जानबूझ कर अधिक कठिन मार्ग चुना : PM मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार के एक साल पूरे कर लिए हैं। सरकार के मंत्री, भाजपा सांसद और खुद प्रधानमंत्री इस एक साल की उपलब्धियों का बखान रैली, जनसभाएं और इंटरव्यू के माध्यम से देश की जनता को बता रहे हैं। इसी क्रम में पीएम मोदी ने संवाद एजेंसी पीटीआई को लंबा इंटरव्यू दिया।
इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि उन्होंने जानबूझ कर ‘लोकलुभावन रास्ता’ नहीं चुना और उसकी बजाय त्रुटिपूर्ण सरकारी मशीनरी को ठीक करने के लिए ‘अधिक कठिन मार्ग’ को अपनाया। यह पूछे जाने पर कि उनकी सरकार के एक साल पूरे होने पर क्या उन्हें लगता है कि वह कुछ अलग कर सकते थे, उन्होंने कहा कि उनके पास दो विकल्प थे। ‘एक विकल्प था सरकारी मशीनरी को लामबंद करने, व्यवस्था में आई कई त्रुटियों और खराबियों को दूर करने के लिए प्रक्रियात्मक रूप से काम किया जाए जिससे कि देश को लंबे समय तक स्वच्छ, कुशल और निष्पक्ष शासन के रूप में लाभ दिया जा सके।’ ‘दूसरा विकल्प यह था कि जनादेश का उपयोग करते हुए नई लोकलुभावन योजनाएं घोषित की जाएं और जनता को बेवकूफ बनाने के लिए मीडिया के जरिए ऐसी घोषणाओं की बमबारी कर दी जाए। यह रास्ता आसान है और लोग इसके आदी हैं।’
मोदी ने दार्शनिक अंदाज में कहा कि वह महसूस करते हैं कि देश तभी प्रगति करेगा जब वे एक टीम की तरह काम करेंगे। उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री एक टीम हैं। कैबिनेट मंत्री और राज्यों के मंत्री अन्य टीम हैं। केन्द्र और राज्यों के लोकसेवक भी एक अन्य टीम हैं। यही एक तरीका है जब हम देश को सफलतापूर्वक विकसित कर सकते हैं। इसके लिए हमने कई सारे कदम उठाए और योजना आयोग को समाप्त किया और उसकी जगह नीति आयोग गठित किया जिसमें राज्य बराबर के पार्टनर हैं।’ प्रधानमंत्री द्वारा पीटीआई को दिए गए इंटरव्यू का मूल पाठ इस प्रकार है-
सवाल : प्रधानमंत्री के रूप में आपने एक साल पूरा किया है। कृपया क्या अपने अनुभवों को बता सकते हैं?
जवाब : जब मैंने पद संभाला, लोकसेवा पूरी तरह हतोत्साहित थी और निर्णय लेने से डरती थी। बाहर से संविधानेत्तर प्राधिकारियों और भीतर से मंत्रियों के समूहों के कारण कैबिनेट व्यवस्था भी जीर्णावस्था में थी। राज्यों और केन्द्र के बीच गहरी खाई और गहरा अविश्वास था। विदेशी और भारतीय दोनों भारतीय शासन से हताश थे। उस निराशा के वातावरण को बदलना बहुत बड़ी चुनौती थी और हालात को सुधारने तथा विश्वास एवं उम्मीद बहाली करने में मैंने कई कठिनाइयों का सामना किया।
सवाल : प्रधानमंत्री बनने के तत्काल बाद, आपने कहा था कि चूंकि यहां नये हैं और दिल्ली को समझने का प्रयास कर रहे हैं। क्या आपने दिल्ली को समझ लिया?
