गौरी लंकेश की हत्या किसने की?
एक आजाद विचार, आजाद सोच और कट्टर हिंदुत्व के खिलाफ मुहिम छेड़ने वाली महिला पत्रकार गौरी लंकेश की मंगलवार रात को कुछ समाज विरोधी ताकतों ने बेंगलुरु में हत्या कर दी। इस हत्याकांड के विरोध में दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के परिसर में बुधवार को पत्रकारों ने अपनी आवाज बुलंद की। विरोध सभा में एनडीटीवी इंडिया के पत्रकार रवीश कुमार ने भी अपनी बात रखी जो इस प्रकार से है...
शुक्रिया मृणाल जी, कोशिश करेंगे, उस हद को पार न करें, लेकिन कल जब से गौरी की हत्या हुई है और यह खबर आई है, मैं देख रहा था कि हमारे आसपास कितने हत्यारे हैं। सोशल मीडिया और ट्विटर के टाइमलाइन पर हत्यारों का या हत्या की मानसिकता का समर्थन करने वालों का एक हुजूम उमड़ा, जो बिना किसी शर्म, संकोच या किसी सीमा, बंदिश के इस हत्या को तरह-तरह के सवालों का राइडर लगाकर जायज ठहराता रहा। कभी वो इसमें कश्मीर का सवाल ठेल रहा था, कभी वो केरल का सवाल ठेल रहा था। हर सवाल का जवाब इस हत्या से उसे पहले चाहिए। हमें शायद अपनी एकजुटता से इस सवाल पर बने रहना चाहिए कि हमें सबसे पहले इसका जवाब चाहिए कि गौरी की हत्या किसने की है। इसकी जांच होगी कि नहीं होगी, सिद्धरमैया करेंगे कि नहीं करेंगे, वह एक नाकारा इंसान हैं, उनसे कलबुर्गी की हत्या के मामले में भी कुछ नहीं हुआ। वो अगर चाहते तो खुलकर फ्रंट-रो पर लड़ सकते थे और इसकी जांच को, कलबुर्गी की जांच को, एक पेशेवराना अंदाज़ में एक नतीजे पर पहुंचा सकते थे, नहीं पहुंचाए।
इसका मतलब यह नहीं कि महाराष्ट्र में जिनकी सरकार है, उन्होंने दाभोलकर और पानसारे के मामले में बहुत अच्छा काम किया है। वहां बीजेपी की सरकार है, उसका भी रवैया वही है तो सरकार, हम पार्टियों के हिसाब से जितना चाहे, बंट जाएं, वे हमारे ही खिलाफ हैं। आप चाहें महाराष्ट्र के उदाहरण से देख लीजिए या फिर कर्नाटक के उदाहरण से देख लीजिए। ऐसा कभी और कहीं नहीं हुआ कि हत्या को इतना लोगों ने जस्टिफाई किया हो। मुझे दुःख है कि जिस व्यक्ति को हिन्दुस्तान की जनता ने इतनी चाहत से गद्दी सौंपी है वो व्यक्ति ऐसे लोगों को फॉलो करता है, जो किसी के मरने पर कुतिया लिखता है। मुझे दुःख है अपने प्रधानमंत्री पर, क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री चाहे जितनी शिकायत कर लें इस देश से, वो यह शिकायत नहीं कर सकते कि जनता ने उन्हें सत्ता सौंपने में कोई कमी की है।
उन्होंने जैसा बहुमत मांगा, वैसा ही बहुमत, उससे ज़्यादा बहुमत हर राज्य में और हर जगह दिया है, तो प्रधानमंत्री बताएं कि उनके पास ऐसा वक्त कहां से आया, कैसे आया, जबकि उनको सेवा करने के लिए इतना सारा, सोने का समय नहीं होता, जैसे उनकी प्रोपैगंडा टीम बताती है तो वह यह बताएं कि उनके पास यह वक्त कब मिला कि वह दधीचि जैसे लड़कों को फॉलो कर रहे थे। वह यह बताएं और चीन और बर्मा से जब वो लौटें, तो पहला काम यही करें कि दधीचि को अनफॉलो करें। और वह यह बताएं, यह कहें कि हमसे गलती हुई है। जब तक यह व्यक्ति माफी नहीं मांगेगा और मैं अपनी पार्टी के लोगों से कहता हूं कि यह हिन्दुत्व नेशनलिस्ट नहीं है। यह हम सबको एक नागरिक के तौर पर अपने प्रधानमंत्री से मांग करनी चाहिए कि आपने क्यों दधीचि को फॉलो किया हुआ है। वो ऐसा क्या कॉन्ट्रीब्यूट करता है जो हिन्दुस्तान की 80 फीसदी आबादी जो है, आपको वोट देते समय, 30 फीसदी आबादी वोट देते समय नहीं कर सकती है। इस आदमी ने, क्या यह आदमी, या ऐसे आदमी आपको जिता रहा है। क्या ऐसे आदमी की ज़रूरत है आपको सत्ता में पहुंचने के लिए। उनसे इस सवाल का जवाब हमको मांगना चाहिए।
