प्रधानमंत्री जी! मेरी बेटी के हाथों में मेंहदी तो चढ़ी पर मांग में सिंदूर का रंग नहीं चढ़ पाया
प्रधानमंत्री जी!
सादर नमस्ते,
मैं एक गरीब मां हूं। गरीब इसलिए नहीं कि मेरे पास रुपये पैसे की बहुत कमी है लेकिन गरीब इसलिए हूं क्योंकि सब कुछ होते हुए भी मैं अपनी बिटिया का ब्याह नहीं कर पाऊंगी। आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि एक बेटी के हाथ में मेंहदी लगी होने के बाद जब वो दुल्हन ना बन पाती है तो एक मां के दिल पर क्या गुजरती है। बड़ी देख-भाल कर हमने सर्वसम्मति से देव उठान एकादशी का दिन चुना था। सोचा था देवताओं का आशीर्वाद मिलेगा नव-दम्पति को। लेकिन मजबूरन हमें तारीख बदलनी पड़ी है। क्योंकि बैंक मजबूर हैं और मार्केट में कोई 500 और 1000 के रुपये लेने को भी तैयार नहीं है। कतारें लंबी हैं क्योंकि मेरे जैसे कई हैं, जो अपनी बारी के इंतेजार में खड़े हैं।
अभी 8 नवम्बर को ही तो बिटिया के हाथों में मेंहदी रची थी। पूरा खानदान, सभी रिश्तेदार जुटे। माहौल खुशनुमा था। सब कुछ योजनाबद्ध था। फिक्र नहीं थी क्योंकि हलवाई, टेंट हाऊस, बारात घर सबको एडवांस पेमैंट दे दी थी। बस छोटी मोटी खरीददारी और देनदारी का काम बाकी था। लेकिन रात 8:00-8:30 के बाद हमारी खुशी काफूर हो गई। आप ने राष्ट्रहित में एक कठोर फैसला लिया। 500 और 1000 रुपये की मुद्रा बदलने का। उसके बाद तो कोई टीवी के सामने से हटा ही नहीं। सब टकटकी लगाये बैठे रहे। बहस शुरु हुई। सबने सरकार के इस कदम की तारीफ की। पर किसी ने मेरे बारे में या मेरी जैसी हजारों मांओं के बारे में नहीं सोचा। मुझे क्या लेना जानकारों और विशेषज्ञों के विचारों से। मुझे तो सिर्फ इतना पता है कि मेरी आंखों के सामने मेरी बेटी के ख्वाब दम तोड़ रहें हैं।
रात के 10 बजते-बजते हमारे मोबाइल की घण्टियों ने परेशानियों को और बढ़ा दिया। मोहल्ले के हलवाई ने फोन करके कह दिया- 'बीबी जी एडवांस वाले पैसे वापिस ले लो। पैसे ना चलने के। मैं गरीब कैसे सब कुछ कर पाऊंगा।' मैंने उसे बहुत समझाया। मिन्नतें की, लेकिन वो गरीब इस गरीब की बात को नहीं समझ पाया। मैंने उससे आपकी बात भी कही कि भईया दो दिन का इंतजार कर लो, मोदी जी ने कहा है सब ठीक हो जायेगा। पर ना उसे मेरी बात सुननी थी और ना उसने सुनी। अगले दिन सुबह के 7 बजते बजते वो पूरे कैश वापिस कर गया।
अब मुझे पिछली रात पैसे लौटाने की बात करने वाले फूल वाले का इंतजार था। कुछ देर बाद वो भी पैसे लौटा गया। मैं बदहवास सी हो गई। कुछ पल्ले नहीं पड़ा तो बैंक के यूं ही चक्कर लगाने चल दी। हालांकि जानती थी कि बैंक बंद है। एटीएम भी बंद हैं। वहां गई तो फिर लंबी कतार देखी। अपनी तरह की कई मांओं से मिली। सबकी आंखें भरी हुईं और दर्द से बोझिल थीं। अपने जिगर के टुकड़ों के शुभ काम में बाधा पड़े तो मांओं का यही हाल होता है।
