महारानी के राज्य में किसान क्यों बने बैताल?
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: 80-90 के दशक में बच्चों का एक सीरियल दूरदर्शन पर आता था- विक्रम और बेताल। धारावाहिक बेताल भट्ट की बेतालपञ्चविंशतिका पर आधारित था। इसमें बेताल को पेड़ से उलटा लटके दिखाया गया है। बेताल यानी भूत राजा से न्याय संबंधित सवाल करता है और राजा के जवाब देते ही पेड़ पर फिर जा बैठता है। राजस्थान सरकार से न्याय की उम्मीद लगाए कुछ किसान इसी तर्ज पर पेड़ पर उलटे लटके। विभिन्न तरीकों से अपनी सरकार से न्याय की गुहार लगा रहे हैं...लेकिन महारानी की सरकार इन गरीबों को सुकून नहीं दिला पा रही।
देश की राजधानी में लोकतंत्र के सर्वोच्च मंदिर यानी संसद से एक तरफ हमारे केन्द्रीय वित्त मंत्री किसानों की बेहतरी के लिए बजट में बड़े ऐलानों की झड़ी लगा रहे थे वहीं करीब 500 किलोमीटर दूर राजस्थान के बूंदी में किसान अपनी मांग को लेकर सरकार के खिलाफ मूक प्रदर्शन कर रहे थे। छापड़दा गांव के किसान उसी अंदाज में आंदोलनरत हैं जैसे पिछले साल तमिलनाडु के किसान थे। इस कड़ी में बीते रविवार को उन्होंने पेड़ से उल्टा लटककर अपना विरोध दर्ज कराया।
उनकी मांग है कि प्रशासन पानी के अभाव में उनकी सूख रही फसलों के लिए नहर से पानी उपलब्ध कराए। लेकिन प्रशासन की अनदेखी के चलते उन्हें न सिर्फ अपनी मांग के समर्थन में धरने और क्रमिक अनशन पर बैठना पड़ा, बल्कि प्रशासन का ध्यान खींचने के लिए विरोध के विभिन्न तरीकों को भी आजमाना पड़ रहा है। खास बात ये है कि इस आंदोलन में पहली बार दो महिलाएं भी बैठी हैं। यहां महिला किसानों की भागीदारी पहले देखनो को नहीं मिली। दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार, आंदोलनरत किसान सरकार और प्रशासन का ध्यान अपनी मांग की ओर खींचने के लिए रोज नये-नये तरीके आजमा रहे हैं। कभी वे मुर्गा बनकर तो कभी सिर मुंडवाकर, तो कभी चारा खाकर या भैंस के आगे बीन बजाकर अपना रोष व्यक्त करते हैं।
किसानों का कहना है कि कई बार प्रशासन से नहर का पानी पहुंचाने की मांग की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही। सात जनवरी से सिंचाई का पानी बंद है। तीन-चार दिन और पानी नहीं मिला तो किसान बर्बाद हो जाएंगे, करीब 10 हजार बीघा जमीन में फसलें सूख जाएगी। बुआई खर्च भी नहीं निकल पाएगा। लेकिन जब सरकार सैद्धांतिक तौर पर ही किसानों को बेहतरी का सब्जबाग दिखा रही हो तो भला इन बेतालों की सुध कौन ले?
पिछले साल भी यही थी कहानी
प्रदेश सरकार की अनदेखी की मार किसानों को पहली बार नहीं देखने को मिल रही। पिछले साल यानी 2017 में भी किसानों के एक प्रतिनिधिमंडल ने शासन-प्रशासन से इसी मांग को लेकर विरोध जताया था। नहरी पानी की मांग को लेकर किसान आमरण अनशन पर भी बैठे थे। इनमें से दो को गंभीर हालत में अस्पताल भी पहुंचाया गया था। अक्टूबर 2017 में ही धान की खेती बर्बाद होने के बाद किसान की आत्महत्या को लेकर कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने पदयात्रा यहीं से निकाली थी। यात्रा में सैकड़ों की संख्या में किसानों ने भागीदारी की थी। यात्रा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के विधानसभा क्षेत्र झालावाड़ तक निकली थी।
बूंदी के किसानों को विरासत में मिला जुझारूपन
बूंदी का किसान आंदोलन इतिहास के पन्नों में अंकित है। ये पहली बार नहीं है कि किसान अपनी मांगों को लेकर डटा हो। इतिहास लम्बा है। 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में अंग्रेजी हुकूमत और जमींदारी प्रथा के दोषों के खिलाफ यहां के किसानों ने लम्बी लड़ाई लड़ी। ये किसान ऊंची दरों पर लगान वसूली से त्रस्त थे सो इन्होंने अहिंसक आंदोलन का सहारा लिया। लेकिन तब की सरकार ने दमनकारी नीति चलाकर इसे असफल बना दिया। संघर्ष पूरी तरह से विफल नहीं रहा और सरकार ने कुछ रियायतें किसानों को जरूर दीं। 20 साल तक ये आंदोलन चला।