संशोधनों के साथ भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा में पारित
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : विपक्ष के भारी विरोध और बहिष्कार के बावजूद मंगलवार को लोकसभा में भूमि अधिग्रहण बिल अंतत: पारित हो गया। किसानों और सिविल सोसायटी कार्यकर्ताओं द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं के समाधान के लिए सरकार ने हालांकि 11 संशोधन पेश किए। प्रस्तावित विधेयक में खास श्रेणियों के तहत भूमि अधिग्रहण करने के लिए सामाजिक आर्थिक मूल्यांकन करने और भूस्वामियों की सहमति लेने की जरूरत को हटा दिया गया है।
लोकसभा में भूमि अधिग्रहण बिल उन चंद संशोधनो के साथ पास हो गया जिसके सामने सरकार झुकी। जहां सरकार नहीं झुकी और विपक्ष झुकाना चाहता था वहां लोकसभा में सरकार ने अपने बहुमत से विपक्ष को झुका दिया। यानी विपक्ष के पास अब भूमि अधिग्रहण को रोकने का रास्ता राज्यसभा का है जह विपक्ष बहुमत में है और सरकार के पास वहां से आगे का रास्ता दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाकर अध्यादेश पर आखिरी मुहर लगाने का है। लेकिन लोकसभा ने इसके संकेत दे दिए कि सरकार किसानों की जमीन लेने के लिए किसानों के सामने झुकना नहीं चाहती है और ना ही भूमि अधिग्रहण करते वक्त सामाजिक दबाव का आंकलन करना चाहती है। लोकसभा से जो भूमि अधिग्रहण निकला है वह 11 संशोधनो के साथ है जिसे सरकार ने माना और सभी ध्वनि मत से पास हो गए। संशोधनों के बाद बिल में प्रावधान है कि...
- अब सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की मंजूरी जरूरी हो गई है।
- बहुफसली जमीन अब नहीं ली जाएगी।
- किसानों को अपील का अधिकार होगा।
- आदिवासी क्षेत्र में पंचायत की सहमति जरूरी होगी।
- परिवार के एक सदस्य को नौकरी मिलेगी।
- इंडस्ट्रियल कॉरीडोर के लिए सीमित जमीन ली जाएगी।
- रेलवे ट्रैक के दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर जमीन का अधिग्रहण होगा।
- हाईवे के दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर जमीन का अधिग्रहण।
- बंजर जमीनों का अलग से रिकॉर्ड रखा जाएगा।
आपको बता दें कि 4 अप्रैल तक बिल का कानून बनना जरूरी है नहीं तो अध्यादेश रद्द हो जाएगा और माना यही जा रहा है कि राज्यसभा में विपक्ष अड़ गया तो संयुक्त सत्र का रास्ता ही सरकार के पास बचेगा और वहां सरकार आसानी से जीत जाएगी। लेकिन बड़ा सवाल सरकार की जीत का नहीं बल्कि सरकार की छवि का है, क्योंकि तमाम संशोधनों के बावजूद सरकार अभी यह संदेश नहीं दे पाई है कि वो किसानों और गरीबों के हित की सोच रही है। शिवसेना ने इस मुद्दे पर खुद को जिस तरह से अलग कर लिया और लोकसभा के संशोधनो में शामिल नहीं हुई उसने सियासी तौर पर भाजपा के लिये संकेत तो दे ही दिए हैं।