जवाब : जब मैं दिल्ली की बात करता हूं तब मेरा आशय केंद्र सरकार से है। मेरा अनुभव यह है कि दिल्ली उसी तरह से चलती है जो रास्ता नेतृत्व तय करता है। हमारी टीम दिल्ली में कामकाज की संस्कृति में बदलाव लाने की दिशा में काम कर रही है ताकि सरकार को और सक्रिय तथा पेशेवर बनाया जा सके। जब मैंने पदभार संभाला, मैंने पाया कि दिल्ली में सत्ता के गलियारे विभिन्न तरह के एजेंटों से भरे हुए थे। सत्ता के गलियारों को साफ करने का कार्य महत्वपूर्ण था ताकि सरकार के तंत्र खुद बेहतर बन सकें। सुधार और साफ करने की प्रक्रिया में थोड़ा समय लगा लेकिन इससे स्वच्छ एवं निष्पक्ष शासन के संदर्भ में दीर्घकालीन लाभ होगा।
सवाल : और आपने क्या समझा?
जवाब : एक बात मैं समझने में विफल रहा कि कैसे कुछ दलों की राज्य सरकारें भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव की मांग करती हैं लेकिन जब वे दल दिल्ली में बैठते हैं तब संशोधनों का विरोध करते हैं।
सवाल : पिछले एक वर्ष पर नजर डालें तब क्या आप सोचते हैं कि कुछ ऐसी चीजें जो आपने कीं, उसे दूसरी तरह से कर सकते थे या किया जाना चाहिए था?
जवाब : मेरे पास दो विकल्प थे। एक विकल्प था सरकारी मशीनरी को लामबंद करके, व्यवस्था में आई कई त्रुटियों और खराबियों को दूर करने के लिए प्रक्रियात्मक रूप से काम किया जाए जिससे कि देश को लंबे समय तक स्वच्छ, कुशल और निष्पक्ष शासन के रूप में लाभ दिया जा सके। दूसरा विकल्प यह था कि जनादेश का उपयोग करते हुए नयी लोकलुभावन योजनाएं घोषित की जाएं और जनता को बेवकूफ बनाने के लिए मीडिया के जरिए ऐसी घोषणाओं की बमबारी कर दी जाए। यह रास्ता आसान है और लोग इसके आदी हैं।
सवाल : पहले वर्ष के दौरान, आपने स्वच्छ भारत अभियान, स्कूलों के लिए शौचालय, जनधन योजना, गरीबों के लिए बीमा योजना और पेंशन योजना जैसे अनके कार्यक्रम और योजनायें शुरू की थीं। भविष्य के लिए क्या योजनायें हैं?
जवाब : सर्वप्रथम मैं यह बताना चाहूंगा कि स्वच्छ भारत और स्कूल शौचालय महज स्वच्छता के लिए नहीं है। शौचालय का प्रावधान हमारी महिलाओं की गरिमा की न्यूनतम आवश्यकता है और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के बाद इतने वर्षों तक हम यह नहीं कर सके। हमारे भविष्य का फोकस महिला, किसान, शहरी गरीब और रोजगार पर रहेगा। हमने जो कुछ भी शुरू किया है इसे आगे बढ़ाने और ग्रामीण और नगरपालिका क्षेत्रों तक ले जाने की जरूरत है। हमें उन मुद्दों को सुलझाना होगा जो स्वच्छ शहरों, स्वच्छ नदी, पानी बिजली जैसी जरूरी चीजों की नियमित और अबाध आपूर्ति को रोकता है। हमें सुधार लाने होंगे जो हमें बेघरों के लिए पांच करोड़ मकान बनाने में मदद करे। हमें यह देखना होगा कि देश के सभी क्षेत्र, खासकर पूर्वी और पश्चिमी क्षेत्र विकास के मानदंडों में समान हो सके। हमें अपनी संस्थानों, कर्मचारियों और श्रमिकों को विकसित करना होगा। हमारा नियामक माहौल अनुसंधान, उन्नयन और उद्यम को प्रोत्साहित करने वाला नहीं है। हमारे बच्चे और बच्चियां अन्य देशों में इतना बढ़िया कर रहे हैं लेकिन हम अपने घर में उनका प्रभावकारी इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। हमने अटल इनोवेशन मिशन की स्थापना और स्वरोजगार एवं प्रतिभा का इस्तेमाल कर शुरूआत की है। इन सभी के लिए हमारी नीतिगत व्यवस्था में सुधार और साथ ही प्रशासनिक संस्कृति में सुधार एक समान जरूरत है।
सवाल : आप आर्थिक सुधारों को द्रुत गति से आगे बढ़ाना चाहते हैं। लेकिन भूमि अधिग्रहण और जीएसटी जैसे कुछ प्रमुख सुधार विधेयक कुछ समस्याओं का सामना कर रहे हैं। क्या आपको लगता है कि ऐसे सुधार कदमों में रूकावटें देश को नुकसान पहुंचा रही हैं? जो लोग इन कदमों का विरोध कर रहे हैं उनके लिए आपका क्या संदेश है?
