साफ नीयत-सही विकास या विश्वासघात?
प्रवीण कुमार
भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के चार साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है। एक तरफ जहां भाजपा के नेता और राजग सरकार के प्रधानमंत्री व मंत्री अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान करते थक नहीं रहे, वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस इसे देश की जनता से विश्वासघात करार दे रही है। हालांकि किसी भी सरकार के कामकाज की समीक्षा करने के लिए चार साल का वक्त बहुत ज्यादा नहीं होता है, लेकिन चूंकि जब सामने सरकार का मुखिया नरेंद्र मोदी जैसा नेता हो तो कामकाज की समीक्षा न करना भी गलत होगा। क्योंकि नरेंद्र मोदी देश के ऐसे इकलौते प्रधानमंत्री के रूप में जाने जाते हैं जो सिर्फ देश के लिए जीते हैं और प्रतिदिन 16 से 18 घंटे तक काम करते हैं। अगर आप 2013-14 का वो दौर याद करें जब नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान में अपनी लगभग हर जनसभा और चुनावी रैली में यह कहते नहीं थकते थे कि आपने कांग्रेस पार्टी को 60 साल दिए हैं, मुझे सिर्फ 60 महीने दीजिए। कांग्रेस पार्टी की सरकार जो काम 60 साल में नहीं कर पाई, भाजपा की सरकार उसे 60 महीने में कर दिखाएगी। देश की जनता ने नरेंद्र मोदी की लीडरशिप में भारतीय जनता पार्टी पर पूरा भरोसा जताया और 2014 में करीब तीन दशक बाद दिल्ली की केंद्रीय सत्ता में किसी एक पार्टी (भाजपा) की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी और नरेंद्र मोदी बने देश के प्रधानमंत्री। जीत का सिलसिला यहीं नहीं थमा। 2014 के बाद देश के अधिकांश राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और अमित शाह के चुनावी गणित ने जीत के परचम लहराए और आज की तारीख में आधे से अधिक राज्यों में भाजपा या भाजपा समर्थित दलों की सरकार चल रही है।
देश ने व्यक्त किया विश्वास,
कालाधन वापस लाने के नाम पर,
सुशासन और राष्ट्रीय सुरक्षा के काम पर,
किसानों की फसलों के उचित दाम पर,
युवाओं के रोजगार के इंतजाम पर,
पेट्रोल-डीजल की कीमतों की लगाम पर,
फिर चार सालों में देश को क्या लगा हाथ?
सिर्फ विश्वासघात।दलितों का हो रहा दमन,
सीमाओं पर सिमट रहा अमन,
बलात्कारियों को सरकारी साथ है,
यही तो विश्वासघात है।देश के भाईचारे पर वोटों की बिसात है,
नफरत और बंटवारे से उनका चोली-दामन का साथ है,
बैंक के लुटेरों से उनकी पुरानी मुलाकात है,
भय, भूख और भ्रष्टाचार तो कोरी बात है,
ऐसे ही तो किया विश्वासघात है।देश को मिली बस रैलियां,
रेडियो पर मनमानी बात और
भाषणों की कोरी सौगात है,
यही तो विश्वासघात है।देश के विश्वास में विष को घोलकर,
नाकामियों को पिछली सरकारों पर छोड़कर,
देश के विश्वास को पहुंचाया गहरा आघात है,
यही तो विश्वासघात है।
यही विश्वासघात है।
(कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला के सौजन्य से)
कहने का मतलब यह कि देश की जनता ने केंद्रीय सत्ता से लेकर राज्यों की सत्ता को मोदी नीत भाजपा के हाथों में सौंपकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि 2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए राज्यों के चुनावों में जो भी दावे और वादे आपने किए हैं उसे एक निश्चित समयावधि में पूरा नहीं करने का कोई भी बहाना स्वीकार्य नहीं होगा। अब जबकि केंद्र की मोदी सरकार के कार्यकाल के अंतिम वर्ष का शुभारंभ हो चुका है और देश की जनता तथा तमाम विपक्षी दल दावे-वादे का हिसाब-किताब पूछ रहे हैं तो चाहे वो प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी हों, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह हों, मोदी मंत्रिमंडल के मंत्री हों या फिर भाजपा के तमाम दिग्गज नेता हो, सभी एक स्वर में सीधा-सीधा कुछ भी बताने से बचते हुए नए नारे के साथ यह कहने लगे हैं कि 48 महीने की सरकार ने 'साफ नीयत, सही विकास' को मूल मंत्र मानकर काम किया है। हमारे पास एक साल का वक्त अभी बाकी है। वक्त के साथ जनता से किए सभी वादों को सरकार पूरे करेगी। मतलब 60 साल बनाम 60 महीने का जो नारा नरेंद्र मोदी ने 2014 में चुनाव से पहले दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि देश की सारी समस्याओं मसलन गरीबी, बेरोजगारी, खेती-किसानी, महंगाई, लॉ एंड ऑर्डर आदि- आदि का समाधान सिर्फ मोदी ही कर सकता है, देश में 'अच्छे दिन' सिर्फ मोदी ही ला सकता है, विशुद्ध तौर पर जुमलेबाजी जैसा साबित होता दिख रहा है। 48 महीने यानी चार साल का वक्त बीत चुका है। चार साल के प्रदर्शन के आधार पर इस बात को कहने में कोई झिझक नहीं कि मोदी सरकार पीछे की तरफ जा रही है।