इशारों-इशारों में शाह ने नायडू और उद्धव को बताया- भाजपा है क्या?
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: राज्यसभा में अपने पहले संबोधन के दौरान भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने संकेतों भी ही NDA के सहयोगी घटकों को पार्टी के रसूख का एहसास करा दिया। हालांकि हमला विपक्ष में बैठी कांग्रेस पर था लेकिन शब्दबाण से वो भी नहीं बच पाए जो इन दिनों भाजपा से दूरी बनाने को लेकर बयानबाजी कर रहें हैं।
अमित शाह ने कहा- आजादी के बाद पहली बार किसी गैर कांग्रेसी दल को पूर्ण बहुमत मिला। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह बहुमत मिला। यह बहुमत भाजपा को मिला... हमें पूर्ण बहुमत मिला लेकिन हमने एनडीए को सरकार में शामिल किया। शाह ने कहा कि जब नरेंद्र मोदी को एनडीए का नेता चुनाव गया तब उन्होंने कहा था कि यह सरकार गरीबों की सरकार को होगी। दलितों की सरकार होगी और दीन दयाल उपाध्याय के सिद्धांत पर चलेगी। अंत्योदल के सिद्धांत पर चलने वाली सरकार होगी।
हाल ही में शिवसेना की धमकी और टीडीपी के दिए बयान को लेकर यह पार्टी की ओर से पहला बड़ा बयान कहा जा सकता है।एनडीए सरकार की उपल्ब्धि गिनाते हुए वो कांग्रेस पर हमलावर रहे। उन्होंने माना कि बेरोजगारी है लेकिन इसे भी कांग्रेस के 55 साल का नतीजा बताया। उन्होंने कहा कि 70 साल की आजादी के बाद 55 साल एक पार्टी का राज रहा और एक ही परिवार ने 50 साल राज किया...इस दौरान 60 प्रतिशत लोगों के पास एक बैंक अकाउंट नहीं था।
शाह ने कहा कि देश को आगे ले जाने के लिए भाजपा को मत मिला है। उन्होंने कहा कि 31 करोड़ जनधन खाते खुले और इन खातों में 75 हजार करोड़ रुपये आए... 20 प्रतिशत से कम ऐसे खाते हो गए हैं जो जीरो बैलेंस हैं। पहले यह संख्या 77 प्रतिशत थी। उन्होंने कहा कि शास्त्री जी के बाद पहली बार किसी पीएम ने संपन्न लोगों से अपील की और गरीबों के हित में कदम उठाए...सरकार के प्रयासों की वजह से ही करीब 1.37 करोड़ लोगों ने सब्सिडी छोड़ी।
शिवसेना और टीडीपी की तल्खी
दरअसल, हाल ही में शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने भाजपा की नीतियों पर सवाल उठाते हुए उससे अगले चुनाव के लिए राहें अलग करने का ऐलान किया है। ठाकरे लगातार अपने मुखपत्र सामना में केन्द्र और मोदी से सवाल करते रहें हैं। वहीं आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगूदेशम पार्टी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू ने अपने राज्य की बजट में अनदेखी और प्रदेश भाजपा नेताओं की सरकार के कामकाज में दखलअंदाजी को लेकर गुस्सा जाहिर किया था। नायडू ने रविवार 4 फरवरी को एक आपातकालीन बैठक भी बुलाई थी। जिसमें फैसला लिया गया कि भले ही वो सरकार का हिस्सा बने रहें लेकिन अपने सूबे के लिए उचित फंड की मांग को बतौर अहम सहयोगी केन्द्र से करते रहेंगे। नायडू और टीडीपी सांसदों ने अपनी आपत्ति खुलकर दर्शाई थी।