जवाब : जीएसटी और प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण विधेयक देश के लिए फायदेमंद हैं। दोनों विधेयकों के मुख्य सार को सभी दलों द्वारा राजनीतिक निहितार्थों से ऊपर उठकर समर्थन करना चाहिए। देश के दीर्घकालिक हित सर्वोपरि रहने चाहिएं। तथ्य यह है कि राज्य जीएसटी के लिए सहमत हैं और यह हमारी संघीय व्यवस्था की परिपक्वता को दर्शाता है और जीएसटी विधेयक को लोकसभा पहले ही पारित कर चुकी है। कुछ ही समय की बात है जब ये दोनों विधेयक पारित हो जायेंगे।
सवाल : आप अधिक से अधिक निवेश लाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। अगर सुधार उपाय तेजी से आगे नहीं बढ़ाए जाते, तो विदेशी निवेशकों को किस तरह का संदेश जायेगा?
जवाब : दिल्ली के बारे में ‘सुधार’ के संदर्भ में अनोखी बात यह है कि यह केवल संसद में कानून पारित करने से संबंधित है। वास्तव में सबसे महत्वपूर्ण सुधार जिनकी जरूरत है, बिना नये कानूनों के, सरकार के विभिन्न स्तरों पर, कामकाज और प्रक्रिया के संदर्भ में हैं। हमने कई महत्वपूर्ण सुधारों को आगे बढ़ाया है। इनमें डीजल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त बनाना, रसोई गैस सब्सिडी को प्रत्यक्ष अंतरण से जोड़ना, एफडीआई सीमा को बढ़ाना, रेलवे और कई अन्य क्षेत्रों को नयी ऊर्जा प्रदान करना शामिल है। सच्चाई यह है कि सुधार वास्तव में काफी तेजी से आगे बढ़ाये जा रहे हैं और वास्तव में इसके परिणामस्वरूप पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में अप्रैल 2014 और फरवरी 2015 के बीच एफडीआई में 39 प्रतिशत वृद्धि देखी गई।
सवाल : भविष्य के लिए आप किन सुधार उपायों की योजना बना रहे हैं?
जवाब : जो कदम हम उठा चुके हैं, उनकी सफलता और अपने पहले वर्ष में हमारे कार्यों पर देशभर में लोगों से मिली प्रतिक्रिया सकारात्मक है और इससे हम और काम करने को प्रोत्साहित हुए हैं। हमारा ध्यान पी2जी2 पर होगा। इसका आशय है सक्रिय, लोकोन्मुखी, सुशासन से परिपूर्ण सुधार। एक अन्य आयाम जिस पर हमारा जोर होगा और जिसे हम मजबूत बनाना चाहते हैं, वह राज्य और केंद्र को एक टीम के रूप में बनाना है और सुधार को प्रभावी बनाने के लिए मिलकर काम करना है।
सवाल : आप पहले ही कई क्षेत्रों को एफडीआई के लिए खोल चुके हैं। आने वाले समय में आप किन अन्य क्षेत्रों को एफडीआई के लिए खोलने पर विचार कर सकते हैं?
