सोहराबुद्दीन मामले: हाईकोर्ट ने मीडिया पर सीबीआई कोर्ट के गैग ऑर्डर को किया खारिज
सत्ता विमर्श ब्यूरो
मुंबई: मुंबई उच्च न्यायालय ने सीबीआई अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया है, जिसमें सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई की कार्यवाही की रिपोर्टिंग या प्रकाशन करने से पत्रकारों को रोका गया था। कोर्ट ने आदेश को पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया है। इस मामले में 29 नवंबर से ट्रायल शुरू होने के पहले दिन से ही मीडिया कवरेज पर प्रतिबंध लगा हुआ था। ट्रायल शुरू होने के बाद अब तक 40 गवाह कोर्ट में प्रस्तुत हुए हैं, इनमें 27 मुकर (होस्टाइल) हुए हैं। वहीं एक गवाह के बयान कुछ दस्तावेजों के चलते अभी पेंडिंग रखे हैं। मामले में आरोपी बनाए गए निरीक्षक, एसआई सहित 22 अधीनस्थ पुलिस कर्मी ट्रायल का सामना कर रहे हैं।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे ने बुधवार को कहा कि विशेष सीबीआई अदालत ने अपने अधिकार से बाहर जाकर यह आदेश पारित किया। यह याचिका न्यायालय के मामलों की रिपोर्टिंग करने वाले कुछ पत्रकारों और बॉम्बे यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट (बीयूजे) ने दायर की थी। इनमें द वायर के एडिटर सिद्धार्थ भाटिया, मिरर के सुनील बघेल, एनडीटीवी के सुनील सिंह, शर्मीन हकीम, नीता कोल्हातकर जैसे नाम शामिल हैं।
इस फैसले से साफ हो गया है कि अब इस मामले की सीधी रिपोर्टिंग हो सकेगी। उच्च न्यायालय ने पत्रकारों की इस बात पर सहमति जताई कि दंड प्रक्रिया संहिता के तहत केवल सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय को ही इस तरह की पाबंदी का आदेश जारी करने का अधिकार है। इस मामले में पत्रकारों की पैरवी वरिष्ठ वकील अबाद पोंडा और मिहिर देसाई ने की। मुंबई प्रेस क्लब ने इस फैसले का स्वागत किया है।
'पर्याप्त आधार नहीं'
न्यायमूर्ति रेवती ने कहा कि आरोपियों द्वारा सनसनी फैलाने की चिंता मात्र इस तरह के पाबंदी आदेश जारी करने का पर्याप्त आधार नहीं है। गौरतलब है कि विशेष सीबीआई अदालत ने पिछले साल 29 नवंबर को पत्रकारों पर इस मामले की सुनवाई की कार्यवाही की रिपोर्टिंग या प्रकाशन पर रोक लगाई थी। पिछले हफ्ते मुंबई की लॉयर्स असोसिएशन ने सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को बरी करने का विरोध किया था। उनकी जनहित याचिका का सीबीआई विरोध कर रही है। सीबीआई अदालत ने कहा था कि पत्रकार इस मामले की कार्यवाही को सुन सकते हैं, लेकिन वे इसे जनता तक नहीं पहुंचाएं। वहीं, उच्च न्यायालय का कहना है कि इस तरह की पाबंदी अनुचित है और यह आदेश पत्रकारों को अभिव्यक्ति की आजादी के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
क्या है सोहराबुद्दीन मामला?
आरोप है कि 26 नवंबर 2005 में हुई फर्जी मुठभेड़ में गुजरात और राजस्थान की पुलिस ने सोहराबुद्दीन की हत्या की बाद में उसकी पत्नी कौसर बी की भी हत्या कर दफना दिया था। साल भर बाद फर्जी मुठभेड़ के चश्मदीद तुलसीराम प्रजापति की भी फर्जी मुठभेड़ में मौत दिखाई गई। इस मुठभेड़ की साजिश का आरोप भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष अमित शाह पर है। उन पर कत्ल, अपहरण, सबूत मिटाने, साजिश जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। कथित तौर पर अहमदाबाद सर्किल और विशाला सर्किल के टोल प्वाइंट पर हुई सोहराबुद्दीन की हत्या की जद में गुजरात एटीएस के चीफ डीजी वंजारा और राजस्थान पुलिस के सुपरिटेंडेंट एम एन दिनेश भी आते हैं। इन पर फर्जी मुठभेड़ में सोहराबुद्दीन को मार गिराने का आरोप है।