क्या मोदी सरकार चीनी उत्पाद को लेकर गोविंदाचार्य की इन मांगों पर गौर करेगी?
सत्ता विमर्श डेस्क
नई दिल्ली : आर्थिक चिंतक, राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के प्रणेता और राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के पूर्व पदाधिकारी के.एन. गोविंदाचार्य ने भारत में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए एक मांग पत्र जारी किया है। निश्चित रूप से गोविंद जी ने इस मांग पत्र को प्रधानमंत्री के ध्यानार्थ भेजा होगा। क्योंकि अभी नरेंद्र मोदी चीन की यात्रा पर भी जाने वाले हैं। भारत में चीनी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए मांग-पत्र में निम्न बातों का उल्लेख किया गया है...
1. चीन के खिलाफ सीमा की बजाए आर्थिक मोर्चे पर लड़ना होगा।
2. आजादी के पहले हमारी अर्थव्यवस्था ब्रिटेन की औपनिवेशक गुलाम थी और अब हम चीनी वस्तुओं के अभ्यस्त हो गये हैं।
3. चीनी उत्पादों ने आमजन के अलावा अर्थव्यवस्था तथा सामरिक क्षेत्र यथा रक्षा, टेलीकॉम, सॉफ्टवेयर, इंटरनेट, ई-कॉमर्स, रियल इस्टेट, इन्फ्रास्क्ट्रचर इत्यादि को अपने सिकंजे में ले लिया है।
4. 21 मोबाईल कम्पनियों को सरकार द्वारा डेटा चोरी के बारे में नेटिस दिया गया है, इनमें अधिकांश चीनी कम्पनियां हैं।
5. चीन की अलीबाबा कम्पनी भारतीय ई-कॉमर्स बाजार में बड़े पैमाने पर आधिपत्य जमाये हुए है।
6. डिजिटल इंडिया में स्वदेशीकरण के लिए हम पुरानी यूपीए तथा नई एनडीए सरकार के खिलाफ सन् 2012 से संघर्ष कर रहे हैं जिसके तहत हमारी मांग है-
I. डेटा के कारोबार पर टैक्स लगे।
II. देश के बाहर डेटा नहीं जाये इसके लिए सर्वर्स भारत में स्थापित हों, तभी मेक इन इंडिया सफल हो पायेगा।
III. एक सर्वर से औसतन 1000 लोगों को रोजगार मिलता है। सर्वर भारत में होने से सरकार की टैक्स आमदनी भी बढ़ेगी।
7. सरकार की विफलता
I. गूगल ने दो साल पहले भारत में अपनी आमदनी 4.29 लाख करोड़ बताई थी जबकि टैक्स सिर्फ 4000 करोड़ की आमदनी में दिया जाता था। सरकार द्वारा जांच की नहीं गई और अब गूगल अपनी सही आमदनी छिपाने के बावजूद देश की नम्बर एक कम्पनी बनी हुई है।
II. सरकार टेलीकॉम कम्पनियों द्वारा कॉलड्रॉप पर लगाम लगाने में विफल रही है। कॉलड्राप में बगैर बातचीत के ग्राहकों को 67000 करोड़ की चपत लगी। ट्राई ने कहा कि उसके पास अधिकार ही नहीं हैं। और अब कहा जा रहा है कि कॉलड्राप पर दस लाख की पैनल्टी लगाई जायेगी।
III. देश में 2.25 लाख एटीएम में 50 हजार से ज्यादा व्हाइट लेवल विदेशी एटीएम हैं जिनकी वजह से लोगों का डेटा चोरी होता है और ग्राहकों को हजारों करोड़ की चपत लगती है।
IV. केन्द्र में 50 लाख तथा राज्यों को मिलाकर लगभग तीन करोड़ सरकारी अधिकारी हैं। पब्लिक रिकॉर्ड कानून के अनुसार सभी को एनआईसी या स्वदेशी ई-मेल का इस्तेमाल करना जरूरी है। इसके बावजूद सरकार सभी अधिकारियों को सरकारी ई-मेल देने में विफल रही है, जिससे देश का डेटा विदेशों में जा रहा है।
V. अंर्तराष्ट्रीय जगत में अब असली लड़ाई के बजाए साइबर लड़ाई हो रही है। इस बात की पुष्टि अमेरिका के चुनाव में हुई जहां रुस के राष्ट्रपति पुतिन के हस्तक्षेप की बात सामने आई। अमेरिका में सीआईए ने कई साल पहले ऑपरेशन प्रिज्म के तहत इंटरनेट की नौ कम्पनियों से अरबों सूचनाएं लेकर बड़े पैमाने पर जासूसी की। इन कम्पनियों को भारत में दण्डित करने की बजाए उन्हें व्यापार की सहूलियत दी जा रही है।
VI. देश में जीएसटी और नोटबन्दी के बाद आम जनता के ऊपर ब्लैकमनी के लिए पूरी सख्ती है। पर 50 बड़ी कम्पनियों द्वारा 2.3 ट्रिलियन डॉलर टैक्स चोरी करके टैक्स हैवन में जमा की गई है पर सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की।
8. राजनीतिक दलों द्वारा सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर नियमन और जवाबदेही के लिए इलैक्शन कमीशन ने अक्टूबर 2013 में दिशा-निर्देश जारी किये गये थे। चुनाव आयुक्त के ताजा बयान से स्पष्ट है कि इन नियमों का पालन करने की बजाए अब नये नियमों की बात हो रही है।
9. ये हैं राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन की मांगें
I. डिजिटल इंडिया तथा ई-कॉमर्स के तहत आ रही सभी प्रकार की एफडीआई पर केवाईसी के तहत पूर्ण पारदर्शिता के नियम लागू हो।
II. डिजिटल इंडिया और इंटरनेट के तहत भारत में हो रहे डेटा से सम्बन्धित सभी प्रकार के कारोबार पर जीएसटी लगे।
III. देश में व्यापार कर रही सभी कम्पनियों के ऑफिस भारत में खोले जायें और उनमें शिकायत अधिकारी की नियुक्ति हो।
IV. 13 वर्ष से छोटे बच्चों को सोशल मीडिया तथा इंटरनेट के कुचक्र से बचाने के लिए सरकार नियमों का सख्ती से पालन करे, जिससे ब्लू व्हेल और पोर्न सामग्री से बच्चों का बचाव हो सके।
V. देश में इंटरनेट के कारोबार और डेटा के लिए सभी सर्वर भारत में स्थापित हों जिससे रोजगार के साथ देश की आमदनी में वृद्धि हो।
VI. चीनी उत्पादों की तस्करी तथा चोर दरवाजे से चीनी कम्पनियों की सामरिक क्षेत्र में भागीदारी पर तुरन्त रोक लगे।