जवाब : जो कदम उठाये जा चुके हैं, उससे भारत निवेश के लिए और आकर्षक स्थल बना है और विश्वास भी बढ़ा है। जहां भी उच्च रोजगार क्षमता होगी और जहां भी मजबूत स्थानीय प्रतिभा होगी मसलन अनुसंधान एवं विकास में, वे क्षेत्र एफडीआई के लिए केंद्रीय क्षेत्र होंगे। हमने राष्ट्रीय आधारभूत ढांचा निवेश कोष बनाया है। यह महत्वपूर्ण कदम होगा जो सभी आधारभूत संरचना क्षेत्रों में विदेशी निवेश के प्रवाह को बढ़ायेगा, वह भी बिना क्षेत्र दर क्षेत्र पहल के।
सवाल : आर्थिक नीति के संबंध में क्या आरबीआई की सोच वित्त मंत्रालय से मेल खाती है? मैं यह प्रश्न इसलिए पूछ रहा हूं क्योंकि कई बार आरबीआई गवर्नर के बयान वित्त मंत्रालय के साथ तालमेल नहीं होने का संकेत देते हैं।
जवाब : मैं हैरान हूं कि पीटीआई जैसी महत्वपूर्ण और विश्वसनीय मीडिया एजेंसी विभिन्न संदर्भों में दिये गये बयानों के आधार पर गलत अर्थ निकाल रही है। आरबीआई की अपनी कामकाजी स्वायत्तता है जिसका सरकार और वित्त मंत्रालय हमेशा सम्मान करते हैं और संरक्षण करते हैं।’’
सवाल : आप इस वित्त वर्ष के विकास के आंकड़ों का क्या लक्ष्य निर्धारित कर रहे हैं?
जवाब : पिछले साल का अनुभव और 1.25 अरब भारतीयों का उत्साह और प्रोत्साहन मुझे विश्वास दिलाते हैं कि सभी आर्थिक संकेत बढ़े हुए लक्ष्य निर्धारित करेंगे। मैं ऐसा कोई आंकड़ा देकर क्षमता और प्रयासों को कमजोर नहीं करना चाहता जो बहुत कम हो सकता है।’’
सवाल : भूमि अधिग्रहण विधेयक पर गतिरोध बना हुआ है, इसका क्या समाधान है? क्या आप भूमि विधेयक पर विपक्ष के विचारों को अपनाने को तैयार हैं। किन संभावित पहलुओं में सरकार विपक्ष के विचारों पर सहमत हो सकती है?
जवाब : गांव, गरीब, किसान। अगर सुझाव इन वंचित समूहों के पक्ष में होते हैं और देश के हित में होते हैं तो हम उन सुझावों को स्वीकार करेंगे।
सवाल : इस साल जब भी अल्पसंख्यक समुदाय या अल्पसंख्यक संस्थानों के किसी व्यक्ति पर हमला किया गया तो उसके लिए आपकी सरकार और संघ परिवार पर बार बार निशाना साधा गया। व्यक्तिगत रूप से आप पर भी हमला बोला गया। आपको इस पर क्या कहना है?
जवाब : देश में किसी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ किसी भी आपराधिक कृत्य की निंदा होनी चाहिए। हमलावरों को कानून के अनुसार कड़ी सजा मिलनी चाहिए। मैंने पहले यह कहा था और मैं फिर से यह कह रहा हूं कि किसी भी समुदाय के खिलाफ किसी तरह के भेदभाव या हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस बारे में मेरी स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है: सबका साथ, सबका विकास। हम जाति या संप्रदाय पर ध्यान दिये बिना सभी 1.25 अरब भारतीयों के लिए खड़े हैं और हम इन सभी की प्रगति के लिए काम करेंगे।’’
सवाल : आपने पिछले एक साल में कई देशों की यात्रा की है। विपक्ष ने आप पर निशाना साधा और कहा कि आप देश में बहुत कम रहते हैं। इस आलोचना पर आपका क्या जवाब है?’’
