राजीव के कातिलों की रिहाई पर ये कैसी राजनीति?
हर्षवर्धन त्रिपाठी
राजीव गांधी के कातिलों को रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खारिज करते हुए कहा कि जयललिता का यह फैसला कानूनी रूप से सही नहीं है। प्रधानमंत्री यह भी कह रहे हैं कि कोई भी सरकार या राजनीतिक दलों को आतंकवादियों पर नरमी नहीं दिखानी चाहिए। निश्चित रूप से एक पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के दोषियों पर किसी तरह की नरमी बरतना राष्ट्रद्रोह जैसी पहल के रूप में देखा जाना चाहिए, लेकिन यहां यह भी देखना होगा कि राजनेताओं के हत्यारों और आंतकवादियों के प्रति इस तरह की नरमी की राजनीति किसने शुरू की?
देश की शीर्ष अदालत में इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका से तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के राजनीतिक दांव को अमल में लाने से रोक भले ही लग गई हो, लेकिन क्या इससे जयललिता का राजनीतिक दांव उलट जाएगा। सवाल ये भी है कि जो बात प्रधानमंत्री कह रहे हैं वो क्या ईमानदारी से कह रहे हैं। क्योंकि, कांग्रेस के सारे फैसलों के तरीकों की जानकारी तो उन्हें कम से कम पिछले दस सालों में मिल ही रही होगी। अगर इस खुले रहस्य को मान भी लें कि फैसले कांग्रेस पार्टी में उनसे पूछकर नहीं लिए जाते रहे हैं तो भी कम से कम वो जानते तो रहे ही होंगे। फिर ये बयान देने का साहस वो कैसे कर पाए कि किसी सरकार, पार्टी को आतंकवादियों के प्रति नरमी नहीं दिखानी चाहिए।
ज्यादा पुराना फैसला नहीं है जब लगातार यूपीए के लिए संकटमोचक बनी रहने वाली उत्तर प्रदेश की सरकार ने मुसलमानों के खिलाफ आतंकवाद के मामले वापस लेने का फरमान सुना दिया था। ऐसे ढेर सारे मामले इससे पहले हुए हैं जब आतंकवाद पर राजनीति की गई है। दरअसल इस आतंकवाद पर नरमी, गरमी दिखाने वाली राजनीति की बुनियाद खुद कांग्रेस पार्टी ने ही तैयार की है। वही कांग्रेस पार्टी जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सरदार मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाकर 1984 में सिखों का कत्लेआम करने वाले कांग्रेसी आतंकवाद के सारे गुनाहों की माफी का भरोसा मन में पाल लिया था। ऐसी कहानियों की लंबी फेहरिस्त है। लेकिन, अभी बात सिर्फ और सिर्फ इस मामले की यानी हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की फांसी, उम्रकैद और जेल से रिहाई की है।
इस मामले में कांग्रेस अब फंस गई है। छह दशक से एक जैसी राजनीति करती आ रही कांग्रेस पार्टी ये भूल गई है कि कमजोर से कमजोर पहलवान भी एक जैसे दांव से कितनी बार पटका जा सकता है, इसकी एक सीमा होती है। लेकिन, कांग्रेस लगातार अपने उसी घिसे-पिटे संवेदनशील से संवेदनशील मुद्दे पर राजनीतिक रोटी सेंकने वाले दांव से दूसरे राजनीतिक दलों को चित करती रही है। लेकिन, अब राजनीतिक अखाड़े के पहलवान दांव समझने-चलने के मामले में उतने भी कमजोर नहीं रहे हैं। वो कांग्रेस के एक तरह के दांव से निपटने में उस्ताद हो चुके हैं। जयललिता ने वही दांव कांग्रेस पर दे मारा है जो कांग्रेस इस्तेमाल करके राजनीतिक अखाड़े की स्वनाम धन्य पहलवान बनी हुई थी।
