एससी/एसटी एक्ट पर केंद्र सरकार ने डाली पुनर्विचार याचिका
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: SC/ST एक्ट को लेकर 2 अप्रैल को भारत बंद का आह्वान किया गया। देश के कई राज्यों में हिंसक प्रदर्शनों का दौर जारी है। विभिन्न राज्यों में पुलिस लाठीचार्ज और प्रदर्शनकारियों के मारे जाने की भी खबर है। इधर, केन्द्र सरकार ने स्थिति का भयावहता के मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर पुनर्विचार याचिका डाल दी है। जिस पर जवाब देते हुए कोर्ट ने कह दिया है कि मामले पर सुनवाई उचित समय पर की जाएगी।
याचिका दाखिल करने की जानकारी केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दी थी। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि सरकार कोर्ट के इस फैसले से सहमत नहीं है। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका में कहा गया है कि शीर्ष न्यायालय का आदेश अनुसूचित जाति (एसी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के प्रावधानों को कमजोर करेगा।
सरकार ने अपनी इस याचिका में ये भी कहा है कि हालिया आदेश से कानून का डर कम होगा और इस कानून का उल्लंघन बढ़ सकता है। शीर्ष न्यायालय ने इस कानून के तहत तुरंत होने वाली गिरफ्तारी और आपराधिक मामले दर्ज किए जाने को हाल ही में प्रतिबंधित कर दिया था।
केंद्र सरकार ने कहा कि SC/ST एक्ट पर जिस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया हैं उसमें सरकार पार्टी नहीं थी, जबकि संसद ने कानून बनाया था। केंद्र ने कहा कि कानून बनाना संसद का काम है। सरकार का मानना हैं कि 3 तथ्यों के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट कानून को रद्द कर सकता है। अगर मौलिक अधिकार का हनन हो, कानून गलत बनाया गया हो या कोई कानून बनाने का अधिकार संसद के अधिकार क्षेत्र में आता नहीं हो।
सरकार की ये भी दलील है कि कोर्ट ये नहीं कह सकता है कि कानून का स्वरूप कैसा हो क्योंकि कानून बनाने का काम संसद का है। साथ ही किसी भी कानून को सख्त बनाने का अधिकार भी संसद के पास ही है। वहीं केंद्र ने ये भी कहा कि समसामयिक जरूरतों की की पूर्ति के लिए कैसा कानून बने ये संसद या विधानसभा तय करती है।
देर से जागी सरकार
गौरतलब है कि देशभर में एक तरफ जहां न्यायालय के आदेश पर उंगलियां उठ रहीं हैं वहीं सरकार के फैसले के दौरान सटीक दलील ना पेश कर पाने पर भी सवाल खड़े हो रहें हैं। सरकार के ढुलमुल रवैये का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में 18 मार्च को संपन्न हुई कैबिनेट बैठक में इस मुद्दे को उठाया ही नहीं गया। वहीं भारत बंद को लेकर देशभर के दलित संगठनों की तरफ से बुलाए गए विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक दलों से मिल रहे समर्थन के बीच सरकार ने अपनी खामोशी तोड़ी और अपना तर्क कोर्ट में अब रखा।
ये हुआ है बदलाव
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी ऐक्ट के गलत इस्तेमाल पर चिंता जताते हुए इसके तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश सरकारी कर्मचारियों के मामले में था। लेकिन, कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर गैर-सरकारी किसी कर्मी से जुड़ा इस तरह का मामला सामने आए तो फिर उस मामले में सबसे पहले उस जिले के एसएसपी से मंजूरी लेनी पड़ेगी, तभी आरोपी को गिरफ्तार किया जा सकेगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद दलितों के हितों के संरक्षण को लेकर बनाए गए कानून अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के कमजोर होने की बात कही जा रही है। खासतौर से दलित संगठनों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले से दलितों की आवाज दबाई जाएगी. दलित संगठनों का गुस्सा इसी बात को लेकर है।