...तो क्या वरुण की कांग्रेस में होगी ताजपोशी?
किरण राय
फिरोज़ वरुण गांधी किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। भारत के उसी गांधी परिवार से ताल्लुक रखते हैं जिससे कांग्रेस की पहचान है। लेकिन वरुण अपनी मां मेनका के साथ काफी समय से भाजपा की लड़ाई लड़ते आ रहे हैं। वरुण सुल्तानपुर से भाजपा सांसद हैं। इन दिनों वह एक बड़ी मुहिम में जुटे हैं। ये मिशन 100 गरीब लोगों को पक्के मकान दिलाने का और 3600 किसानों के कर्ज माफ कराने का है। बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि यह सब वरुण किसलिए कर रहे हैं?
दरअसल वरुण के समर्थक और वो खुद चाहते हैं कि उन्हें उत्तर प्रदेश में आगामी चुनाव में भाजपा का सीएम उम्मीदवार घोषित किया जाए। लेकिन पार्टी नेतृत्व उनकी दलीलों और ख्वाहिश से इत्तेफाक नहीं रखता। सो अति उत्साह में अनर्गर्ल बयान देने वाले वरुण ने खामोशी की चादर ओढ़ ली और अपने संसदीय क्षेत्र में डूबकर काम करने लगे। हाल ही में उन्होंने कांग्रेस के पक्ष में और भाजपा के विचारों से उलट कुछ ऐसे संकेत दिए जिससे लगने लगा है कि यूपी चुनाव के लिए कांग्रेस से बतौर मुख्यमंत्री उम्मीदवार के लिए ताजपोशी हो सकती है।
कांग्रेस का प्रचार अभियान का जिम्मा संभाल रहे पीके यानी प्रशांत किशोर बार-बार एक बड़े धमाके की बात करते हैं। पहले लोग प्रियंका के नाम का बटन दबा रहे थे लेकिन उस पर खुद प्रियंका ने विराम लगा दिया। माना जा रहा है कि पीके वरुण गांधी को कांग्रेस के सीएम उम्मीदवार के तौर पर प्रोजेक्ट करवाना चाहते थे। हालांकि यह विचार शीला दीक्षित के नाम पर मुहर लगने के साथ थम गया लेकिन माना जा रहा है कि कई वरिष्ठ कांग्रेसी भी ऐसा ही कुछ चाहते हैं और कोशिशें अभी खत्म नहीं हुईं हैं। चीजें बदल सकती हैं।
सभी जानते हैं कि वरुण ऊर्जावान और युवा नेता है। पिता द्वारा स्थापित संसदीय क्षेत्र में उन्होंने अपना दखल बढ़ाया है, बतौर भाजपाई नहीं बल्कि वरुण गांधी की हैसियत से। उन्होंने किसानों की कर्ज माफी से लेकर मकान बनाने तक में किसी पार्टी फंड का इस्तेमाल नहीं किया। कोई सरकारी मदद नहीं ली। सिर्फ अपने क्षेत्र के लोगों और अपनी सांसद निधि की पूंजी लगाकर अहम काम को पूरा करने में जुटे हैं। इस बीच उनकी अपनी ताई सोनिया गांधी, भाई राहुल और बहन प्रियंका से रिश्ते भी बेहतर हुए हैं। कुछ दिन पहले ही वो संसद परिसर में सोनिया का आशीर्वाद लेते दिखे थे। वरुण फिरोज गांधी जानते हैं कि उनकी पहचान एक तेज-तर्रार नेता के तौर पर है। उन्होंने अपने दम पर सुल्तानपुर जीता है और खुद को बार-बार साबित किया है। लेकिन पार्टी आलाकमान (भाजपा) उन्हें नकार रहा है। वजहें कई हैं। एक तो गांधी परिवार को लेकर उनका मोह ही सबसे प्रमुख है।
ऐसे कई मौके आये हैं जब वरुण ने पार्टी लाइन से इतर जाकर अपनी बात रखी है। हाल ही में उन्होंने अपने ग्रेट ग्रैंड फादर यानी जवाहरलाल नेहरू पर भाजपा और संघ द्वारा किए जा रहे हमले का विरोध एक युवा सम्मेलन में किया था। उन्होंने नेहरू की प्रशंसा करते हुए परोक्ष रूप से संघ को मुंह चिढ़ाने का काम किया था। यहीं पर उन्होंने भगोड़े विजय माल्या का जिक्र करते हुए कहा था कि व्यवस्था परिवर्तन जरूरी है। उन्होंने पूंजीपतियों के प्रति सरकार के नरम रवैये पर चोट करने की भी कोशिश की थी। और यहीं से दिखने लगा था कि वरुण पार्टी की सोच के मुताबिक चलने वाले नेता नहीं हैं।
इसे संयोग कहें या सोची समझी रणनीति। जहां एक तरफ बड़े भाई राहुल ने खाट पंचायत के माध्यम से उत्तर प्रदेश में बड़ी यात्रा कर किसानों की कर्ज माफी की बात की वहीं वरुण गरीबों के मकान बनवाने और किसानों के कर्ज माफी की अपने स्तर पर लड़ाई लड़ रहे हैं। अब अगर वरुण कांग्रेस में शामिल होते हैं तो यकीनन खाट पंचायत में उठाये गए किसानों के दर्द को वरुण की नजीर देकर समझाया जा सकेगा। ये कांग्रेस के लिए ज्यादा आसान होगा।
फिरोज़ वरुण गांधी के तेवर और मिज़ाज काफी हद तक अपने पिता संजय गांधी से मेल खाते हैं। वो लीक से हटकर काम करने में यकीन रखते हैं। कुछ महीने पहले ही इलाहाबाद में पार्टी कार्यकारिणी बैठक के दौरान वरुण गांधी के पोस्टर में संजय जोशी दिखे, वही जिन्हें नरेंद्र मोदी ने पार्टी से आउट कराया था। वरुण इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे। वरुण गांधी पर तुरंत कार्यवाही की तलवार लटक गई और उन्हें सुल्तानपुर तक समेट दिया गया।
बागी तेवर के साथ वरुण अमित शाह द्वारा बुलाई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नहीं पहुंचे। पार्टी ने इसे काफी गंभीरता से लिया था। सवाल उठता है कि ऐसी क्या वजह है कि खुद को सीएम प्रत्याशी के तौर पर पार्टी (भाजपा) द्वारा इनकार किए जाने के बावजूद वरुण अचानक शांत हो गए? कहीं परदे के पीछे वो कमल छोड़ हाथ को थामने का इरादा तो नहीं रखते।
याद हो तो हाल ही में कांग्रेस के प्रदेश महासचिव उमेश पंडित ने वरुण गांधी को कांग्रेस में लाने की मांग की थी। उमेश पंडित की मांग से जब लोग सकपका गए तो मीडिया ने उनसे इस बारे में पूछा। उमेश पंडित ने साफ़ कहा था कि वरुण गांधी को कांग्रेस में लाने के बारे में सिर्फ वे ही नहीं, अन्य कांग्रेसी भी सोचते हैं। इस मुद्दे पर वरुण गांधी और भाजपा की ओर से अभी कोई बयान नहीं आया है। कांग्रेस भी जानती है और वरुण युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं। डूबती कांग्रेस को तिनके का सहारा चाहिए और वरुण एक ऐसा तिनका हो सकते हैं। लोग मान रहे हैं कि वरुण के लिए बदलते माहौल में कांग्रेस में एंट्री का यही मुफीद वक्त है।