नई उद्योग नीति में विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र पर जोर
सत्यप्रकाश
नई दिल्ली : सरकार ने नई उद्योग नीति जारी करने से पहले विनिर्माण और सेवा क्षेत्र नीति में बदलाव करने शुरू कर दिये है। नयी उद्योग नीति भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाई जा रही है। इसे उद्योगों के दीर्घकालिक हितों के अनुरूप तैयार किया जा रहा है। नीति में ऐसे उद्योग क्षेत्रों पर खास ध्यान दिया गया है जो भारतीय अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक ले जाने की क्षमता रखते हैं।
अगले कुछ सप्ताह में नई उद्योग नीति सार्वजनिक कर दी जाएगी। इसे अंतिम रूप देने का काम गंभीरता से चल रहा है। भारतीय बाजार का आकार बहुत बड़ा है और इसके दोहन के लिए विदेशी कंपनियों के साथ गठजोड़ करने पर विशेष जोर रहेगा। इसके लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी आवश्यक शर्त होगी। सरकार ने उच्च आर्थिक वृद्धि दर हासिल करने तथा रोजगार सृजन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वकांक्षी कार्यक्रम मेक इन इंडिया की एक कार्य योजना बनाई है जिसमें नीतिगत पहल, वित्तीय प्रोत्साहन, बुनियादी ढांचा, सुगम कारोबार, नवाचार और अनुसंधान एवं विकास तथा कौशल विकास जैसे 21 प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की गई है।
कार्य योजना के अनुसार, सरकार ने इन क्षेत्रों के लिए पूंजी उपलब्ध कराने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) नीति और प्रक्रिया को सरल बनाया है और इसका उदारीकरण किया है। रक्षा, खाद्य प्रसंस्करण, दूरसंचार, कृषि, फार्मा, नागरिक उड्डयन, अंतरिक्ष, निजी सुरक्षा एजेंसियां, रेलवे, बीमा और पेंशन तथा चिकित्सा उपकरणों जैसे प्रमुख क्षेत्रों को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोल दिया गया है।
हाल में ही केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने चैम्पियन क्षेत्रों के संवर्धन और उनकी सामर्थ्य को समझने के उद्देश्य से 12 निर्धारित चैम्पियन सेवा क्षेत्रों पर विशेष रूप से ध्यान देने के लिए वाणिज्य मंत्रालय के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। इनमें सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवाओं (आईटी और आईटीईएस), पर्यटन और आतिथ्य सेवाएं, चिकित्सा मूल्यांकन भ्रमण, परिवहन और लॉजिस्टिक सेवाएं, लेखा और वित्त सेवाएं, दृश्य श्रव्य सेवाएं, कानूनी सेवाएं, संचार सेवाएं, निर्माण और उससे संबंधित इंजीनियरिंग सेवाएं, पर्यावरण सेवाएं, वित्तीय सेवाएं और शिक्षा सेवाएं शामिल हैं।
सरकार ने इन क्षेत्रों से संबद्ध मंत्रालयों और विभागों को निर्देश दिया है कि निर्धारित चैम्पियन सेवा क्षेत्रों के लिए कार्य योजनाओं को अंतिम रूप देने और उनके कार्यान्वयन के लिए उपलब्ध क्षेत्रीय मसौदा योजनाओं का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। चैम्पियन क्षेत्रों की क्षेत्रीय कार्य योजनाओं को सहायता देने के लिए 5000 करोड़ रुपये का एक कोष बनाने का भी प्रस्ताव है। सूत्रों के अनुसार सरकार का मानना है कि योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी से सेवा क्षेत्रों में की प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था में इजाफा होगा। लोगों को अधिक नौकरियां मिलेगीं और वैश्विक बाजारों के लिए निर्यात बढ़ेगा।
भारतीय सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी वैश्विक सेवाओं के निर्यात में 2015 में 3.3 प्रतिशत थी जिसे वर्ष 2022 के लिए बढ़ाकर 4.2 प्रतिशत का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। सचिवों के समूह ने प्रधानमंत्री को भेजी गई सिफारिशों में 10 चैम्पियन क्षेत्र निर्धारित किए। इनमें सात निर्माण संबंधी क्षेत्र और तीन सेवा क्षेत्र हैं। चैम्पियन क्षेत्रों के संवर्धन और उनकी सामर्थ्य को हासिल करने के लिए यह फैसला किया गया कि मेक इन इंडिया का प्रमुख विभाग औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग (डीआईपीपी) निर्माण में चैंपियन क्षेत्रों की योजनाओ में प्रमुख भूमिका निभाएगा।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और देश की प्रतिष्ठित संवाद एजेंसी यूनीवार्ता में कार्यरत हैं।)