मोदी सरकार के 4 साल : कड़े फैसलों से अर्थव्यवस्था की इमारत मजबूत
हर्षवर्धन त्रिपाठी
नरेंद्र मोदी की सरकार के 4 साल पूरे हो चुके हैं। इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गई है। देश की तरक्की की रफ्तार के इन आंकड़ों की उम्मीद कम ही लोगों को रही होगी। भले ही सरकार ने पिछले 4 साल में जिस तरह के फैसले लिए हों, लेकिन उससे अर्थव्यवस्था में धीरे-धीरे अच्छी तेजी की उम्मीद सभी लोगों को थी। हालांकि अर्थशास्त्रियों का एक बड़ा वर्ग जिस तरह से नोटबन्दी और जीएसटी की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को लड़खड़ाते देख रहा था, लेकिन सौभाग्य से वैसा नहीं हुआ। वैसे तो किसी भी चुनी हुई सरकार के लिए हिसाब देने का वक्त 5वें साल में होता है। लेकिन, सच यही है कि चौथे साल के रिकॉर्ड से ही करीब साल भर बाद होने वाले चुनावों में जनता फैसला लेगा। और यह भी सही है कि पांचवें साल में सरकार अगले 5 साल के लिए चुनाव की नजर से गतिविधियां शुरू कर देती है। उसमें नई योजनाओं को लागू करना होता है। इसीलिए उसपर बात करना आर्थिक नजरिए से सही नहीं होगा। इसीलिए हम उन योजनाओं और आर्थिक आंकड़ों की ही बात करेंगे जो चौथे साल में स्पष्ट नजर आ रहे हैं। ताजा आंकड़ा है 2017-18 के तरक्की की रफ्तार के आंकड़े। 2017-18 की आखिरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च में भारतीय अर्थव्यवस्था की तरक्की की रफ्तार 7.7 प्रतिशत रही है। पूरे साल की तरक्की की रफ्तार 6.7 प्रतिशत रही है जो पिछले साल के 7.1 प्रतिशत से कम है। लेकिन, बीते वित्तीय वर्ष की आखिरी तिमाही के आंकड़ों के सन्दर्भ के साथ देखने पर भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूत बुनियाद पर मजबूती से तैयार होती इमारत दिखने लगती है।
एशियाई विकास बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री यासुवुकी सावादा का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था नरेंद्र मोदी सरकार के चार साल के कामों को बयान करता है। उन्होंने कहा कि 2018-19 के लिए भारत की अनुमानित 7 प्रतिशत से ज्यादा की तरक्की की रफ्तार आश्चर्यजनक रूप से तेज है। जबकि, एशियाई विकास बैंक के मुताबिक, 2018-19 में 7.3 प्रतिशत और 2019-20 में 7.6 प्रतिशत की विकास दर का अनुमान है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की 8 प्रतिशत तरक्की की रफ्तार के पीछे भागने के बजाय आय असमानता पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा है कि विकास दर को निर्यात से ज्यादा घरेलू खपत से मदद मिलती है। यहां एक बात समझने की है कि निर्यात से कुछ लोगों को रोजगार और कम्पनियों का बही-खाता बेहतर होने से जीडीपी ग्रोथ के आंकड़े बेहतर दिख सकते हैं। लेकिन घरेलू खपत से ही अर्थव्यवस्था की असली तेजी समझ आती है। इससे देश में लोगों की खर्च करने की क्षमता और आय असमानता की कमी का भी पता चलता है। माना जा रहा है कि ढाई लाख करोड़ डॉलर से ज्यादा की भारतीय अर्थव्यवस्था 2025 तक 5 लाख करोड़ डॉलर से ज्यादा की हो सकती है। 2025 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को दोगुना करने के लिए पिछले चार सालों में नरेंद्र मोदी सरकार ने क्या किया है।
खनन को छोड़कर सभी प्रमुख क्षेत्रों में तरक्की की रफ्तार अच्छी रही है। 2017-18 की चौथी तिमाही के आंकड़ों की तुलना करें तो मैन्यूफैक्चरिंग की तरक्की की रफ्तार 9.1 प्रतिशत रही है जो पिछले साल 6.1 प्रतिशत थी। बिजली, गैस और जल आपूर्ति जैसी बेहद जरूरी सुविधा की बात करें तो तरक्की की रफ्तार पिछले साल के 8.1 प्रतिशत के मुकाबिल 7.7 प्रतिशत बनी हुई है। नोटबन्दी की वजह से सबसे बुरा असर रियल एस्टेट सेक्टर में हुआ था। क्योंकि, सबसे ज्यादा काली कमाई बिल्डरों ने ही लगा रखी थी। अब बहुत कम काले धन के साथ रियल एस्टेट सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है और उसी का असर है कि चौथी तिमाही में इस साल कंस्ट्रक्शन सेक्टर 11.5 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ा है जबकि, पिछले साल इसी तिमाही में रियल एस्टेट बढ़ने के बजाय 3.5 प्रतिशत घट गया था। नोटबन्दी और रियल एस्टेट रेगुलेशन कानून से लोगों को अब सस्ता घर मिल पा रहा है। घरों की कीमत में 35 प्रतिशत तक की कमी आई है। हालांकि, काले धन के आधार पर खड़े बिल्डरों के दिवालिया होने से परेशान ग्राहकों की मुश्किल जस की तस बनी हुई है। सेवा क्षेत्र में भी अच्छी बढ़त देखने को मिली है।
