भोपाल से नहीं गांधीनगर से आडवाणी को टिकट, मोदी वडोदरा से भी लड़ेंगे चुनाव
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: कयासों और अफवाहों पर विराम लगाते हुए भाजपा ने पार्टी के लौह पुरूष को गांधीनगर से चुनावी समर में उतारने का फैसला ले लिया है। हालांकि सुबह से ये खबरें आ रही थीं कि आडवाणी अब गांधीनगर नहीं बल्कि भोपाल से चुनाव लड़ना चाहते हैं। लेकिन शाम होते होते आडवाणी के गांधीनगर से ही किस्मत आजमाने की खबर आई। वहीं भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का वडोदरा से और हेमामालिनी को मथुरा से टिकट दिया गया है।
भाजपा संसदीय बोर्ड और उसकी चुनाव समिति ने फैसला लिया है कि लालकृष्ण आडवाणी गुजरात की राजधानी गांधीनगर से ही चुनाव लड़ें। आडवाणी इस वक्त भी वहीं से सांसद हैं। हालांकि, आडवाणी इस बार गांधीनगर से चुनाव लड़ने के खास इच्छुक नहीं थे। सूत्रों का दावा था कि आडवाणी दरअसल नरेंद्र मोदी का गढ़ छोड़ना चाहते थे, क्योंकि उन्हें भीतरघात का खतरा लग रहा है। वो गुजरात छोड़ मध्यप्रदेश जाना चाहते थे, जहां उनके करीबी समझे जाने वाले शिवराज सिंह चौहान का राज है इसीलिए वो भोपाल से चुनाव लड़ना चाहते थे।
इससे पहले, भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की दिन भर चली बैठक में इस मसले पर काफी विचार करने के बाद आडवाणी के संबंध में यह फैसला किया गया। वहीं इस बैठक से 86 वर्षीय आडवाणी यह कहते हुए गैर हाजिर रहे कि वह उनके निर्वाचन क्षेत्र से जुड़े मसले पर चल रहे विचार विमर्श का हिस्सा नहीं बनना चाहते थे।
सूत्रों का कहना है कि पार्टी को एकजुट दिखाने के लिए आडवाणी को गांधीनगर से लड़ाना अहम था। अगर ऐसा नहीं होता तो लड़ाई मोदी गुट बनाम शिवराज गुट के तौर पर देखी जाती। विपक्ष ने भी भाजपा के भीतर चल रही अंतर्कलह को भुनाने का काम शुरू कर दिया और पार्टी ने इससे निपटने का ये तरीका बेहतर समझा।
लालकृष्ण आडवाणी पांच बार गांधीनगर से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन सूत्रों का कहना है कि अपने ही शिष्य से प्रधानमंत्री पद की सियासी जंग हार चुके आडवाणी को अब ये सीट उतनी भरोसेमंद नहीं लगती, लेकिन अब तो पार्टी का आदेश आ गया है, वो आदेश जिस पर उन्हें हामी भरनी ही पड़ेगी।
इस बीच यह साफ नहीं हो पाया है कि क्या आडवाणी ने पार्टी के फैसले पर सहमति जतायी है या नहीं। इस निर्णय के बाद देर रात सुषमा स्वराज और नितिन गडकरी आडवाणी से मिलने उनके आवास पर गए।