गौरी लंकेश का जो आखिरी संपादकीय है, मैं उस पर कुछ कहना चाहता हूं, हो सकता है आप लोग तक न पहुंचे. मैं आज वार्ता भारती के अपने मित्र के ज़रिये कन्नड़ में लिखे उनके उस संपादकीय को पढ़ रहा था और अनुवाद कर रहा था, उनकी मदद से। वो फेक न्यूज़ पर ही लिखा हुआ है और उसको पढ़कर लगता है कि फेक न्यूज़ को हम भले ही दिल्ली-सेंट्रिक देखते हैं, मगर राज्यों में भी उस तरह से इतना बवाल मचाया हुआ है जो लोगों को लगातार हिन्दू-मुस्लिम के दायरे में बांट रहा है। हममें से रोज कुछ लोग काला कोट पहनकर रात को 9 बजे देश को ऐसे मुद्दों में झोंक रहे हैं, जो आपको हिन्दू बनाम मुसलमान में ले जाते हैं। रोज़ यही काम है और वही तरह-तरह के फेक न्यूज़ के प्रोपैगंडा, इसी के खिलाफ गौरी लंकेश ने लिखा था। तो वह जो लिख रही थीं, वह ठीक है कि अभी हत्या का कारण पता नहीं चला, मारने वालों का पता नहीं चला, लेकिन उनके लिखने के मिजाज के हिसाब से किसी ने उनके प्रति सहानुभूति प्रकट की है, तो गलत नहीं किया है। इसके नाम पर आप केरल और कश्मीर ठेल-ठेलकर, सरकार से मांगना चाहिए कि आप श्वेतपत्र दे दीजिए कि आपने तीन साल में कश्मीरी पंडितों के लिए क्या किया है। आप क्या कर रहे हैं, आप यही दे दीजिए।
यह जो हत्या हुई है, यह लगातार हो रही है और गौरी लंकेश की हत्या के बहाने हर किसी के टाइमलाइन पर हत्यारों की फौज है, और जो भी लिखना चाहता है उनकी सहानुभूति में, हो सकता है उन्हीं का मतदाता हो, उन्हें भी डराया जा रहा है। अभी किसी ने पूछा, आप यहां क्यों आए हैं। हमने कहा, हम अपने लिए तो नहीं आए हैं। हम इसलिए आए हैं कि एक गौरी लंकेश को मारकर यह जो संदेश दिया जा रहा है व्यापक जनता को, कि आप भी चुप रहिए, आपकी नौकरी चली गई है, स्कूल की फीस महंगी हो गई है, आप मत बोलिए, वरना आपकी हालत गौरी लंकेश सी होगी और समाज को हमने ऐसा तैयार कर दिया है कि आपकी लाश बिछी होगी और वह उस पर मुस्कुरा रहा होगा समाज, और हंस रहा होगा। ये हमारा कायदा नहीं है। ये हमें बताना पड़ेगा साफ-साफ कि जिनकी भी सरकारें हैं वहां पर, उन्हें यह सुन और समझ लेना चाहिए। तरीका खोज लेना चाहिए कि हम बार-बार श्रद्धांजलि देने के लिए ही हम यहां जमा न हों। ये हमारी हार होती जाएगी कि हम हर बार यहां श्रद्धांजलि के लिए इकट्ठा हों।
ये अच्छा नहीं है, हम जो बंट रहे हैं उससे हमें क्या हासिल हो रहा है उसे हमें देखना चाहिए। हमने जिन सरकारों और नेताओं की करतूतों पर पर्दा डालना शुरू कर दिया है अपनी राजनीतिक और वैचारिक वफादारी के चलते, यह हम अच्छा नहीं कर रहे हैं। वे भी अच्छा नहीं कर रहे हैं जो विरोध के नाम पर विरोध करते हैं और समर्थन के नाम पर समर्थन किए जाते हैं। ये दोनों ही इसमें बराबर के कसूरवार हैं। इसलिए इस बात का ख्याल रखें कि ये हत्या एक और हत्या की कहानी न बन जाए और हम एक अन्य श्रद्धाजंलि पर मिलने का कार्यक्रम बना रहे हों। कल रात से ऐसा लग रहा है कि जैसे मैं जिंदा लाश हूं, लोगों ने मुझे गोली मार दी है और आप लोग मेरी लाश ढोकर चल रहे हैं। देशभर से इतने सारे शुभचिंतक, पाठक और दर्शकों ने लिखा है कि आप अकेला बोलना छोड़ दो, आप का भी ये यही हाल कर देंगे। गृहमंत्री और प्रधानमंत्री से लिखो कि सुरक्षा दें। अरे भाई, जब चमचों को सुरक्षा नहीं दे पाए, केवल दो-चार को ही एसपीजी सुरक्षा मिली है तो वे हमें कहां से देंगे और कितने पत्रकार एसपीजी लेकर चलने वाले हैं।
