कोबरा पोस्ट का खतरनाक खुलासा : देश में सांप्रदायिक फसाद कराने को तत्पर दिखे दिग्गज मीडिया घराने
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : अपनी खोजी पत्रकारिता के लिए मशहूर कोबरा पोस्ट ने देश के मीडिया जगत की दिग्गज संस्थानों की पोल खोलने वाले खुलासे की दूसरी किश्त जारी की है। पहले की तरह दूसरी किश्त में भी तमाम दिग्गज मीडिया संस्थान पैसे की खातिर धार्मिक कट्टरता फैलाकर देश और ईमान की नीलामी करने को तत्पर दिखे। इस पूरी तहकीकात को ‘ऑपरेशन 136’ नाम इसलिए दिया गया क्योंकि वर्ष 2017 के प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत विश्व में 136वें पायदान पर है।
26 मार्च को जारी कोबरा पोस्ट के इस खुलासे में जिसे ऑपरेशन-136 नाम दिया गया है, की पहली किश्त में देश के कई नामचीन मीडिया संस्थान सत्ताधारी दल के लिए चुनावी लहर तैयार करने के लिए राजी होते नजर आए थे। इनमें इंडिया टीवी, दैनिक जागरण, सब टीवी नेटवर्क (श्री अधिकारी ब्रदर्स टेलीविज़न नेटवर्क), ज़ी सिनर्जी एंड डीएनए, हिन्दी खबर, 9एक्स टशन, समाचार प्लस, एचएनएन लाइव, पंजाब केसरी, स्वतंत्र भारत, स्कूपव्हूप, रेडिफ डॉट कॉम, आज (हिन्दी दैनिक), साधना प्राइम न्यूज़, अमर उजाला, यूएनआई जैसे मीडिया जगत के बड़े नाम शामिल थे। जिन चार बिंदुओं पर पहली किश्त में खुफिया कैमरे की सहायता से कोबरा पोस्ट ने मीडिया घरानों का काला सच उजागर किया था, उन्हीं बिंदुओं को आधार बनाकर दूसरी किश्त में टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडिया टुडे, हिंदुस्तान टाइम्स, ज़ी न्यूज़, स्टार इंडिया, नेटवर्क 18, सुवर्णा, एबीपी न्यूज़, दैनिक जागरण, रेडियो वन, रेड एफएम, लोकमत, एबीएन आंध्र ज्योति, टीवी-5, दिनामलार, बिग एफएम, के न्यूज़, इंडिया वॉयस, द न्यू इंडियन एक्सप्रेस, पेटीएम, भारत समाचार, स्वराज एक्सप्रेस, बर्तमान, दैनिक संवाद, एमवीटीवी और ओपन मैग्जीन से संपर्क साधा।
कोबरा पोस्ट ने जिन बिन्दुओं को लेकर स्टिंग किया उसका पहला बिंदु था, मीडिया संस्थान अभियान के शुरुआती और पहले चरण में हिंदुत्व का प्रचार करेगा, जिसके तहत धार्मिक कार्यक्रमों के माध्यम से हिंदुत्व को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके बाद दूसरे स्टेप में विनय कटियार, उमा भारती, मोहन भागवत और दूसरे हिंदुवादी नेताओं के भाषणों को बढ़ावा देकर सांप्रदायिक तौर पर मतदाताओं को जुटाने के लिए अभियान खड़ा किया जाएगा। तीसरे चरण के तहत जैसे ही चुनाव नजदीक आ जाएंगे, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को टारगेट किया जाएगा। राहुल गांधी, मायावती और अखिलेश यादव जैसे विपक्षी दलों के बड़े नेताओं को पप्पू, बुआ और बबुआ कहकर जनता के सामने पेश किया जाएगा ताकि चुनाव के दौरान जनता उन्हें गंभीरता से न ले और मतदाताओं का रुख अपने पक्ष में किया जा सके। चौथे चरण के तहत, मीडिया संस्थानों को यह अभियान उनके पास उपलब्ध सभी प्लेटफॉर्म पर जैसे- प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, रेडियो, डिजिटल, ई-न्यूज पोर्टल, वेबसाइट के साथ-साथ सोशल मीडिया जैसे- फेसबुक और ट्विटर पर भी चलाना होगा।
कोबरा पोस्ट के लिए पूरी तहकीकात पत्रकार पुष्प शर्मा ने श्रीमद्भगवद गीता प्रचार समिति, उज्जैन का प्रचारक बनकर और खुद का नाम आचार्य छत्रपाल अटल बताकर की। उन्होंने पूरी पड़ताल के दौरान हर जगह अपनी एक ही पहचान बताई और एक अनुभवी गीता प्रचारक के वस्त्र पहनकर दावा किया कि वे आईआईटी दिल्ली और आईआईएम बेंगलुरु के छात्र रहे हैं। पुष्प ने मीडिया संस्थानों को झांसे में लेने के लिए स्वयं को राजस्थान के झुंझुनू का रहने वाला बताया और कहा कि वे अब ऑस्ट्रेलिया में बस गए हैं और स्कॉटलैंड में अपनी ई-गेमिंग कंपनी चलाते हैं।
पत्रकार पुष्प ने अपनी सभी मान्य पहचानों का उपयोग किया, ताकि वे अपना एक अखिल भारतीय चरित्र दिखाकर मीडिया मालिकों को प्रभावित कर सकें. उन्होंने बताया कि वे अपने संगठन के आदेश पर आने वाले चुनावों में सत्ताधारी पार्टी की स्थिति को मजबूत करने के लिए एक गुप्त मिशन पर निकले हैं। उन्होंने अपने अभियान को चलाने के एवज में मोटी रकम देने की बात कही। लालच में आकर सभी मीडिया घरानों ने एजेंडे को हाथों-हाथ लिया।