जवाब : हम एक दूसरे पर आश्रित दुनिया में रहते हैं। एक अलग-थलग भारत हमारे हित में नहीं है। किसी भारतीय प्रधानमंत्री का 17 साल तक नेपाल नहीं जाना कोई अच्छी बात नहीं है। चूंकि हम बड़े देश हैं, इसलिए अहंकार नहीं कर सकते और दूसरों की अनदेखी करने के बारे में नहीं सोच सकते। हम एक अलग कालखंड में रह रहे हैं। आतंकवाद वैश्विक है और सुदूर देशों से भी पनप सकता है।
अंतरराष्ट्रीय शिखर-सम्मेलन और डब्ल्यूटीओ जैसे संगठनों के फैसलों के प्रति हम बंधे होते हैं और यदि हम ऐसे सम्मेलनों में भाग नहीं लेंगे तो हम वहां लिये गये फैसलों से आहत हो सकते हैं। लोकतंत्र में सभी को सरकार की आलोचना करने का अधिकार है। सामान्य रूप से विपक्ष को मीडिया में ज्यादा जगह मिलती है और लोगों को तत्कालीन सरकार के खिलाफ चीजें सुनना रोचक लगता है। मैंने जब से पदभार संभाला है, तब से विपक्ष में बैठे मेरे मित्र मेरी विदेश यात्राओं के बारे में बेबुनियादी आरोप लगा रहे हैं। अगर ये यात्राएं विफल रहीं या हमने कोई गलती की, तो वे विशेष मुद्दों पर अपने बयान दे सकते हैं। लेकिन कोई विशेष मुद्दा नहीं होने पर वे केवल दिनों की संख्या और देशों की संख्या की बात कर रहे हैं। जनता की परिपक्वता देखिए कि सभी हालिया सर्वेक्षण दिखाते हैं कि हमारी विदेश नीति को सर्वाधिक स्वीकृति की रेटिंग मिली है। जब विरोधी एक ही चीज पर अटके हों तो यह सफलता का स्पष्ट संकेत है।’’
सवाल : ऐसे में जबकि विपक्ष द्वारा आप पर कोरपोरेट समर्थक होने के आरोप लगाए जा रहे हैं, उधर दीपक पारिख जैसे उद्योग जगत की कुछ हस्तियां कह रही हैं कि उद्योगों के लिए जमीनी स्तर पर कुछ नहीं हो रहा है। आपका क्या कहना है?
जवाब : आपके सवाल में ही जवाब मिलेगा। यदि विरोधी हम पर कोरपोरेट समर्थक होने का आरोप लगा रहे हैं लेकिन कोरपोरेट कह रहे हैं कि हम उनकी मदद नहीं कर रहे हैं...तो मैं इसे इस तरह से लेता हूं कि हमारे फैसले और हमारी पहलें जन समर्थक हैं और दीर्घकाल में राष्ट्र हित में हैं।
सवाल : राहुल गांधी हाल ही में सक्रिय हो उठे और उन्होंने किसानों के मुद्दों के साथ ही भूमि अधिग्रहण विधेयक का मसला उठाया। वह आपकी सरकार को ‘सूट बूट की सरकार’ भी कह चुके हैं । इस पर आपकी टिप्पणी क्या है?
जवाब : कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है और उसे 50 से भी कम सीटें लेकर बैठना पड़ा। एक साल बाद भी, वे इसे पचा नहीं पा रहे हैं। जनता ने उन्हें उनकी भूल चूक के पापों की सजा दी है। हमने सोचा था कि वे इससे सीखेंगे लेकिन ऐसा लगता है कि वे पहले कही गयी इस बात को सही साबित कर रहे हैं कि ‘इफ कॉन इज द अपोजि़ट ऑफ प्रो’ तब कांग्रेस प्रगति की विपरीतार्थक है।
सवाल : हाल ही में, कैग ने देश की रक्षा तैयारियों पर सवाल उठाए हैं। ऐसा कहा गया कि यदि कोई युद्ध होता है तो सेना के पास जो गोला बारूद है वह केवल 10–20 दिन का ही है। इसकी रिपोर्ट वर्ष 2013 के आंकड़ों पर आधारित थी। आप इस पर क्या कहेंगे?
