संसद में भ्रष्टाचार विरोधी विधेयक पास
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: उच्च दन के बाद निचली सदन यानी लोकसभा ने भी मंगलवार को भ्रष्टाचार रोधी विधेयक पारित कर दिया। इस विधेयक में रिश्वत देने और लेने वालों के लिए दंड का प्रावधान है और साथ ही लोकसभा में अभियोजन पक्ष से लेकर सरकार के पूर्व अधिकारियों पर भी सख्त कार्रवाई को मंजूरी दे दी गई है। कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह के जवाब के बाद भ्रष्टाचार रोकथाम (संशोधित) विधेयक 2018 को निम्न सदन में पारित कर दिया गया।
इससे पहले भ्रष्टाचार निरोधक कानून में संशोधन का बिल गुरुवार को राज्यसभा से पारित हो गया था। जिसके बाद इसे लोकसभा में मुहर लगने के लिए भेज दिया गया। जल्द ही राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानूनी रूप ले लेगा। नए बिल में अहम बात यह है कि अब रिश्वत देने वाले को सात साल तक की सजा का प्रावधान है।
जितेंद्र सिंह ने बताया कि अभी तक जो कानून बने हैं उनमें रिश्वत देने वाले पर कार्रवाई की बात किसी में नहीं है। नए बिल में ऐसे व्यक्ति को कम से कम तीन साल की सजा की बात है। उस पर जुर्माना भी लग सकता है।
हालांकि बिल में इस बात का ख्याल रखा गया है कि बेवजह किसी का उत्पीड़न न हो। किसी से जबरन रिश्वत मांगी जा रही है तो पीड़ित सात दिनों के भीतर जांच एजेंसियों को सूचना दे सकता है। बिल में यह भी प्रावधान है कि रिश्वत देने वाला किसी व्यावसायिक संस्थान से जुड़ा है तो वह भी जांच के दायरे में आएगा। विशेष जज सुनिश्चित करेंगे कि ऐसे मामलों का ट्रायल शिकायत दर्ज होने के दो साल के भीतर पूरा हो।
सिंह ने कहा कि इस ऐतिहासिक कानून में भ्रष्टाचार के मामलों में शीध्र सुनवाई सुनिश्चित करने का प्रावधान है।
उन्होंने कहा, हम किसी भी भ्रष्टाचार के मामले के लिए दो साल के भीतर फैसला देने के लिए दिशानिर्देश जारी करेंगे। मंत्री ने कहा कि सरकार का मकसद भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त से सख्त कदम उठाना और काम करने के लिए अच्छा माहौल सुनिश्चित करना है।
लोकपाल की नियुक्ति में देरी के संदर्भ में उन्होंने कहा कि इसके लिए कांग्रेस जिम्मेदार है, क्योंकि उसके पास लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में अपने नेता को चुनने के लिए पर्याप्त सीटें नहीं हैं। विपक्ष का नेता लोकपाल चयन समिति का सदस्य होता है। सिंह ने कहा कि सरकार ने बैठकों में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को शामिल करने की मांग की थी, ताकि लोकपाल की नियुक्ति की जा सके।
बैठक में हिस्सा लेने वाले कई सदस्यों ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए चुनाव सुधारों की जरूरत पर जोर दिया। कुछ विपक्षी सदस्यों ने सरकार पर संशोधनों के माध्यम से भ्रष्टाचार रोधी अधिनियम को हल्का करने का आरोप लगाया। उन्होंने रिश्वत देने वाले को दंडित करने के प्रावधान पर सरकार को घेरा।
विधेयक में रिश्वत लेने के दोषियों पर जुर्माने के साथ साथ तीन से लेकर सात साल जेल की सजा का प्रावधान कर दिया गया है। इस विधेयक में रिश्वत देने वालों को पहली बार शामिल किया गया है और उन पर भी सात साल तक की जेल और जुर्माना या फिर दोनों लगाया जाएगा।
नौकरशाहों के लिए विशेष प्रावधान
नए बिल में नौकरशाहों को बचाने के लिए विशेष प्रावधान हैं। सीबीआइ या अन्य जांच एजेंसी किसी अफसर के खिलाफ तभी जांच शुरू कर सकती है जब वह संबंधित अथॉरिटी से अनुमति ले लें। रिटायर्ड अफसरों के मामले में भी यही परिपाटी लागू होगी। जो अफसर मौके पर रिश्वत लेते पकड़ा जाता है, उस पर ये नियम लागू नहीं होंगे। सरकारी अफसर के खिलाफ पुलिस जांच नहीं कर सकेगी।
2013 में शुरू हुई थी कवायद
पुराने बिल में संशोधन की कवायद 2013 में यूपीए कार्यकाल के दौरान शुरू हो गई थी। बिल पहले संसदीय समिति फिर लॉ पैनल और उसके बाद 2015 में सिलेक्ट कमेटी के पास भेजा गया था। कमेटी की रिपोर्ट 2016 में आई। 2017 में बिल को संसद में लाया गया, लेकिन इस पर कोई फैसला तब नहीं हो सका था।