कोबरा पोस्ट वेबसाइट का दावा है कि मौके को भुनाने के लिए लगभग सभी मीडिया संस्थानों ने अपने सिद्धातों से समझौता कर लिया। हालांकि, दो संस्थानों ने ऐसा न करके एक मिसाल भी पेश की। पश्चिम बंगाल की वर्तमान पत्रिका और दैनिक संवाद ने कोबरापोस्ट के पत्रकार के प्रस्ताव को सिरे से ठुकरा दिया। लेकिन बाकी सभी संस्थान आध्यात्मिकता और धार्मिक प्रवचन के जरिए हिंदुत्व को बढ़ावा देने के लिए सहमत होते नजर आए और सांप्रदायिक उद्देश्य के साथ मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने से संबंधित सामग्री प्रकाशित करने पर सहमत दिखे। सभी संस्थानों ने सत्ताधारी पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए उसके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ अपमानजनक सामग्री प्रकाशित करने पर भी सहमति जताई।
जो मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाती है और जिससे निष्पक्षता के साथ सरकार की आलोचना और आवाम की व्यथा को आवाज देने की उम्मीद की जाती है, कोबरा पोस्ट के ‘ऑपरेशन 136’ की दूसरी कड़ी में उसी मीडिया समूह के मालिकान बातचीत में खुद को हिंदुत्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा से जुड़े होने की बात गर्व के साथ कहते नजर आ रहे थे। साथ ही सांप्रदायिक मार्ग के साथ मतदाताओं को ध्रुवीकृत करने की क्षमता के साथ सामग्री प्रकाशित करने पर सहमत हुए।
जाहिर है इससे पत्रकारिता के मूल सिद्धांत, उसकी निष्पक्षता पर सवालिया निशान तो लगता ही है। उक्त मीडिया घरानों ने न केवल सत्ताधारी दल के पक्ष में स्टोरी चलाने पर सहमति जताई, बल्कि विरोधी दलों के खिलाफ बाकायदा एक जाल बुनकर अपनी टीम से उनकी तहकीकात कराने और उनके खिलाफ स्टोरी चलाने पर भी रजामंदी जाहिर की। कई संस्थान इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए बाकायदा विज्ञापन बनाने पर भी सहमत हुए। वे अपनी क्रिएटिव टीम तक को इस अभियान के उद्देश्य को पूरा करने में झोंकने के लिए तैयार थे।
कोबरा पोस्ट के मुताबिक, कुछ ने तो केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली, मनोज सिन्हा, जयंत सिन्हा, मेनका गांधी और उनके पुत्र वरुण गांधी के खिलाफ खबरें चलाने पर भी सहमति दी। यहां तक कि ये संस्थान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार में भाजपा के सहयोगी दलों के बड़े नेताओं जैसे अनुप्रिया पटेल, ओमप्रकाश राजभर और उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ भी खबरें चलाने के लिए तैयार थे। साथ ही, कुछ संस्थानों को आंदोलन करने वाले किसानों को माओवादियों के तौर पर प्रस्तुत करने से भी परहेज नहीं था। वे राहुल गांधी जैसे नेताओं के चरित्र हनन करने के लिए खास सामग्री तैयार करने और उसे बढ़ावा देने को भी राजी हो गए।
स्टिंग में लगभग सभी एफएम रेडियो स्टेशन अपने खाली एयर टाइम पर किसी खास ग्राहक को एकाधिकार देने के लिए भी तैयार हुए।
ऑपरेशन 136 की दूसरी कड़ी कोबरा पोस्ट द्वारा जारी करने से पहले ही दैनिक भास्कर दिल्ली हाई कोर्ट पहुंच गया था इसलिए कोबरा पोस्ट द्वारा खुलासे से अखबार का नाम दूर रखा गया है। कोबरा पोस्ट ने कहा है, 24 मई 2018 को मिले दिल्ली हाईकोर्ट के आदेशानुसार हम अपनी तहकीकात में दैनिक भास्कर समूह को फिलहाल शामिल नहीं कर रहे हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने हमारा पक्ष सुने बिना ही दैनिक भास्कर के पक्ष में आदेश पारित किया है और हम इस आदेश को चुनौती देंगे।
ऑपरेशन 136 की दूसरी कड़ी में कोबरा पोस्ट ने दावा किया है कि तकनीक के इस दौर में किसी भी खास एजेंडे को मोबाइल ऐप के जरिए जनता तक पहुंचाने में एक प्रभावी माध्यम ढूंढा जा सकता है जिसके संबंध में उन्होंने पेटीएम का उदाहरण पेश किया और कहा कि किसी खास एजेंडे को जन-जन तक पहुंचाने के लिए पारंपरिक मीडिया जैसे टीवी चैनलों या अख़बारों की जरूरत नहीं है। एक साधारण से मोबाइल ऐप के जरिए भी पलक झपकते ही वह वो कर सकते हैं जो पारंपरिक मीडिया की मदद से नहीं किया जा सकता है। स्टिंग के अनुसार पेटीएम के बड़े अधिकारियों से हुई बातचीत में न केवल इनकी भाजपा विचारधारा का खुलासा हुआ बल्कि संघ के साथ कंपनी के संबंधों की भी बात सामने आई है और यह भी साबित हुआ है कि पेटीएम पर उपभोक्ताओं का डाटा सुरक्षित नहीं है, जैसा कि कंपनी का दावा है।