आर्थिक मोर्चे पर सरकार जब कड़े फैसले ले रही थी, उस समय निजी क्षेत्र ने निवेश की रफ्तार घटा दी थी। निजी क्षेत्र को मोदी सरकार से इस तरह के कड़े फैसलों की उम्मीद भी नहीं रही होगी। इसीलिए निजी क्षेत्र के हाथ बांधने के दौरान सरकारी खर्च तेजी से बढ़ा। रियल एस्टेट क्षेत्र में जब मंदी की बात की जा रही थी, उसी दौरान सरकार ने गांवों और शहरों में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 1 करोड़ घर बनाकर तैयार कर दिए। उज्ज्वला .योजना के तहत 4 करोड़ से ज्यादा घरों में रसोई गैस कनेक्शन दे दिया। आर्थिक मोर्चे पर हुए इन कामों को सरकारी काम कहकर अर्थशास्त्री किनारे कर देते हैं। लेकिन, सामाजिक योजना के साथ आर्थिक तरक्की का काम बड़े सलीके से मोदी सरकार ने किया है।
नरेंद्र मोदी की सरकार के 4 सालों का आर्थिक हिसाब लगाते वक्त एक और बेहद जरूरी आंकड़ा ध्यान में रखना जरूरी है। वो आंकड़ा है, सीधे खाते में जरूरतमंदों को मिलने वाली रकम का, जिसे सरकार डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर कहती है। 2014-15 से 2017-18 तक करीब 4 लाख करोड़ रुपए सीधे लोगों को खाते में चले गए। एशियाई विकास बैंक जिस घरेलू खपत को बढ़ाने और आय की असमानता को कम करने की बात कह रहा है, उस लिहाज से ऊपर के तीनों आंकड़े भरोसा पैदा करते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण किस तरह से भारत में परिवहन का तरीका बदल रहा है, साफ दिख रहा है। 2013-14 में सड़क निर्माण पर सरकार ने खर्च किया 32483 करोड़ रुपए और 2017-18 में सरकार ने 116324 करोड़ रुपए खर्च कर दिए और इसका परिणाम रहा कि, 2013-14 में 12 किलोमीटर प्रतिदिन सड़के बनाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण आज 27 किलोमीटर प्रतिदिन राजमार्ग बना रहा है। देश की राजधानी दिल्ली के लोगों ने प्रदूषण और जाम पर ढेरों शेखचिल्ली फैसले झेले हैं। अब ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेसवे और सराय काले खां से यूपी गेट तक 14 लेन की सड़क देखकर उन्हें समझ आ रहा होगा कि, बड़ी समस्या का समाधान करने के लिए बड़े फैसलों को अमल में लाने की जरूरत होती है।
नोटबन्दी और जीएसटी- 2 ऐसे कड़े और बेहद जरूरी सुधार रहे हैं, जिसकी वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की 5 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गई है। विजय माल्या और नीरव मोदी के भागने का आरोप लगाकर विपक्ष इस बात की आलोचना करता है कि, मोदी सरकार में आर्थिक अपराधी भाग गए। यह बात सही है। लेकिन, यह भी सही है कि, आर्थिक पारदर्शिता और मजबूती के लिए इतने बड़े प्रयास एक साथ कभी नहीं हुए, जितने इन 4 सालों में हुए हैं। आयकरदाताओं की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि इसी का परिणाम कहा जा रहा है। सिर्फ आयकरदाताओं की संख्या में ही वृद्धि नहीं हुई है, आयकर चोरी और आर्थिक अपराध के मामलों में तेजी से सरकार ने कार्रवाई की है।इसे और आसानी से इस तरह से समझा जा सकता है कि, सूट-बूट की सरकार का आरोप लगाता विपक्ष अब उद्योगपतियों पर टैक्स टेररिज्म की बात करने लगता है। और जिन उद्योगपतियों ने मोदी सरकार के राज में आसानी से सरकारी योजनाएं अपने पक्ष में कर लेने की उम्मीद की थी, वे निराश हो रहे हैं।