बैंक से लौटी तब तक कई लोग एडवांस की रकम लौटा गए थे। अजीब सी स्थिति है। रिश्तेदार भी अपनी संवेदनायें जाहिर कर जा चुके हैं। कईयों ने शगुन भी पहले दे दिया था। लेकिन मैं तो उन्हें वो भी लौटा नहीं पाई। आखिर रिश्तेदारी का मामला है। मेरे हाथों में हजारों नोट हैं फिर भी मैं आज खुश नहीं हूं। वो शायद इसलिए क्योंकि पीएम साहब हम कोई धन्ना सेठ या उच्च वर्ग के नहीं हैं। हम तो निम्न मध्यम वर्ग परिवार के हैं। हम किसी होटल में, किसी बैंक्वेट हॉल में अपना आयोजन नहीं करते, हमारे पास कोई वेडिंग प्लानर भी नहीं होता। बल्कि मोहल्ले का बारात घर, मोहल्ले का हलवाई, मोहल्ले का माली- यही हमारा सहारा होते हैं। सो हमें नहीं पता कि बड़े लोग कैसे चीजों को मैनेज कर रहें हैं। लेकिन हमारी तो दुनिया इन तीन-चार दिनों ने ही बदल कर रख दी। एक अजीब किस्म की छटपटाहट है। समझ नहीं आ रहा कि किसको दोष दें। अपनी किस्मत को, समय को या फिर हुक्मरान को। हमारी तो कोई सुध लेने वाला नहीं।
आखिरकार दिल पर पत्थर रखकर हमने शादी टाल देने का फैसला लिया है, क्योंकि अभी स्थिति सुधरने में वक्त लगेगा। हाथ में नकदी आने में अभी समय है। और बिना रुपये पैसे के तो इतना बड़ा आयोजन मुमकिन ही नहीं। इसका सीधा मतलब है कि हमारा खर्चा और बढ़ गया। क्योंकि कुछ तैयारी तो पहले ही कर ली थी। कई रस्में दोबारा करनी पड़ेंगी, जिसका सीधा मतलब है कि हमारी तिनके भर की बचत भी हाथों से निकल जाएगी। इसके अलावा जो भावनात्मक और मानसिक उत्पीड़न हम झेल रहें हैं उसकी तो कोई सीमा ही नहीं है। हम तो हर तरीके का नुकसान झेलने को मजबूर हैं।
एक मां का आपसे सवाल है कि भारतीय संस्कृति और लोकाचार के इतने बड़े जानकार पीएम से गलती कैसे हो गई। कैसे उन्हें एहसास भी नहीं हुआ कि देव उठान एकादशी का हिंदू परम्परा में क्या महत्व है? आप तो धार्मिक आदमी हैं। ईश्वर पर आस्था रखते हैं तो कैसे भूल कर दी? कहा जाता है कि भगवान विष्णु इसी दिन निद्रा से जागते हैं। भगवान आशुतोष कैलाश की ओर कूच करते हैं। पौराणिक कहानी के अनुसार राजा बेटे की बलि देने को तैयार होता है पर अपना धर्म नहीं छोड़ता। एक प्रधानमंत्री का धर्म भी तो अपने लोगों के कष्ट का ध्यान रखना होता है, भला आपसे ये चूक कैसे हो गई?
प्रधानमंत्री जी मैं एक सच्ची भारतीय हूं। मुझे भी अपने देश से प्यार है और इस बात से भी कोई आपत्ति नहीं कि आपने नोटबंदी की घोषणा की। बस एक कसक है। आपने शमशान घाटों, यात्रा करने वालों, मेडिकल स्टोरों तक को छूट दी लेकिन हमें नहीं याद रखा। भला हम गरीब मां-बाप का क्या दोष था? क्या अपने बच्चों के लिए जागृत देवताओं का आर्शिवाद मांगना हमारा हक नहीं था? एक सवाल और पूछना था कि आपने लगन मूहुर्त को ही क्यों चुना? पितृ पक्ष को क्यों नहीं चुना? दिल में गुबार भी है, पीड़ा भी है। ये असहनीय है। बहुत कुछ कहना और सुनाना चाहती हूं लेकिन शब्दों का अकाल पड़ गया है। बस इतना ही कहना था।
धन्यवाद।
एक व्यथित मां