जवाब : राष्ट्रीय सुरक्षा एक गंभीर मुद्दा है और मैं नहीं समझता कि इस प्रकार के ब्यौरे पर सार्वजनिक मंच पर चर्चा करना उचित है। हालांकि, मैं अपने देशवासियों को आश्वासन दे सकता हूं कि हमारी सेना, नौसेना, वायुसेना और तटरक्षक बलों के बहादुर योद्धाओं के हाथों में देश सुरक्षित है।
सवाल : चुनाव प्रचार के दौरान किए गए वायदों में एक वादा था कि नयी सरकार काले धन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी। क्या इस पर कोई प्रगति हुई है?
जवाब : पदभार संभालने के बाद इस सरकार का सबसे पहला फैसला काले धन पर आगे बढ़ने के लिए विशेष जांच दल का गठन करना था। यह कदम पिछले कई सालों से बिना किसी कार्रवाई के लंबित था और हमने इसे अपनी पहली ही कैबिनेट बैठक में अंजाम दे दिया। इसके बाद, हम एक नया विधेयक भी लेकर आए जो विदेशों में जमा काले धन से निपटेगा और इसमें कड़े दंड का भी प्रावधान किया गया है। हमारे प्रयासों का शुक्र मनाइए कि नवंबर 2014 में कर चोरी पर नियंत्रण के लिए जी 20 शिखर बैठक में एक समझौते पर पहुंचा गया जिसमें देशों के बीच सूचनाओं का आदान प्रदान खास बात थी। इससे हमें काले धन का पता लगाने में मदद मिलेगी। ये काफी मजबूत और ठोस कार्रवाइयां हैं।
सवाल : सरकार के कामकाज के तौर तरीकों में बदलाव के लिए आपने क्या प्रयास किया?
जवाब : हमने सरकारी सेवकों को यह याद दिलाने का प्रयास किया कि वे जनता के सेवक है और केंद्र सरकार के कार्यालय में अनुशासन बहाल किया। मैंने छोटे छोटे काम किये, जो बाहर से देखने पर काफी छोटे प्रतीत होते हैं। मैंने नियमित रूप से अधिकारियों के साथ चाय पर बात की, यह मेरे काम करने का तरीका है। दार्शनिक तौर पर मैं महसूस करता हूं कि देश तभी प्रगति करेगा जब हम एक टीम के रूप में काम करेंगे। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री एक टीम हैं। कैबिनेट मंत्री और राज्य मंत्री एक अन्य टीम हैं। केंद्र और राज्य के नौकरशाह भी एक टीम हैं। यह एकमात्र रास्ता है कि हम सफलतापूर्वक देश का विकास कर सकते हैं। हमने इसके लिए कई कदम उठाये हैं और योजना आयोग को समाप्त करना और इसके स्थान पर नीति आयोग को लाना जिसमें राज्य पूर्ण सहभागी हैं, यह इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
सवाल : ऐसी आलोचना होती रही है कि पीएमओ में सभी शक्तियां केंद्रित हैं। क्या ऐसे विचारों में कोई सार है?
जवाब : यह एक लोडेड सवाल है। अच्छा यह होता कि यह सवाल तब पूछा गया होता जब एक असंवैधानिक प्राधिकार संवैधानिक सत्ता पर बैठी थीं और प्रधानमंत्री कार्यालय पर शक्तियों का उपायोग कर रही थीं। प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय संवैधानिक व्यवस्था का हिस्सा है और इससे बाहर नहीं है। हमने मंत्रियों को अधिक अधिकार दिए हैं ताकि कई निर्णय जो प्रधानमंत्री और कैबिनेट के समक्ष आते थे, उसका निर्णय अब मंत्री खुद कर सकते हैं। मंत्रालयों के वित्तीय आवंटन को तीन गुणा बढ़ाया गया है। राज्यों का अंतरण बढ़ाया गया है और राज्य अब नीति आयोग के माध्यम से शासन में पूर्ण हिस्सेदार बन गए हैं। सभी सफल और परिवर्तनीय प्रशासन में विभिन्न मंत्रालयों के बीच करीबी समन्वय की जरूरत है और इसमें कुछ भी अनोखा नहीं है। हमने सरकार के कामकाज के नियमों में कोई बदलाव नहीं किया और फैसले उनके द्वारा लिये जाते हैं, जो इसके लिए अधिकृत हैं।