साफ-सफाई से अभी भी कोसों दूर हैं देश के 47 प्रतिशत शहराती
प्रवीण कुमार
नई दिल्ली : वैश्विक संस्था वॉटर एड की एक रिपोर्ट को मानें तो देश के शहरी इलाकों में रहने वाले कम से कम 15.7 करोड़ लोग यानी 47 फीसदी भारतीय पर्याप्त साफ-सफाई के साथ नहीं रहते हैं। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि पर्याप्त स्वच्छता के अभाव के मामले में भारत के बाद दूसरा स्थान चीन का है। चीन में 10.4 करोड़ लोगों की जिंदगी में साफ-सफाई का कोई स्थान नहीं है।
शहरी स्वच्छता के मामले में भारत की स्थिति बहुत ही खराब है। भारत के शहरी इलाकों में साफ-सफाई के बगैर रहने वाले लोगों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है। इसके साथ ही किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में खुले में शौच जाने वाले लोग भी सबसे अधिक हैं। वाटर एड के आंकड़े मोदी सरकार के 'स्वच्छ भारत मिशन' के मकसद पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं।
अगर आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में खुले में शौच करने वालों की संख्या 4.1 करोड़ है। वॉटर एड की ताजा स्टडी (ओवरफ्लोइंग सीटीज : स्टेट ऑफ द वर्ल्ड टॉयलेट्स) के मुताबिक खुले में शौच करने से उत्पन्न होने वाला अपशिष्ट, ओलंपिक आकार के 8 स्विमिंग पूल भरे जाने जितना है। इस संबंध में भारत के बाद दूसरा स्थान इंडोनेशिया का है। इंडोनेशिया के लिए ये आंकड़े 1.8 करोड़ है।
विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में दुनिया के कम से कम 390 करोड़ लोग या 54 फीसदी आबादी शहरों में रहती है। इनमें से 38.1 करोड़ या 9.7 फीसदी शहरी भारत के हैं। आर्थिक और सामाजिक मामलों के संयुक्त राष्ट्र विभाग (UNDESA) द्वारा 2014 की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2050 तक वैश्विक आबादी का दो तिहाई हिस्सा शहरों में रहेगा और इसका मतलब भारत के शहरी क्षेत्रों की आबादी 60 प्रतिशत के करीब होगी।
स्वच्छता सुविधाओं के अभाव का सबसे ज्यादा असर मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों पर पड़ता है। इससे विकासशील दुनिया भर में लगभग 863 मिलियन लोग प्रभावित होते हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में यह संख्या 65 मिलियन यानी 6.5 करोड़ है। वॉटर एड की रिपोर्ट कहती है कि गंदगी का प्रभाव केवल लोगों के व्यक्तिगत स्वास्थ्य ही नहीं, अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है।
गंदे पानी और गंदगी के कारण होने वाले दस्त से हर साल 315,000 बच्चों की मौत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़ों के अनुसार विश्व स्तर पर करीब आधे कुपोषण के शिकार बच्चों की मौत के कारण भी इससे ही जुड़े हैं। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में कम से कम 117,300 बच्चों की मौत दस्त के कारण हुई है। विश्व स्तर पर होने वाली मौत का यह 37 फीसदी है।
हालांकि स्वच्छ भारत मिशन ने इस दिशा में काफी काम किया है। 2 अक्टूबर, 2014 को शुरू किए गए स्वच्छ भारत मिशन के तहत 40 फीसदी व्यक्तिगत शौचालयों (26.6 मिलियन शौचालय) का निर्माण किया गया है। इस योजना के तहत 2019 तक भारत को खुले में शौच मुक्त बनाना है। इसके लिए 66.4 मिलियन शौचालयों का निर्माण करना होगा।
255760 शौचालयों का निर्माण करने के लक्ष्य के मुकाबले 9 नवंबर तक 9 फीसदी से अधिक सार्वजनिक शौचालय (23788) का निर्माण नहीं हुआ है। 405 शहरों को खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया है। जबकि 739 शहरों को शौच मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है। यानी की समापन दर 54.8 फीसदी है। (इंडिया स्पेंड की इनपुट के साथ)