कांग्रेस की राजनीति पर नजर डालिए तो यह देखना लाजिमी होगा कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी की सजा से माफी किसने दिलवाई। जवाब सभी को पता है, राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी। देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्यारी नलिनी से मिलने जेल में कौन गई थी। जवाब सभी को पता है, राजीव गांधी की बेटी प्रियंका गांधी। ये देश के पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी और पुत्री थीं जिन्होंने राजीव गांधी की हत्या को देश के पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या से ज्यादा एक पति और पिता की हत्या बना दिया। जाहिर है फिर देश के लोगों का किसी के पति और किसी के पिता की हत्या के मामले में दखल देने का अधिकार भी घट गया। क्योंकि, अब वो निजी मामला हो चुका था। देश के एक पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारों के साथ जो व्यवहार होना चाहिए वो नहीं होगा। ये तय हो गया था। वजह साफ है कि निजी संबंधों यानी पति और पिता की हत्या में मानवता घुस चुकी थी।
सोनिया और प्रियंका के आगे गांधी लगा हुआ है। गांधी मतलब कांग्रेस पार्टी है। इसलिए पति और पिता के हत्यारों पर सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी का लिया गया कोई भी फैसला कांग्रेस का फैसला माना गया। और मानवतावादी सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी ने हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों के खिलाफ लिए जाने वाले फैसले को मानवतावाद की राजनीतिक चाशनी में ऐसे डुबो दिया कि जातीय उन्माद में हुए पूर्व प्रधानमंत्री के खून के धब्बे गायब हो गए। दिख रहा था तो मानवतावादी सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी का चेहरा और उसके साथ देश की अकेली मानवतावादी पार्टी कांग्रेस का चेहरा। ये कांग्रेस की राजनीति थी जिसमें एक राजनीति ये कि प्रियंका गांधी अपने पिता के हत्यारों से जेल में मिलने जाती हैं। सोनिया गांधी भी पति के हत्यारों को फांसी की सजा दिलवाने के बजाय मानवतावादी चेहरा दिखाने लगीं। अदालत तो हर संभव बड़े मामलों में मानवतावादी होती ही है। अदालत ने राजीव गांधी के हत्यारों की सजा फांसी से हटाकर उम्र कैद कर दी।
लोकसभा चुनाव का मौका है। जाने किस-किस आरोप में घिरी कांग्रेस के लिए ये चुनाव बेहद निराशाजनक हैं इसलिए कभी तेलंगाना तो कभी मानतावादी चेहरे के जरिए तमिल संवेदना हासिल करने की कोशिश कांग्रेस कर रही थी। फायदा भी दिख रहा था। नलिनी, मुरुगन के परिवारवाले राहुल गांधी, प्रियंका गांधी से माफी मांग रहे हैं। सोनिया गांधी को भगवान बता रहे हैं। सब कुछ ठीक था। लेकिन, तमिलनाडु की राजनीति की अम्मा जयललिता ने कांग्रेस की सोनिया गांधी की सारी मानवता तार-तार कर दी। जितनी तेजी में ये फैसला आया कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी के हत्यारों को फांसी की बजाय उम्रकैद होगी। जयललिता ने जल्दी से उम्र कैद के सालों का हिसाब-किताब जोड़कर राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के आदेश दे डाले।
अब राहुल गांधी कह रहे हैं कि आम आदमी को इस देश में क्या न्याय मिलेगा, जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारों को भी इस तरह से छोड़ दिया जाए। सच बात है, देश के सबसे ताकतवर राजनीतिक परिवार के सपूत और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई पर राजनीति बड़ा सवाल है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारे और साजिश करने वालों को मौत से कम की सजा क्यों हो। ये कैसी मानवतावादी राजनीति है। हम भारत के लोग सवाल कैसे खड़े कर पाएंगे जब ऐसी राजनीति की बुनियाद रखने और उसे पुष्पित, पल्लवित करने का काम कांग्रेस हमेशा से करती रही है। राज्यों में छोटे-छोटे हितों की राजनीति करने वाले राजनीतिक दल ऐसे राजनीति फैसले लेंगे तो सवाल हम भारत के लोग कैसे खड़ा कर पाएंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)