'अभी चुनाव हुए तो गुजरात भी गंवा देगी भाजपा!'
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली/अहमदाबाद : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का गढ़ माना जाने वाला प्रदेश गुजरात भी भाजपा के हाथ से निकलता दिख रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के एक आंतरिक सर्वे पर अगर भरोसा करें तो यही खुलासा हो रहा है। इस सर्वे के मुताबिक अगर इस वक्त गुजरात में चुनाव करा दिए जाएं तो पार्टी को विधानसभा की 182 में से सिर्फ 60-65 सीटें ही मिल पाएंगी।
हालांकि आरएसएस ने ऐसे किसी भी सर्वे की बात से इनकार किया है और कहा है कि भाजपा खुद ऐसे सर्वे करवा सकती है। लेकिन मीडिया में भरोसेमंद सूत्रों के हवाले से आ रही खबरों के मुताबिक आरएसएस ने यह सर्वे दिखाकर ही गुजरात की पहली महिला मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को इस्तीफा देने के लिए तैयार किया और उन्होंने सोमवार को पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
दरअसल, आरएसएस और भाजपा ने राज्य में दलित आंदोलन के बाद यह सर्वेक्षण करवाया। सर्वे के लिए प्रदेश में काम कर रहे संघ प्रचारकों ने लोगों से इस बारे में फीडबैक लिया। सर्वे में यह तथ्य सामने आया है कि ऊना की हिंसक घटना के बाद दलितों ने भाजपा से दूरी बना ली है।
अखबार 'अहमदाबाद मिरर' के मुताबिक यह भी कहा जा रहा है कि पाटीदार आरक्षण और दलित आंदोलन की वजह से पार्टी की छवि को इतना गहरा नुकसान पहुंचा है कि 2017 के चुनावों में भाजपा का 18 सीटों पर भारी अंतर से चुनाव हारना तय है। सर्वे यह भी कहता है कि आने वाले समय में राज्य के आदिवासी भी अब सरकारी नौकरियों और भूमि आवंटन की प्रक्रिया में हिस्सेदारी की मांग लेकर आंदोलन कर सकते हैं।
आरएसएस इस बात को लेकर बेहद चिंतित है गुजरात में दलितों के समर्थन के लिए मुस्लिम समुदाय जबरदस्त तरीके से आगे आ रहे हैं। जबकि संघ दलितों को हिन्दुओं का हिस्सा मानता है और हिन्दुओं में दो ध्रुव का बनना आरएसएस कभी मंजूर नहीं करहेगा। पहले दलित कांग्रेस के प्रति समर्पित थे और संघ ने दो दशकों में कड़ी मेहनत के बाद उन्हें अपने साथ किया था। लेकिन ऊना हिंसा की एक गलती से सारा खेल बिगड़ता दिख रहा है। संघ इसको लेकर गंभीर है और इसलिए संघ पहली बार आज एक सामाजिक सद्भावना सम्मेलन करने जा रहा है।
आरएसएस सूत्रों का यह भी कहना है अमित शाह का नाम गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर सबसे आगे चल रहा है। हालांकि यह भी माना जा रहा है कि 2017 में यूपी चुनाव से पहले अमित शाह को गुजरात भेजना ठीक नहीं होगा लेकिन यह भी तय बात है कि पाटीदार आंदोलन और दलित आंदोलन से निपटने के लिए अमित शाह से बेहतर विकल्प कोई और नहीं हो सकता है।