संसद सत्र में देरी सरकार की मनमानी
2017 में संसद के शीतकालीन सत्र में विलंब करने के पीछे सरकार की क्या सोच है यह लोग जरूर जानना चाहते हैं। सरकार की ओर से ऐसा कोई कारण भी नहीं बताया गया जिससे लोगों को संतुष्टि हो सके। भारतीय लोकतंत्र में संसद की सर्वोच्चता पर किसी तरह का कोई विवाद नहीं होना चाहिए। क्योंकि इस प्रणाली का नाम ही संसदीय लोकतंत्र है।
भारत की राजनीतिक पहचान है लोकतंत्र
भारत में विरोध और किसी न किसी हिस्से में लगातार दंगे-फसाद के बावजूद देश की एक राजनीतिक सत्ता क्यों बरकरार है? इस सवाल का एक शब्द में जवाब है- लोकतंत्र। भारत में लोकतंत्र का प्रयोग अप्रतिम रहा है। यह न सिर्फ निर्वाचक वर्ग के आकार और राजनीतिक दलों की संख्या को लेकर है, बल्कि यह उपयोगी बन गया है और इसका भारतीयकरण हो चुका है।
आदमी नहीं, हम झुनझुने हैं...
दुष्यंत आज बहुत याद आ रहें हैं और वो हमेशा याद आते हैं जब राजनीति राज के लिए नहीं बल्कि अपने फायदे के लिए गढ़ी जाती है। हर दल अपने हिसाब, अपनी पसंद और अपने नफे के लिए जो मन चाहे वो हमारे सामने परोस कर रख देता है। और चूंकि हम झुनझुने हैं हमें वो अपने तरीके से बजाते हैं।
बांटने वाली ताकतों के खिलाफ लड़ना होगा
अमेरिका के पूर्व प्रेसिडेंट बराक ओबामा का मानना है कि भारत और अमेरिका में बहुत कुछ कॉमन है, जैसे डेमोक्रेसी, कल्चर आदि। नई दिल्ली में ओबामा फाउंडेशन द्वारा 1 दिसंबर को आयोजित टाउन हॉल कार्यक्रम में भारत के 300 यंग लीडर्स को संबोधित करते हुए ओबामा कहा, हमें बांटने वाली ताकतों के खिलाफ लड़ना होगा।
पूर्वोत्तर और आदिवासी क्षेत्रों की किस्मत बदलेगा ‘हरा सोना’
बांस को घास घोषित करने के केंद्र सरकार के फैसले से पूर्वोत्तर तथा देशभर के जनजातीय क्षेत्रों में होने वाला यह ‘हरा सोना’ आदिवासियों और किसानों की किस्मत बदलेगा और करोडों नौकरियां भी पैदा करेगा। सरकार ने 90 वर्ष पुराने भारतीय वन अधिनियम 1927 में बदलाव करने के लिए अध्यादेश जारी किया है जिससे बांस को ‘वृक्ष’ की बजाय ‘घास’ माना जाएगा।
चुनौतियों के भंवर में भारतीय अर्थव्यवस्था
कृष्ण किशोर पांडेय
30 पायदान की छलांग तो ठीक, लेकिन...
नरेंद्र मोदी सरकार के पक्ष में एक बड़ा आर्थिक आंकड़ा सामने आया है। विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट जिसमें कहा गया है कि भारत में कारोबार शुरू करने के तय पैमाने पर भारत 30 पायदान उछलकर 100वें स्थान पर पहुंच गया है। विश्व रैंकिंग में 30 पायदान ऊपर पहुंचना छलांग लगाने जैसा ही है।
नोटबंदी के एक साल पर राहुल गांधी का लेख
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने नोटबंदी के एक साल पूरा होने पर फाइनेंशियल टाइम्स के 8 नवंबर के अंक में Modi’s reforms have robbed India of its economic prowess शीर्षक से एक लेख लिखा। इस लेख में राहुल ने कहा, प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि उनके फैसले का मकसद भ्रष्टाचार का खत्म करना है, लेकिन 12 महीनों के बाद अगर कुछ मिटा है तो वह है फलती-फूलती अर्थव्यवस्था का विश्वास।
विषमता नहीं मिटी तो मिट जाएगी मानवता
आज बाजारवाद का जादू हमारे सिर पर इस तरह चढ़कर बोल रहा है कि हम अपनी वैचारगी महसूस तो करते हैं लेकिन उससे निकल नहीं पाते। अपने आप पर ध्यान दें तो यह समझने में देर नहीं लगेगी कि हम जिस जाल में फंसे हैं उससे निकलना बहुत आसान नहीं है। हमारी नई सोच क्या है इसे हमें खुद समझना चाहिए।
संत मत परंपरा और गुरमीत राम रहीम
सत्यवादी, आशावादी और सही मार्ग पर चलने वाले को संत कहा जाता है। वैसे संत शब्द संस्कृत की सद् धातु से बना है और कई प्रकार से प्रयोग किया गया है। मसलन, सत्य, वास्तविक, ईमानदार और सही। इसका मूल अर्थ है सत्य जानने वाला अथवा जिसने अंतिम सत्य का अनुभव कर लिया हो।