अर्थ की व्यवस्था : धोखा या नियति?
अघोषित संपत्ति या दूसरे शब्दों में कहें तो बेनामी धन-दौलत को सिस्टम से बाहर करने की कोशिश में भारत पूरी तरह से नाकामी हाथ लगी है। ऐसे में एक बड़ा सवाल यह उठता है कि नोटबंदी कामयाब रही या नाकाम? आरबीआई के आंकड़ों की मानें तो नोटबंदी बड़े पैमाने पर नाकाम हुई है। और इसी वजह से मोदीनॉमिक्स की लाख कोशिशों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर आने का नाम नहीं ले रही है। कड़वी दवा से लेकर बिजनेस डिप्लोमेसी तक, सभी तरह के नुस्खे आजमाने के बावजूद भारत की मुद्रा अमेरिकी डॉलर के समक्ष घुटने टेकी हुई है।
जस्टिस गोगोई की पीड़ा
सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ जज रंजन गोगोई ने हाल के एक व्याख्यान में देश के हालात पर एक व्याख्यान दिया है जो वास्तव में आज देश की सही तस्वीर पेश करता है। वक्त की मांग है कि देश की जनता खुद तमाम स्थितियों पर गौर करे और खुद निर्णय ले कि पिछले 70 साल में जो हुआ वह ठीक था या हाल के चार वर्षों में जो कुछ हुआ है वह ठीक है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो जस्टिस गोगोई जैसे लोगों की पीड़ा व्यर्थ ही जाएगी और अर्थ यही निकलेगा कि जैसे सब लोग अपनी बात कहते हैं उन्होंने भी अपनी बात कह दी।
साफ नीयत-सही विकास या विश्वासघात?
केंद्र की मोदी सरकार के चार साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है। एक तरफ जहां भाजपा के नेता और राजग सरकार के प्रधानमंत्री व मंत्री अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान करते थक नहीं रहे, वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस इसे देश की जनता से विश्वासघात करार दे रही है। हालांकि किसी भी सरकार के कामकाज की समीक्षा करने के लिए चार साल का वक्त बहुत ज्यादा नहीं होता है, लेकिन चूंकि जब सामने सरकार का मुखिया नरेंद्र मोदी जैसा नेता हो तो कामकाज की समीक्षा न करना भी गलत होगा।
कर्नाटक प्रहसन से विपक्षी एकजुटता को मिली संजीवनी
कर्नाटक में हुए सियासी प्रहसन के बाद देश भर जो संदेश गया है, उसी के मद्देनजर यह सवाल भी पूछा जाने लगा है कि क्या इसका असर वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव तक रहेगा? अपने आप में यह बड़ा सवाल है। कर्नाटक विधानसभा में फ्लोर टेस्ट से पहले भले ही बीएस येदियुरप्पाल ने इस्तीफा देकर ज्यादा किरकिरी होने से खुद को बचा लिया, लेकिन इस पूरे प्रकरण में भाजपा ने काफी-कुछ खोया है। इतना ज्यादा खोया जिसकी भरपाई आने वाले तीन विधानसभा चुनावों और 2019 चुनाव तक भी शायद ही हो सके। जानकार मानते हैं कि कर्नाटक में भले ही कांग्रेस के सहारे जेडीएस को लाभ मिला हो, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ने बड़ी जीत हासिल की है।
देश की सुप्रीम व्यवस्था से छेड़छाड़ क्यों?