ये एक राजनीतिक माहौल बनाया गया है। भले ही आप उसमें सीधे शामिल नहीं हैं लेकिन जो माहौल आपका समर्थन करता है ये उसी माहौल की पैदाइश है जो गौरी लंकेश की हत्या पर हंस रही है। ये शर्मनाक है, ये हिंदुत्व का कौन सा चेहरा है कि कोई मर जाएगा और हम वहां जाकर हंसेंगे और कहेंगे कि ये कुतिया है। ये वही समाज है जो राम रहीम के खिलाफ लड़ने वाली दो महिलाओं के पक्ष में नहीं बोला था। आप किसी महिला आयोग के अध्यक्ष का नाम जानते हैं जिन्होंने उन दो महिलाओं का पक्ष लिया हो? किसी मंत्री, संत्री, महासचिव या अध्यक्ष का नाम जानते हैं जिन्होंने उन दो महिलाओं के बारे कोई ट्वीट किया हो। उन्हीं महिलाओं की लड़ाई की बदौलत इतने बड़े बाबा का साम्राज्य ध्वस्त हुआ है लेकिन हमारा समाज और जो जिम्मेदार लोग हैं वे सिर्फ स्लोगन में 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' मानते हैं। एक महिला पत्रकार की हत्या हुई है, ये सवाल भी है। देश में कुछ ही महिलाएं बड़ी मुश्किल से उस स्तर पर पहुंच पाती हैं जहां वे अपनी प्रखरता से समाज और सरकार को आईना दिखाती हैं। गौरी की हत्या एक प्रतिभा का नुकसान तो है ही, कोई एक लंबी लड़ाई के बाद वहां पहुंचता है और अपनी बात से समाज को प्रभावित करता है, बात उठाता है, और उस मोड़ पर किसी की जिंदगी खत्म की गई है, ये अच्छी बात नहीं है।
मेरी यही लड़ाई है कि इस लड़ाई को किसी अंजाम तक ले जाइए। प्लीज, प्रधानमंत्री से प्रार्थना कीजिए कि वे इस तरह के लोगों को फॉलो ना करें। कोई नहीं मिलता उन्हें हिंदुस्तान में तो मुझे फॉलो कर लें, मैं उन्हें आश्वासन देता हूं कि बहुत आदर से आलोचना करूंगा। उनको कभी भी ऐसा नहीं लगेगा कि मैंने उनका अपमान किया है। बहुत अच्छी कविताएं सुनाऊंगा, हिंदू धर्म के बहुत सारे श्लोक सुनाऊंगा। उनको लगेगा नहीं कि वे एक ऐसे हिंदुस्तान में हैं जहां उनकी कोई कद्र नहीं करता है। मैं उन्हें पूरा-पूरा सम्मान दूंगा। लेकिन वे लड़कियों और स्त्रियों के बारे में कोई स्लोगन देने पहले इस बात का जवाब देंगे कि उनकी सोहबत में दधीची जैसे नौजवान कहां से आ गए और जब वे आते हैं 1700 के क्लब में तो वे ये बताएं और उस लड़के से पूछें कि तुमने मेरी मर्यादा का ख्याल क्यों नहीं रखा और जब वो लड़के प्रधानमंत्री की मर्यादा का ख्याल नहीं रख सकते तो बावलों और पागलों की फौज तैयार होती जाएगी। ये फौज आपको अकेले में भी घेर कर मारेगी और जहां आप हज़ार की संख्या में हैं वो वहां भी आपको घेर कर मारेगी।
सवाल अपने-आप को बचाने के लिए तो है ही, बाकी की जनता के लिए भी है, जो रोज लड़ रही है कि इस प्राइम टाइम में उसके उसूलों के जवाब मिल जाएं, उसके सवाल पर सवाल उठें। रोज टीवी पर सरकार की तरफ से जो गुंडे बैठते हैं जो काला कोट लगाकर बैठते हैं वह एक डिजाइन है। आप मानिए या नहीं मानिए, देखिए या मत देखिए, लेकिन दस साल बाद आपको यही दिखेगा कि जनता के जो सवाल हैं उसकी जो बेचैनियां हैं उसको कुचलने के लिए फर्जी मसले निकाले जाते हैं और फर्जी मसलों पर दिनरात चर्चा होती है। इस तरह लगातार लोगों की आकांक्षाओं की हत्या हो रही है, उनको डराया जा रहा है, एक भय का माहौल तैयार किया जा रहा है। इस पेटर्न को समझिए। इसी की शिकार हुई हैं हमारी गौरी लंकेश, एक साहसिक पत्रकार। कन्नड़ में उनके लेखों को अन्य भाषाओं में आगे ले जाइए, ताकि लोग जान सकें कि इस पत्रकार का क्या कसूर था जिसके कारण उसे इस तरह की मौत दी गई है। (एनडीटीवी खबर की वेबसाइट से साभार)