ऑर्गेनिक मसालों के लिए मशहूर गांव में सड़क भी नहीं
सत्ता विमर्श ब्यूरो
इटानगर : अरुणाचल प्रदेश के इस गांव की पहचान उसके जैविक मसाले हैं। इन मसालों की ख्याति दूर सात समंदर पार तक मिली है। विडंबना ये कि एक बेहतर जिंदगी के लिए उन लोगों के पास पर्याप्त मसाले तो हैं लेकिन एक अदद सड़क की दरकार उन्हें अभी भी है जो उन्हें आगे ले जा सके।
अरूणाचल प्रदेश के ईस्ट सियांग जिले का एंटर सिसेन गांव सियांग नदी के किनारे है। यहां पर उगाए जाने वाले जैविक (ऑर्गेनिक) मसालों की प्रसिद्धि दूर दूर तक है लेकिन विश्व से यह इलाका एकदम कटा हुआ है क्योंकि यहां सड़क नहीं है। एक अदद सड़क की दरकार यहां के रहवासियों को अभी भी है। दूसरे इलाकों के साथ संपर्क के लिए ग्रामवासियों के पास नदी के उपर झूलता बांस का एक पुल है। बड़ों के साथ बच्चे भी केवल इसी सेतु के सहारे नदी को पार करते हैं और रोजाना अपनी जान जोखिम में डालते हैं।
प्रशासन की दृष्टि से यह गांव केबांग सर्कल में आता है और यहां पर केवल 21 मकान है। 2011 की जनसंख्या के अनुसार यहां 140 मतदाता हैं।
अपनी मांग को प्रशासन की नजर में लाने के लिए गांव वालों ने नौ अप्रैल को हुए लोकसभा चुनावों का बहिष्कार किया था लेकिन अभी तक इसका कोई असर नहीं हुआ।
सिसेन गांव के हर घर में बड़े उत्साह के साथ इलायची, अदरक, लाल मिर्च, हल्दी और कुछ औषधीय तथा खुशबू वाले पौधों की खेती की जाती है। गांव के सभी ला्रेगों ने जैविक खेती को अपनाया और मसालों का जैविक उत्पादन शुरू किया ताकि वे अनुबंध या सरकारी नौकरी के बिना, अपना विकास जारी करते रहें। पिछले साल गांव वालों ने दो टन से भी ज्यादा बड़ी इलायची को लटकते पुल के पास स्थित केकर मॉनयिंग बाजार में बेचा था और इसके लिए उन्हें 800 से 950 रूपये प्रतिकिलो का दाम भी मिला था।
गांव के एक युवा किसान बाकिन सिराम के मुताबिक, ‘‘हमारे ग्रामीण अपने उत्पादों को सिर पर लादकर पास के सड़क मार्ग तक ले जाते हैं जिसके लिए उन्हें लटकते पुल को पार करने के बाद पांच से छह किलोमीटर पैदल चलकर जाना होता है। एक आदमी को लगभग 35 किलोग्राम से अधिक इलायची को अपने सिर पर लादकर ले जाना होता है। इसके लिए एक स्थानीय तरीके से तैयार की गई टोकरी का इस्तेमाल करना होता है जिसकी प्रत्येक की कीमत लगभग 30,000 रूपये पड़ती है।’’ पूर्व में इतनी मुश्किलों के बाद एक ग्रामीण सालभर में 10,000 रूपये ही कमा पाता था लेकिन जैविक खेती के बाद से उनकी कमाई बढ़ी है और ग्रामवासियों का मानना है कि यदि उनके क्षेत्र का विकास ठीक से हो तो उनकी कमाई पांच लाख रूपये सालाना तक हो सकती है।