उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन, रावत का इस्तीफा
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली/देहरादून : अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाकर सत्ता को पलटने के बाद अब उत्तराखंड में भी राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है। राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। रविवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला लिया गया। राज्यपाल की रिपोर्ट पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। इस फैसले को हरीश रावत ने केंद्र में भाजपा नीत राजग सरकार द्वारा लोकतंत्र की हत्या करार दिया।
राष्ट्रपति भवन के एक सूत्र ने बताया कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उत्तराखंड में रावत सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू करने के केंद्रीय मंत्रिमंडल के निर्णय को मंजूरी दे दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में शनिवार रात एक घंटे चली बैठक के बाद मंत्रिमंडल ने राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की थी। सूत्र ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर उत्तराखंड विधानसभा को निलंबित रखा गया है। उत्तराखंड के अस्तित्व में आने के बाद राज्य में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला किया गया है।
राजभवन में राज्यपाल के. के. पॉल से मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लिया। रावत ने संवाददाताओं से कहा कि मोदी के हाथ उत्तराखंड की जनाकांक्षाओं के खून से रंगे हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने उत्तराखंड के बजट में कटौती कर दी। यहां तक कि 2013 की बाढ़ में तबाह हुए केदारनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण और कुंभ मेले के धन में भी कटौती की गई। उन्होंने संकेत दिया कि कांग्रेस राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले के खिलाफ अदालत का रुख कर सकती है।
रावत ने कहा, हम सभी कानूनी विकल्पों की मदद लेंगे। इसका फैसला हमारे वकील करेंगे। मेरे पास एक बिल्कुल स्पष्ट बहुमत था। अगर कांग्रेस सत्ता में वापस लौटती है तो हम विधानसभा की सीट संख्या 70 से बढ़ाकर 90 करेंगे। केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लगाने को बिल्कुल सही बताया है। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने रविवार को कहा कि उत्तराखंड, राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए आदर्श मामला है। जेटली ने कहा, मेरा मानना है कि राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए इससे बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता।
पिछले नौ दिनों से उत्तराखंड में संविधान का उल्लंघन किया जा रहा है। राज्य में राजनीतिक संकट की शुरुआत उस समय हुई, जब कांग्रेस के नौ विधायकों ने बगावत कर दी। इनमें विजय बहुगुणा भी थे, जिन्हें हटाकर हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया था। इन्होंने भाजपा का साथ मांगा और भाजपा ने पूरी खुशी से साथ दिया।
18 मार्च को संकट तब बढ़ गया, जब उत्तराखंड विधानसभा में अध्यक्ष ने विनियोग विधेयक को ध्वनि मत से पारित मान लिया, जबकि सदन में मौजूद आधे से अधिक सदस्यों ने मत विभाजन की मांग की थी। उस आधार पर मतदान होना चाहिए था।
बगावत से पहले सदन में कांग्रेस के 36 और भाजपा के 31 विधायक थे। नौ विधायकों की बगावत के बाद कांग्रेस के पास 27 विधायक बचे। उसे छह अन्य विधायकों का समर्थन हासिल था। मुख्यमंत्री से सोमवार को बहुमत साबित करने के लिए कहा गया था, लेकिन इससे एक दिन पहले ही केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया।
इस बीच, शनिवार को टीवी चैनलों पर एक स्टिंग ऑपरेशन दिखाया गया था, जिसमें मुख्यमंत्री हरीश रावत को करोड़ों रुपये का सौदा करते दिखाया गया। रावत ने इसे फर्जी बताया। रावत ने उल्टे आरोप लगाया कि उनकी सरकार को गिराने के लिए भाजपा विधायकों को 'खरीद' रही है। उन्होंने कहा कि उनके दो पूर्व सहयोगियों विजय बहुगुणा और हरक सिंह रावत ने भाजपा के साथ मिलकर साजिश रची।
कांग्रेस ने राष्ट्रपति शासन के निर्णय को लोकतंत्र की हत्या बताया और कहा कि उसे इस घटना से कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। पार्टी महासचिव अंबिका सोनी ने कहा, केंद्र सरकार की वास्तविक इच्छा छोटे राज्यों की चुनी हुई सरकारों को गैर लोकतांत्रिक और गैर संवैधानिक तरीके से गिराना है। हर कदम पर संवैधानिक नियम तोड़े जा रहे हैं..यह इतना साफ है कि कोई भी इसे देख सकता है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने की निंदा की।
केजरीवाल ने ट्वीट में कहा, विश्वास मत हासिल करने से एक दिन पहले राष्ट्रपति शासन लगा दिया? भाजपा लोकतंत्र विरोधी है। भाजपा/आरएसएस तानाशाही चाहते हैं; भारत पर राष्ट्रपति शासन के जरिए शासन करना चाहते हैं। भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि अगर उनकी पार्टी को राज्य में सरकार बनाने का मौका मिला, तो वह इसकी संभावनाओं पर जरूर विचार करेगी।