अमन को पलीता लगा वोट हथियाने की जुगत!
राजीव रंजन तिवारी
अमन और मोहब्बत से खेलना आज के राजनीतिक नेताओं का फैशन बन गया है। वोट के खातिर जातीय व धार्मिक भावनाओं को भड़काकर हिंसा की आग में अवाम को झोंक देना इनकी फितरत बन गई है। नियम-कानून को ताक पर रखकर कुछ नेता स्वयंभू सुप्रीम बन गए हैं। वे शायद यह भूल गए हैं कि इस लोकतांत्रिक देश में जनता जिसे चाहेगी, वही सिरमौर होगा। आखिरकार यह पूछा जाने लगा है कि हाल के बिहार-बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा से कुछ लोग क्या पाना चाहते हैं? क्या धार्मिक भावनाएं भड़काकर वोट हासिल कर लेने से उन्हें सुकून मिल जाएगा। शायद नहीं। अमन को पलीता लगाकर वोट हासिल करना ठीक बात नहीं है। नेताओं को समझना चाहिए कि देश का सामाजिक ताना-बाना काफी सुदृढ़ है। इसे मजबूत बनाना सबकी जिम्मेदारी है।
हिन्दू-मुस्लिम की बातें कर समाज को बांटना कहीं से तर्कसंगत नहीं लगता, लेकिन कुछ लोग इसी पर अमादा हैं। उन्हें लगता है कि समाज को बांटकर वे बड़ी उपलब्धि हासिल कर लेंगे। दुर्भाग्य यह है कि दंगाइयों पर किसी का अंकुश नहीं चलता। वे जो मन में आता है, वही करते हैं। एक उदाहरण देखिए। 17 मार्च, 2018 को बिहार के भागलपुर में भारतीय नववर्ष समिति की अगुवाई में एक जुलूस निकाला जाना था। ये जुलूस हिंदू नव वर्ष का जश्न मनाने के लिए था, जो अगले ही दिन 18 मार्च को पड़ रहा था। इस जुलूस को निकालने के लिए भारतीय नववर्ष समिति ने एसडीओ ऑफिस में जुलूस निकालने की अनुमति मांगी थी। लेकिन एसडीओ ऑफिस की तरफ से समिति को जुलूस निकालने की इजाज़त नहीं दी गई। इसके बावजूद 17 मार्च को जुलूस निकाला गया। स्थानीय लोगों के मुताबिक अपनी खुशी ज़ाहिर करने के अलावा इस जुलूस का मकसद दूसरों को देशभक्ति साबित करने के एक नए पैमाने से परिचित कराना भी था। फिर क्या हुआ वह बताने की जरूरत नहीं।
इसी तरह से पश्चिम बंगाल में भी हिंसा की शुरुआत पुरुलिया जिले के भुरसा गांव से हुई। 25 मार्च को रामनवमी के दिन शोभायात्रा निकाली जा रही थी। स्थानीय लोगों के मुताबिक करीब 25 साल से ये यात्रा हर साल निकलती थी। लेकिन पिछले दो वर्षों में इस यात्रा और इसके तौर तरीके में काफी बदलाव आया है। पश्चिम बंगाल में शारदीय नवरात्र में पड़ने वाली दुर्गा पूजा बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। पूरी दुनिया से लोग यहां पर दुर्गा पूजा देखने के लिए शारदीय नवरात्र में आते हैं, लेकिन चैत्र नवरात्र में वो उत्साह कभी नहीं रहा है। पिछले कई साल से यात्राएं निकलती हैं, लेकिन उनको उतनी तरजीह कभी नहीं मिली है। लेकिन जब से भाजपा ने पश्चिम बंगाल में अपनी सियासी जड़ें जमाने की कोशिशें तेज की हैं, चैत्र नवरात्र में निकलने वाली शोभा यात्राओं की संख्या में इजाफा हुआ है। हर साल की तरह इस साल भी पुरुलिया के भुरसा गांव में यात्रा निकाली गई। फर्क सिर्फ इतना था कि यात्रा में लोगों के हाथों में त्रिशूल, गदा और तलवार जैसे हथियार थे। वे लोग जय श्री राम और मंदिर वहीं बनाएंगे जैसे नारे लगा रहे थे। लेकिन अचानक से जुलूस का रास्ता बदल दिया गया। जुलूस निकालने के लिए जिस रास्ते की इजाजत प्रशासन ने दी थी, उसे अचानक से बदलने पर गांव में खलबली मच कई। कोशिश की गई की जुलूस शांति से निकले, लेकिन जुलूस निकालने वाले लोग बेहद अक्रामक थे और वे एक विशेष समुदाय के लोगों से झगड़ा करने पर उतारू थे। इसी दौरान हिंसा भड़की। पुलिसवालों ने हिंसा को रोकने की कोशिश की, लेकिन इस कोशिश में पुलिस के चार जवान घायल हो गए। किसी तरह से वहां फोर्स लगाई गई और 17 लोगों को गिरफ्तार कर मामले को शांत किया गया। लोगों को लगा कि मामला शांत हो गया है। लेकिन देर शाम गांव में ही शौच के लिए गए शेख शाहजहां नाम के शख्स पर भीड़ ने हमला कर दिया, जिसमें शाहजहां की मौत हो गई। धीरे-धीरे बंगाल के कई जिले हिंसा की चपेट में आ गए।
इन सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के बाद सबसे बड़ा सवाल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भूमिका को लेकर उठा है। पूछा जा रहा है कि उनके पास क्या विकल्प हैं? यह सवाल बार-बार उठ रहा है। केंद्रीय मंत्री और बिहार से भाजपा सांसद अश्विनी चौबे के बेटे अरिजीत शाश्वत नीतीश कुमार को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं। बिहार के सीएम ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि उनके धुर विरोधी बन चुके तेजस्वी यादव की तरह ही एनडीए की अंदर ही कोई चुनौती बन जाएगा। भागलपुर में दंगा भड़काने के मामले में अरिजीत के खिलाफ कोर्ट ने वारंट जारी किया गया और फिर गिरफ्तार भी किया गया। नीतीश कुमार ने 2013 में ही सांप्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता के सवाल पर एनडीए से नाता तोड़ा था। लेकिन भाजपा से हाथ मिलाने के बाद अभी जो हालात बने हैं और उस पर भाजपा नेताओं के बयान उनकी सुशासन और धर्मनिरपेक्ष छवि पर गहरी चोट पहुंचा रही है। हालांकि जेडीयू की ओर से भाजपा को एक कड़ा संदेश देने की भी कोशिश की गई है। बिहार में कानून व्यवस्था को लेकर उठे सवाल पर नीतीश सरकार से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकार कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं करेगी और इसके लिए चाहे कोई भी कीमत चुकानी पड़े। लेकिन हालात इसके उलट हैं। जानकार मानते हैं कि नीतीश कुमार की राजनीतिक स्थिति सांप-छुछूंदर वाली हो गई है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर करना क्या है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं।)