रोजगार सृजन और मोदी सरकार की उम्मीदें
सत्य प्रकाश
रोजगार के नए अवसर सृजित करने और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार की उम्मीदें साल 2016 में छोटे उद्योंगों पर टिकी रही और इनके विकास के लिए खरीद नीतियों में आमूल-चूल बदलाव के अलावा अखिल भारतीय स्तर की एक सेवा के गठन का फैसला भी किया गया।
सरकार ने साल के अंत में केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और एवं मध्यम उद्योग मंत्री कलराज मिश्र का सुझाव स्वीकार कर लिया और उद्योगों के विकास के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा की तर्ज पर ‘भारतीय उद्यम विकास सेवा’ के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। यह सेवा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय के तहत विकास आयुक्त के अधीन होगी। सरकार के इस निर्णय से नए कैडर का गठन होगा और संबंधित ढांचा बदलेगा। इससे स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया और मेक इन इंडिया को प्रोत्साहन मिलेगा। सरकार के इस कदम से संगठन की क्षमता और योग्यता में इजाफा होगा तथा छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा।
छोटे उद्योगों के विकास के लिए सरकार ने एक समग्र नीति लाने का फैसला किया है। पूर्व कैबिनट सचिव प्रभात कुमार की अगुवाई वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति को इस नीति का मसौदा तैयार करने को कहा गया है। इसका मुख्य उद्देश्य इस क्षेत्र से जुड़ी विभिन्न नीतियों को एकीकृत करना और एक व्यापक नीति पेश करना है। विनिर्माण क्षेत्र में छोटे उद्योगों का 40 फीसदी योगदान और निर्यात में 45 फीसदी योगदान है लेकिन इनके विकास के लिए फिलहाल कोई भी एकीकृत अवधारणा नहीं है।
आलोच्य वर्ष में सरकार की प्राथमिकता छोटे उद्योगों के उत्पादों की ब्रिकी बढाने पर रही। इसके लिए सार्वजनिक खरीद नीति में बदलाव की प्रक्रिया तेज की गयी। इसके तहत केंद्र सरकार के सभी विभागों और केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों में खरीद की जाती है। समीक्षा के दौरान यह पाया गया कि छोटे उद्योगों से खरीद की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से भी कम है जबकि इसका 20 प्रतिशत होना अनिवार्य है। इसके अलावा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति उद्यमिता हिस्सेदारी चार प्रतिशत के अनिवार्य स्तर के मुकाबले 0.2 प्रतिशत से भी कम है। केंद्र के शीर्ष 50 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की पहचान करने और मंत्रियों के स्तर पर एक बैठक की गयी।
सरकार ने स्टार्टअप के लिए मानदंडों में ढील देने का निर्णय लिया। छोटे उद्योग निर्धारित तकनीकी और गुणवत्ता मानकों के अनुसार वस्तुओं एवं सेवाओं की आपूर्ति कर सकते हैं, तो उनके लिए पूर्व अनुभव और पूर्व कारोबार से जुड़े मानदंडों में ढील दी जाएगी। इससे छोटे उद्योगों से 20 फीसदी की अनिवार्य सरकारी खरीद में स्टार्टअप को भी भाग लेने में मदद मिलेगी।
सरकार को मानना रहा है कि वर्ष 2016-17 और ज्यादा आवंटन एवं अपेक्षाकृत अधिक रोजगारों के सृजन के साथ छोटे उद्योगों के लिए विकास वर्ष साबित होगा। आवंटित 3,000 रुपये करोड़ रुपये के इस्तेमाल और प्रमुख योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए एक समयबद्ध कार्य योजना तैयार की है जिनमें प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम और एस्पायर आदि शामिल हैं।
