पीएम नरेंद्र मोदी : भारत को नहीं चाहिए तानाशाही
अमेरिका पत्रिका टाइम ने अपने कवर पेज पर 'वाई मोदी मैटर्स' शीर्षक के साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर प्रकाशित की है। इससे पहले भी मोदी को टाइम अपने कवर पेज पर दो बार जगह दे चुका है। पत्रिका ने मोदी सरकार के एक साल होने पर नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू प्रकाशित किया है। 2 मई को पत्रिका की संपादक नैंसी गिब्स, एशिया संपादक जोहर अब्दुल करीम और दक्षिण एशिया के ब्यूरो प्रमुख निखिल कुमार ने दो घंटे तक नई दिल्ली में प्रधानमंत्री का इंटरव्यू लिया था। कुछ प्रमुख सवालों पर जानिए पीएम मोदी का जवाब-
हमारे डीएनए में है लोकतंत्र
भारत एक लोकतंत्र है। यह हमारे डीएनए में है। जहां तक अलग-अलग राजनीतिक दलों की बात है, मेरी समझ से वे देशहित के बारे में अपने-अपने तरीके से सोचते हैं। अगर आप मुझसे पूछते हैं कि क्या भारत को चलाने के लिए तानाशाही चाहिए तो मैं कहूंगा बिल्कुल नहीं। अगर आप मुझसे लोकतांत्रित मूल्यों और धन, ताकत और प्रसिद्धि के बीच चुनने को कहते हैं तो मैं कहूंगा कि मैं लोकतांत्रिक मूल्य चुनूंगा।
गरीबी मेरे जीवन की पहली प्रेरणा
पीएम मोदी ने कहा कि मेरे लिए गरीबी जीवन की सबसे पहली प्रेरणा रही है। गरीबी के ही चलते मैंने संकल्प किया था कि मैं अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए जीऊंगा। मैं बहुत गरीब परिवार में पैदा हुआ। बचपन में मैं रेलवे के डिब्बों में चाय बेचता था। मेरी मां बर्तन मांजती थी और दूसरों के घरों में काम करती थी ताकि उनके बच्चों का पेट भर सके। मैंने गरीबी को बहुत करीब से देखा है। मैं गरीबी में पला-बढ़ा हूं।
सबका साथ सबका विकास
मेरी, भाजपा और सरकार का एक ही दर्शन है- सबका साथ, सबका विकास। जब भी अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ किसी ने नकारात्मक टिप्पणी की या कदम उठाया, हमारी सरकार ने उसे तुरंत दुरुस्त किया। जहां तक सरकार की बात है, तो हमारे लिए एक ही पवित्र पुस्तक है, और वह है भारत का संविधान। देश की एकता और अखंडता हमारी सबसे पहली प्राथमिकता है। सभी धर्मों और समुदायों को एक जैसे अधिकार हैं, और यह मेरी जिम्मेदारी है कि सबकी सुरक्षा हो। मेरी सरकार धर्म, जाति या पंथ के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव को बर्दाश्त नहीं करेगी।
नेमप्लेट के आधार पर आतंकवाद नहीं
हमें नेमप्लेट के आधार पर आतंकवाद को नहीं देखना चाहिए। हमें यह भी नहीं देखना चाहिए कि वे किस समूह या आतंकी संगठन से जुड़े हुए हैं, उनकी भौगोलिक स्थिति क्या है, उनके शिकार कौन लोग हैं। ये नाम और लोग बदलते रहेंगे। आज आप तालिबान या आईएसआईएस को देख रहे हैं, कल इनके नाम कुछ और होंगे। हमें अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को लेकर यूएन के कन्वेंशन को पास करना चाहिए ताकि यह साफ-साफ पता चले कि आप किसे आतंकवादी मानते हैं या और किसे नहीं। हमें आतंकवाद और धर्म को अलग करना होगा ताकि आतंकवादी धर्म के नाम का इस्तेमाल न कर सकें। कई देश आतंकवाद को कानून व्यवस्था से जुड़ी समस्या मानते हैं। हमें इसे (आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई) इंसानी मूल्यों के लिए संघर्ष के रूप में देखना चाहिए।
संघीय ढांचे में काम बड़ी चुनौती
मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि मैं सरकार के संघीय ढांचे में पहली बार काम कर रहा था। अलग-अलग विभाग अलग-अलग तरीके से काम कर रहे थे, मानो वे अपने आप में एक सरकार हो। मेरी कोशिश यह रही है कि मैं इन विभागों के बीच की दीवारों को तोड़ सकूं ताकि समस्याओं के समाधान के लिए सामूहिक कोशिश की जा सके।
भारत-अमेरिका संबंध
यह मुद्दा नहीं है कि भारत अमेरिका के लिए क्या कर सकता है। मुद्दा यह भी नहीं है कि अमेरिका हमारे लिए क्या कर सकता है। हमें इस रिश्ते को इस तरह से देखना चाहिए कि भारत और अमेरिका एकसाथ दुनिया के लिए क्या कर सकते हैं...पूरी दुनिया में लोकतंत्र को मजबूत कर सकते हैं।
भारत-चीन संबंध
तीन दशकों में भारत और चीन सीमा पर तकरीबन शांति रही है। 25 सालों में सीमा पर एक भी गोली नहीं चली है। दोनों देश आर्थिक सहयोग के मोर्चे पर परिपक्वता दिखा रहे हैं। अफगानिस्तान में तालिबान के मजबूत होने पर अमेरिका फौजों का अफगानिस्तान से हटना, अमेरिका का फैसला है। लेकिन अफगानिस्तान में स्थिर सरकार के हित में यह जरूरी है कि वहां की सरकार के साथ सुरक्षा जरूरतों को लेकर बातचीत की जाए।
भारत में आर्थिक सुधार
पिछले साल (इस समय) कुछ भी नहीं हो रहा था। पूरी तरह पॉलिसी पैरालिसिस की स्थिति थी। कोई नेतृत्व नहीं था। मेरी सरकार के कार्यकाल को पिछली सरकार के 10 साल बनाम मेरी सरकार के 10 महीने के रूप में देखना चाहिए। पूरी दुनिया, एक बार फिर, भारत को लेकर उत्साहित है। आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक और मूडी जैसी क्रेडिट एजेंसियां, सभी एक आवाज में कह रहे हैं कि भारत का आर्थिक भविष्य उज्ज्वल है।