गुजराती कारोबारी नीरव मोदी और मेहुल चोकसी की सम्पत्तियों को जब्त करने के साथ ही जिस तेजी से आर्थिक अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है, अभूतपूर्व है। गुजरात के संदेसरा समूह की 4700 करोड़ रुपए की सम्पत्ति हाल ही मेंजब्त की गई है। कानपुर के रोटोमैक के मालिक धोखाधड़ी के मामले में गिरफ्तार किए गए।आर्थिक अपराधों के मामले में मोदी सरकार की लगातार कार्रवाई ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सूट-बूट की सरकार के आरोप का प्रभाव लगभग शून्य कर दिया है।यूपीए सरकार में उद्योग संगठन और दूसरे सत्ता के दलाल प्रभावी थे, उनका दिल्ली के पावर कॉरीडोर में महत्व ही खत्म हो गया है। उद्योग संगठन कह रहे हैं कि, लॉबी नहीं कर पा रहे हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था की बात बिना कृषि के अपूर्ण है। खासकर ऐसे समय में जब देशभर में किसान आन्दोलन खड़े होते दिख रहे हैं या राजनीतिक तौर पर खड़े किए जा रहे हैं तो, यह जानना बेहद जरूरी है कि, खेती के लिए सरकार क्या कर रही है और उसका कितना असर जमीन पर दिख रहा है। किसी किसान नेता ने किसानों को शायद ही यह बात समझाने की कोशिश की हो कि, कैसे 1 लाख 71 हजार किलोमीटर से ज्यादा ग्रामीण सड़कें पिछले 4 साल में बनने से किसानों के जीवन में और उपज बेचने में आसानी आई है। 2013-14 में हर दिन 60 किलोमीटर ग्रामीण सड़कें बनती थीं, पिछले 4 सालों में यह रफ्तार 134 किलोमीटर प्रतिदिन है।1 लाख 16 हजार ग्राम पंचायतों तक ऑप्टिकल फाइबर पहुंचने से किसानों तक सूचनाएं आसानी से पहुंच रही हैं और राष्ट्रीय कृषि बाजार योजना के 585 मंडियों में लागू होने से किसान अपनी ग्राम पंचायत से बैठकर ही उपज का भाव जान सकता है।
कमाल की बात यह भी है कि, किसानों ने नए सिरे से जिस आन्दोलन को लागत का डेढ़ गुना ज्यादा कीमत देने की बुनियाद पर शुरू किया है, उसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार पहले से ही ढेरों कोशिशें करती दिख रही है। इसके नतीजे भी अच्छे दिख रहे हैं। कृषि क्षेत्र की विकास दर 4.5% रही है। अच्ची बात यह है कि, इस साल भी अच्छी बारिश के अनुमान से खेती बेहतर होती दिख रही है और किसानों की बढ़ती उपज का दबाव है कि, सरकार ने रिकॉर्ड सरकारी खरीद की है। पहली बार किसी सरकार ने दाल का इतना बड़ा भंडार तैयार किया है।4 साल में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर रिकॉर्ड सरकारी खरीद और किसानों के लिए ढेर सारी अच्छी योजनाओं के लागू होने का नतीजा है कि, 2017-18 में रिकॉर्ड पैदावार हुई है। कुल अनाज की पैदावार 27 करोड़ 75 लाख टन की रही है। 11 करोड़ टन से ज्यादा धान की पैदावार हुई और मोदी सरकार में दालों की कमी से जूझते भारत में दालों की पैदावार 2 करोड़ 40 लाख टन की रही। गन्ना, फल-सब्जियों और मोटे अनाज में भी रिकॉर्ड बढ़त देखने को मिली।
विपक्ष हमेशा मोदी सरकार की आलोचना करता है कि मेक इन इंडिया से लेकर डिजिटल इंडिया सिर्फ योजनाओं का नाम भर रहा, जमीन पर कुछ देखने को नहीं मिला। मेक इन इंडिया का बेहतर परिणाम समझने के लिए इस आंकड़ों को जरूर जानना चाहिए। जब नरेंद्र मोदी की सरकार आई थी तो, भारत में मोबाइल बनाने की कम्पनी थी, आज देश में 120 मोबाइल मैन्यूफैक्चरिंग इकाईयां लगी हुई हैं। 6 करोड़ से बढ़कर भारत आज 22 करोड़ 50 लाख मोबाइल हैंडसेट बना रहा है। अगर इनकी कीमत जानना चाहें तो 1 लाख 32 हजार करोड़ रुपए के मोबाइल का उत्पादन भारत में हो रहा है। 4 साल की मोदी सरकार को आर्थिक पैमाने पर आंकें तो, नीति विकलांगता और भरोसे का संकट झेल रही भ्रष्चाचारी व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए लगातार फैसले लेने पड़े हैं। जिसकी वजह से कई बार अर्थव्यवस्था को झटके भी झेलना पड़ा है। लेकिन, पांचवें साल में सरकार के कड़े और श्रृंखलाबद्ध आर्थिक फैसलों का बेहतर असर दिखने लगा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और आर्थिक मामलों के जानकार हैं।)