद समाज में नफरत और गलत चीजों को बढ़ावा दे रहा है। भागवत ने कहा, दृढ़ता से वन प्रदेशों में अथवा अन्य सुदूर क्षेत्रों में दबाए गए हिंसात्मक गतिविधियों के कर्ता-धर्ता एवं पीछे रहकर समर्थन करने वाले अब शहरी माओवाद के पुरोधा बनकर राष्ट्रविरोधी आंदोलनों में अग्रपंक्ति में दिखाई देते हैं।
सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से भागवत का इंकार
सबरीमला मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं और लड़कियों के प्रवेश की अनुमति दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरफ इशारा करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा कि 10 से 50 साल तक की लड़कियों एवं महिलाओं के सबरीमला मंदिर में प्रवेश पर मनाही की परंपरा बहुत लंबे समय से थी और इसका पालन किया जा रहा था। भागवत ने कहा, सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल करने वाले वे लोग नहीं हैं जो मंदिर जाते हैं। महिलाओं का एक बड़ा तबका इस प्रथा का पालन करता है। उनकी भावनाओं पर विचार नहीं किया गया। भागवत ने कहा कि फैसला दोषपूर्ण है क्योंकि इसमें सभी पहलुओं पर विचार नहीं किया गया और इसलिए इसे सहजता से स्वीकार नहीं किया जाएगा। विजयादशमी के मौके पर राष्ट्रीय स्वंयसेवकों को संबोधित करते हुए सरसंघचालक ने कहा, सर्वोच्च न्यायालय के 28 सितंबर के फैसले की वजह से सबरीमाला में बुधवार को जो स्थिति दिखाई दी, उसका कारण सिर्फ यह है कि समाज ने उस परंपरा को स्वीकार किया था और लगातार कई सालों से पालन होती आ रही परंपरा पर विचार नहीं किया गया। उन्होंने कहा, लैंगिक समानता का विचार अच्छा है। लेकिन इस परंपरा का पालन कर रहे अनुयायियों से चर्चा की जानी चाहिए थी। करोड़ों भक्तों के विश्वास पर विचार नहीं किया गया।
देश के रक्षा बलों को सशक्त बनाने एवं पड़ोसियों के साथ शांति स्थापना के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर देते हुए मोहन भागवत ने पाकिस्तान का नाम लिए बगैर कहा कि वहां नई सरकार आ जाने के बावजूद सीमा पर हमले बंद नहीं हुए हैं। भारत की विदेश नीति हमेशा शांति, सहिष्णुता और सरकारों से निरपेक्ष मित्रवत संबंधों की रही है। आरएसएस प्रमुख ने यह भी कहा कि रक्षा उत्पादन में पूर्ण-आत्मनिर्भरता के बगैर भारत अपनी सुरक्षा को लेकर आश्वस्त नहीं हो सकता। देश को अंतरराष्ट्रीय बाजार से अपनी शर्तों पर रक्षा उपकरण खरीदना चाहिए। रक्षा उत्पादन पर भागवत की टिप्पणी अहम है क्योंकि मुख्य विपक्षी कांग्रेस फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए हुए करार को लेकर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर लगातार हमलावर है।
समाज के हर तबके के सम्मान पर जोर देते हुए संघ प्रमुख ने कहा, हमारी पहचान हिंदू है जो हमें सबका आदर करना, सबको स्वीकार करना, सबसे मेल-मिलाप रखना और सबका भला करना सिखाती है। इसलिए संघ हिंदू समाज को संगठित व अजेय सामर्थ्य संपन्न बनाना चाहता है और इस कार्य को संपूर्णत: संपन्न करके रहेगा। भागवत ने देश की जनता का आह्वान करते हुए कहा कि संघ के स्वयंसेवकों के साथ इस पवित्र ईश्वरीय कार्य में सहयोगी व सहभागी बनते हुए हम सब मिलकर भारत माता को विश्वगुरु पद पर स्थापित करने के लिए भारत के भाग्यरथ को अग्रसर करें।
भागवत ने कहा कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्गों के लिए बनी हुई योजनाएं, उप-योजनाएं और कई प्रकार के प्रावधान समय पर तथा ठीक तरह से लागू करने को लेकर केंद्र एवं राज्य सरकारों को अधिक तत्परता और संवेदना का परिचय देने की एवं अधिक पारदर्शिता बरतने की आवश्यकता है। भागवत ने यह भी कहा, अपनी सेना तथा रक्षक बलों का नीति धैर्य बढ़ाना, उनको साधन-संपन्न बनाना, नई तकनीक उपलब्ध कराना आदि की शुरुआत हुई है और उनकी गति बढ़ रही है। दुनिया के देशों में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ने का यह भी एक कारण है। चुनावों के दौरान ईवीएम में नोटा (उपरोक्त में से कोई नहीं) के विकल्प का इस्तेमाल करने वाले मतदाताओं से की गई अपील में भागवत ने कहा, चुनाव में मतदान न करना अथवा नोटा के अधिकार का उपयोग करना, मतदाता की दृष्टि में जो सबसे अयोग्य उम्मीदवार है उसी के पक्ष में जाता है, इसलिए राष्ट्रहित सर्वोपरि रखकर 100 प्रतिशत मतदान आवश्यक है।