भारतीय संविधान के बारे में एक मान्यता यह भी है कि संविधान में जो कुछ लिखित है वह तो महत्वपूर्ण है ही, लेकिन कुछ अलिखित परंपराएं भी हैं जिनको पूरा महत्व दिया जाता है। आज भारत में यह बात साफ हो गई है कि पिछले 70 साल में किसी ने संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास नहीं किया। लेकिन पिछले चार साल में यह प्रयास लगातार हो रहा है। इससे और भी कई मुद्दे सामने आ रहे हैं।
कांग्रेस ही भाजपा का एकमात्र विकल्प-2
2019 के चुनावों के लिए कांग्रेस को एक साथ दो मोर्चों पर लड़ना होगा। पहला मोर्चा कांग्रेस के अंदर की कार्य-संस्कृति में आमूल-चूल बदलाव लाना और सहयोगी दलों के साथ एक समान विचारधारा के स्तर पर वैचारिक गठबंधन कायम करने का होगा। इसके अलावा कांग्रेस के लिए 2019 के संसदीय चुनाव में सत्ताधारी भाजपा के वर्तमान सामाजिक-आर्थिक नीतियों के बरक्स एक नई गांव-किसान पर आधारित आर्थिक नीतियों की जरूरत होगी।
जिन्ना पर सवाल, भाजपा में बवाल
लालकृष्ण आडवाणी के पाकिस्तान दौरे और जिन्ना की मजार पर जाने के करीब 13 साल बाद एक बार फिर जिन्ना का जिन्न सामने आ गया है। यह भाजपा के लिए मुसीबत का सबब भी बनता दिख रहा है। क्योंकि जिन्ना के मुद्दे पर भाजपा के भीतर ही इस वक्त अलग-अलग राय देखी जा रही है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में लगी मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को योगी सरकार के मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले द्वारा जायज ठहराने को लेकर भाजपा में घमासान मचा है। कहा यह भी जा रहा है कि यूपी में दो सीटों पर उपचुनाव होने हैं, इसलिए एक सोची-समझी रणनीति के तहत भाजपा द्वारा इस मुद्दे को उठाया जा रहा है।
कर्नाटक तय करेगा शाह का भविष्य
राजनीतिक गलियारों में इस बात का शोर मचा है कि कर्नाटक चुनाव में अगर भाजपा हारी तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और भाजपा की चुनावी जीत के चाणक्य अमित शाह की छुट्टी हो जाएगी। लिहाजा कर्नाटक चुनाव शाह के लिए सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा है। अमित शाह को करीब से जानने वाले बताते हैं कि भाजपा अध्यक्ष को इतना नर्वस उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। इसकी वजहें भी हैं। पहली यह कि भाजपा का आंतरिक सर्वे भी उन्हें कर्नाटक में जीत की गारंटी नहीं दे रहा है और दूसरी आरएसएस के नीति-नियंता कर्नाटक की चुनावी बिसात पर शाह की चली गई चाल से बेहद नाराज हैं।
विकास चाहिए या विनाश?
देश में विकास होगा तो हमारी आगे की पीढ़ियां सुरक्षित रहेंगी। अगर विनाश का दौर शुरू हो गया तो हम खुद ही सुरक्षित नहीं रहेंगे, बाकी बात तो अलग है। आज ऐसे चौराहे पर खड़े हैं जहां हमें सोचना होगा कि धर्म, संप्रदाय, जाति और भाषा के नाम पर लड़कर हम बर्बाद हो जाना चाहते हैं अथवा उस सच्चाई को समझना चाहते हैं कि ये धर्म, जाति आदि जैसे पहले से रहे हैं वो आज भी है और कले भी रहेंगे। इनके नाम पर आपस में मनमुटाव पैदा करने और समाज को तोड़ना आत्मघाती कदम साबित होगा।
कांग्रेस ही भाजपा का एकमात्र विकल्प-1
हाल में संपन्न संसदीय उपचुनाव के परिणामों ने एक बार फिर से कांग्रेस के सामने भाजपा का विकल्प बनने की संभावना को मजबूत किया है। लेकिन इस मोड़ तक पहुंचने के लिए कांग्रेस को काफी कुछ बदलना होगा। फिलहाल ऐसा प्रतीत होता नहीं दिख रहा है, लेकिन राहुल गांधी के गुजरात अभियान और कांग्रेस के प्लेनरी सेशन के बाद इस बात की संभावना बढ़ गई है कि वे कांग्रेस पार्टी में आमूल-चूल बदलाव की इच्छा रखते हैं। अब जरूरत इस बात की है कि वे इस दिशा में बढ़ते हुए अपनी इच्छाशक्ति का भी स्पष्ट प्रदर्शन करें।