सरकार के लिए खादी उद्योग रोजगार के अवसर सृजित करने का प्राथमिकता केंद्र रहा। इसके लिए सरकार लगातार नीतियों में बदलाव और सुधार करती रही। खादी के प्रतीक राजधानी के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर दुनिया के सबसे बड़े चरखे का लोकार्पण किया गया। देश के व्यस्तम हवाई अड्डे पर विश्व के सबसे बड़े चरखे के प्रदर्शन के पीछे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों को सामने लाना है। चार टन भारी बर्मा सागवान की लकड़ी से बने इस चरखे के जीवन काल का अनुमान 50 साल से अधिक लगाया गया है। यह नौ फुट चौड़ा, 17 फुट ऊंचा और 30 फुट लंबा है।
स्कूलों और अन्य संस्थानों में खादी को प्रोत्साहन देने पर जोर दिया गया। इसके लिए खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने खादी डेनिम और खादी टी-शर्ट बनाने सहित देश के युवाओं को लुभाने के लिए डिजाइनिंग और उत्पादों की आक्रामक मार्केटिंग की। देश के विभिन्न इलाकों में नई दुकानें खोलने के लिए फ्रेंचाइजी प्रणाली शुरू की गयी। इसके अलावा 185 खादी संस्थानों की दुकानों का आधुनिकीकरण और कम्प्यूटरीकरण किया गया है, जिसके परिणाम स्वरूप 20 प्रतिशत से 30 प्रतिशत तक बिक्री बढ़ी है।
खादी और खादी के उत्पादों को उचित ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराने के लिए प्रतिष्ठित खुदरा विक्रेताओं के साथ करार कार्य कर रहे हैं और प्रतिष्ठित फैशन डिजाइनरों के साथ समझौते किए गए हैं। हवाई अडडों पर पर नये शोरूम खोले गए हैं और अच्छे व्यापार की संभावनाओं वाले स्थानों तथा पर्यटन स्थलों पर विशेष खादी प्लाजा खोलने के बारे में भी विचार किया जा रहा है। ई-वाणिज्य पोर्टल के जरिए खादी और ग्रामोद्योग के उत्पाद उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे हैं। खादी उत्पाद के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए ग्रामोद्योग आयोग को ‘डीम्ड निर्यात संवर्धन परिषद’ का दर्जा दिया गया है, जिसके तहत उसने 900 से अधिक निर्यातकों को पहले से ही पंजीकृत कर लिया है।
छोटे उद्योग क्षेत्र में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों की अधिकता को देखते हुए ‘राष्ट्रीय एससी एवं एसटी केंद्र’ की स्थापना की गयी। इससे यह एससी एवं एसटी उद्यमियों को प्रोत्साहन देगा। राष्ट्रीय एससी एवं एसटी केंद्र के लिए वर्ष 2016-17 के लिए 490 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। यह केंद्र बाजार पहुंच , निगरानी क्षमता निर्माण, वित्तीय समर्थन लाभ देने और उद्योग के सर्वश्रेष्ठ पद्धति आदि को साझा करने में मदद देगा।
छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी के महत्व को स्वीकार करते हुए विदेशों के साथ करार किए गए। मॉरिशस के साथ जैव कृषि की प्रौद्योगिकी के लिए समझौता किया। इसके तहत प्रसंस्करण उद्योंगों को उच्च प्रौद्योगिकी मिल सकेगी। इसी तरह के करार जर्मनी, ब्रिटेन और पूर्वी एशिया के देशों के साथ भी किए गए।
भारत ने छोटे उद्योगों का अनुभव अफ्रीकी देशों के साथ बांटने के भी करार किए हैं। इस समझौतों में प्रशिक्षिकों के प्रशिक्षण के जरिए क्षमता निर्माण, सक्षम क्षेत्रों का सर्वेक्षण, प्रबंधकीय और तकनीकी कौशल, विपणन, प्रदर्शनी एवं व्यापार मेलों का आयोजन, व्यापार गतिविधियों का आदान-प्रदान, वित्त तक आसान पहुंच शामिल हैं। नारियल रेशा उद्योग, खादी और हस्तशिल्प वर्ग के विभिन्न क्षेत्रों के लिए कार्य योजना तैयार करने पर भी सहमति व्यक्त की गई।
(लेखक यूएनआई में वरिष्ठ पत्रकार हैं और आर्थिक विषयों के जानकार भी। इस आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता अथवा सच्चाई के प्रति सत्ता विमर्श उत्तरदायी नहीं है। आलेख में दी गईं सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)