आदमी नहीं, हम झुनझुने हैं...
किरण राय
जिस तरह चाहो बजाओ इस सभा में,
हम नहीं हैं आदमी, हम झुनझुने हैं ।
दुष्यंत आज बहुत याद आ रहें हैं और वो हमेशा याद आते हैं जब राजनीति राज के लिए नहीं बल्कि अपने फायदे के लिए गढ़ी जाती है। हर दल अपने हिसाब, अपनी पसंद और अपने नफे के लिए जो मन चाहे वो हमारे सामने परोस कर रख देता है। और चूंकि हम झुनझुने हैं हमें वो अपने तरीके से बजाते हैं। गुजरात विधानसभा में प्रचार के दौरान जो हो रहा है ये इसकी ही बानगी है। गब्बर, नीच, सीडी, भावनात्मक अपील, गुजरात रो डीकरो...जाति, सम्प्रदाय सब पर बात हो रही है ना विकास को लेकर कोई कुछ कहना चाह रहा है और ना देश की बेहतरी के लिए उपयोगी कदम उठाने को तैयार है।
फिल्मों को समाज का आईना कहा जाता है। हैरत है कि राज कपूर की श्री 420 में भी राजनीति का वही दौर देखने को मिलता है जो 60 की लीडर, 70 की गर्म हवा, 2010 की राजनीति और ऐसी तमाम फिल्मों में। फिल्मों में राजनेता देश के लिए कम अपनी पार्टी के विकास के लिए ज्यादा फिक्रमंद दिखता है। इन दिनों ऐसे ही एक ग्रैंड इंडियन पॉलिटिकल उत्सव को हम लोग देख रहें हैं। इसमें किसी दूसरे का डायलॉग कब तकिया कलाम बना कर पेश कर दिया जाए, पता ही नहीं चलता। हैरानी होती है कि जिन्हें हम राजनीति के दिग्गज मानते हैं वो छिछले और थोथे बयान देते हैं।
अय्यर का देश के बड़े पद पर बैठे प्रधानसेवक को नीच भर कहने की देरी थी कि हैश टैग के जमाने में # नीच फलां चलने लगा। कीचड़ उछालने में कौन कितना सजग और स्फुर्तिमान है इसकी होड़ सी दिखने लगी। मणिशंकर जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता का बयान उनकी पार्टी के लिए ही (ऐन चुनाव से दो दिन पहले) सकते में डालने वाला रहा। कोई भी शख्स जो राजनीतिक मर्यादाओं और इसमें उठते ज्वार-भाटे को समझता है वो निश्चित तौर पर कह सकता है कि अय्यर ने नासमझी या नादानी में तो शब्द नहीं उछाला है। देश में बयान वीरों की बाढ़ सी आ गई है। अय्यर ने बयान दिया और उधर भगवा पार्टी ने उसे जोर से लपक लिया। प्रधानमंत्री तक ने नीच का फायदा उच्च दर्जे की लोकप्रियता पाने के लिए कर डाला। नीच किस्म को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी जाति और गुजरात की अस्मिता से जोड़ दिया...प्रधानमंत्री जी आपने देश की संस्कृति के साथ ऐसा क्यों किया?
दूसरे दौर की वोटिंग से पहले भी वोट बटोरने की कोशिशों में जी जान से जुटे हैं सभी दल। जीत का यकीन और बैखलाहट सब में है। वोटर्स को अब सांप्रदायिकता का चश्मा पहनाया जा रहा है। बात पाकिस्तान, आईएसआई, अहमद पटेल से होते हुए गुजरात के सम्मान तक पहुंच गई है। प्रधानसेवक जब- मेरे लिए पाकिस्तान को क्या सुपारी दी गई थी? पाकिस्तान उच्चायोग से कांग्रेसियों की मुलाकात क्यों हुई थी? या फिर पाक अहमद पटेल की सिफारिश क्यों कर रहा है?... ऐसे सवाल पूछने लगे तो बगले झांकनें का मन करता है। जिस देश के खिलाफ हमने सर्जिकल स्ट्राइक की, जिसकी वजह से हमारे जवान आए दिन शहादत पा रहें हैं आखिर ऐसे देश को तूल क्यों दिया जाए... ये तो अपने आप में दर्दनाक और सोचनीय बयान है। इससे कहीं ना कहीं हमारे देश की सरकार की लाचारगी दिखती है।
ये भी कम अचंभे की बात नहीं कि जनता का पैसा जा रहा है वही जो हम टैक्स के तौर पर चुकाते हैं और सरकारें चलती हैं। इन दिनों हमारा पैसा देश के प्रधानसेवक को समर्पित है। मीडिया में कहीं भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह या किसी बड़े नेता को उतनी कवरेज नहीं मिल रही जितनी अपेक्षित थी। सरकारी मशीनरी प्रधानमंत्री के नाम पर पार्टी विशेष को फायदा पहुंचाने में जुटी है। प्रदेश का चुनाव इतना अहम है कि देश की संसद ठप्प है। वित्त मंत्री अरूण जेटली कहते हैं पहले ऐसे कई बार हुआ है। तो जेटली जी आपने खुद को उनसे अलग माना था। बात 70 साल के गड्ढे को भरने की हुई थी...फिर ऐसा क्यों?
चीड़-वन में आँधियों की बात मत कर,
इन दरख्तों के बहुत नाजुक तने हैं ।