अनशन नहीं राजनीति होगी अब इरोम का हथियार
सत्ता विमर्श ब्यूरो
इंफाल: 16 साल से अनशन पर बैठी शर्मिला इरोम ने आखिरकार राजनीतिक तरीके से अपनी लड़ाई लड़ने का फैसला ले लिया है। इरोम, मणिपुर से विवादित सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) हटाने को लेकर साल 2000 से अनशन पर बैठी हैं।
मणिपुर की आयरन लेडी इरोम ने मंगलवार को घोषणा की कि वह नौ अगस्त को अपना अनशन समाप्त कर देंगी और राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ेंगी।
अब नहीं लगता अनशन है उपाय
एक स्थानीय अदालत से बाहर आते हुए 44 वर्षीय मानवाधिकार कार्यकर्ता ने मीडिया के समक्ष घोषणा की, 'मैं नौ अगस्त को अपना अनशन समाप्त कर दूंगी और चुनाव लड़ूंगी।' उन्होंने कहा कि अब उन्हें नहीं लगता कि उनके अनशन से कठोर आफ्सपा हट पाएगा -लेकिन वह लड़ाई जारी रखेंगी।
शर्मिला ने कहा कि इसलिए मैं राजनीति में आउंगी और मेरी लड़ाई जारी रहेगी। गौरतलब है कि मणिपुर में विधानसभा चुनाव 2017 में होना है।
क्या है अफस्पा?
अफस्पा सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून है। इसके तहत किसी भी व्यक्ति को संदेह होने पर बिना किसी सबूत के सेना मार सकती है और ऐसा करने पर सैन्यकर्मी के खिलाफ कोई केस भी नहीं चलाया जा सकता है। इस कानून का विरोध मणिपुर जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में ही नहीं बल्कि कश्मीर में भी होता रहा है।
इरोम के आयरन लेडी बनने की कहानी
2 नवम्बर 2000 को इम्फाल से 10 किलोमीटर दूर मालोम (मणिपुर) गांव में 10 निहत्थे नागरिकों को उग्रवादी होने के संदेह में असम राइफल्स के सैनिकों ने गोलियों से भून डाला था। इस निमर्म हत्या के विरोध में तीन दिन बाद इरोम अनशन पर बैठ गईं। मणिपुर के एक दैनिक अखबार हुये लानपाऊ की स्तंभकार और गांधीवादी 41 वर्षीय इरोम शर्मिला को 6 नवम्बर, 2000 को आत्महत्या के प्रयास के जुर्म में आई.पी.सी. की धारा 307 के तहत गिरफ्तार किया गया और 20 नवंबर 2000 को जबरन उनकी नाक में तरल पदार्थ डालने वाली नली डाली गई।
तब से ये सिलसिला जारी है। शर्मिला को इंफाल के जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में नाक में टयूब डालकर जबरन आहार दिया जाता है। इस अस्पताल का एक विशेष वार्ड उनकी जेल के रूप में काम करता है ।
उन्हें आत्महत्या की कोशिश के आरोप में बाऱ़-बार गिरफ्तार, रिहा और फिर गिरफ्तार किया जाता रहा है।
आप को कह चुकी हैं ना
लोकसभा चुनाव (2014) से पहले आम आदमी पार्टी ने इरोम चानू शर्मिला से अपनी पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव दिया था, जिसे इरोम ने ठुकरा दिया था।
यह पेशकश शर्मिला के समर्थकों द्वारा गठित जस्ट पीस फाउंडेशन के जरिये की गई थी जो कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (एएफएसपीए) निरस्त करने की मांग कर रहा है।
तब उनकी तरफ से बयान आया था कि वो राजनीतिक पार्टी में शामिल नहीं होना चाहती। उन्होंने कहा था कि वो किसी राजनीतिक पार्टी के साथ मिलकर नहीं बल्कि वह लोगों के साथ लगातार स्वतंत्र रूप से अपनी लड़ाई जारी रखने की ख्वाहिश रखती हैं।