मिलिए किंगडम ऑफ दीक्षित के हिंदुस्तानी राजा से!
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: सुयश दीक्षित नहीं अब ये राजा सुयश दीक्षित बन गए हैं। राजा हैं किंगडम ऑफ सुयश के। ये देश मिस्त्र और सूडान के बीच पड़ता है और इन्होंने यहां अपना झण्डा गाड़ अधिकार जमा लिया है। अपने विजन का खाका खीच इन्होंने संयुक्त राष्ट्र को मेल कर दिया है।
पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर इंदौर के इस युवा राजा का कहना है कि दुनिया के किसी भी कोने में रहता शख्स इनके किंगडम का नागरिक इंटरनेट के जरिए बन सकता है। और कहीं से भी अपने विचारों को साझा कर सकता है। लेकिन इतना तय है कि नागरिकता के इच्छुक लोगों को मानवता के लिए समर्पित रहना होगा, उन परियोजनाओं पर काम करना होगा जो समाज की बेहतरी के लिए हो। ऐसा इसलिए भी क्योंकि ये देश दो ऐसे देशों के बीच आता है जहां आतंकवाद का साया है।
इजिप्ट और सूडान के बीच करीब 800 स्क्वॉयर मील की एक जगह ऐसी है जिस पर कोई भी देश दावा नहीं करता है। इसे बीर तवील कहते हैं। वहां कोई नहीं रहता है। यह रेगिस्तान और बंजर इलाका है। मध्य प्रदेश के इंदौर के रहने वाले सुयश दीक्षित हाल ही में ऑफिशियल ट्रिप पर इजिप्ट गए हुए थे और उन्होंने उस जगह पर जाकर अपना झंडा गाड़ दिया। जमीन में बीज रोपा और खुद को उस जगह का राजा घोषित कर दिया। जगह का नाम रखा किंगडम ऑफ दीक्षित, जिसकी राजधानी है सुयशपुर।
सुयश ने इस जगह पर झंडे गाड़ते हुए अपनी तस्वीर शेयर की है और देश का नाम 'किंगडम ऑफ दीक्षित' बताया है। उन्होंने एक वेबसाइट भी बनाया है जिसपर विदेशी निवेश और नागरिकता के लिए आवेदन मांगे गए हैं। लेकिन इस इलाके के इतिहास पर गौर करें तो ऐसा पहली बार नहीं हुआ। सोशल साइट्स पर ही कई बार ऐसे दावे किए जा चुके हैं। दरअसल, जिस भूभाग पर उन्होंने अपना दावा ठोका है उस जगह का नाम है बीर तवील। यह दुनिया का एक ऐसा इलाका है जिस पर कोई भी इंसान अपना दावा कर सकता है।
बीर तवील का इतिहास
बीर तवील 2060 वर्ग किलोमीटर में फैला एक इलाका है जो मिस्र और सूडान की सीमा पर स्थित है। यह एक लावारिस इलाका है जिस पर किसी देश का दावा नहीं है। बताया जाता है कि मिस्र और सूडान बीर तवील को इसलिए नहीं चाहते हैं क्योंकि दोनों देश इससे सटे एक बड़े भूभाग पर अपना दावा करते हैं। यह भूभाग है हलाईब। यह त्रिकोणीय इलाका है जो लाल सागर के तट पर 20,580 वर्ग किलोमीटर में बसा है।
वैसे इस इलाके के लावारिस रहने की वजह भी अंग्रेज ही हैं। जिन्होंने ऐसी संधि बनाई जो दोनों देशों में से किसी को पसंद नहीं आई। प्रो. एलस्टेयर बोनेट की 'अनट्रूली प्लेसेसः लॉस्ट स्पेसेस, सीक्रेट सिटीज़ एंड अदर इंस्क्रूटेबल ज्योग्राफ़ीज़' किताब के मुताबिक ब्रिटिश शासनकाल में दोनों देशों के बीच दो सीमाएं तय की गई थीं। पहली सीमा 1899 में और दूसरी 1902 में। 1899 में दोनों देशों के बीच 1239 किलोमीटर लंबी सीधी सीमारेखा तय की गई और बीर तवील और हलाईब को अलग-अलग भूभाग बताया गया।
मिस्र इस सीमा संधि को स्वीकारने को तैयार था और बीर तवील को सूडान के हवाले करने को राज़ी हो गया था। जबकि आर्थिक रूप से फ़ायदे वाले हलाईब को वो अपने पास रखना चाहता था। लेकिन फिर आई अंग्रेजों की 1902 की नई संधि जिसमें फैसला उलट दिया गया और इस बार इस पर मिस्त्र राजी नहीं हुआ। तभी से ये इलाका अपनी बेहतरी की तलाश में खाली पड़ा है। कोई इस पर अपना हक नहीं जताता।
गौरतलब है कि इलाके का प्रयोग आज भी अबाब्दा और बिशारीन जनजाति के लोग करते हैं जिनका जुड़ाव मिस्र से है। यहां वे अपने पशुओं को चराते हैं, सामान ढुलाई और रेत में कैंप बनाकर रहते हैं।
सुयश से पहले 2010, 2011 और 2014 में तीन लोग ऐसा दावा कर चुके हैं।