एक थे रामकिशन ग्रेवाल
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: थल सेना से सेवानिवृत लांसनायक रामकिशन ग्रेवाल की एक और पहचान थी। वो अपने गांव के सरपंच थे। सरपंच रहते उन्होंने गांव की सूरत बदल कर रख दी थी। 70 साल के इस सैनिक ने अपने गांव बामला को काफी कुछ दिया। इतना काम किया कि उन्हें काफी सराहना भी मिली। 2004 से डीएससी से रिटायर होने के बाद उन्होंने पूरी लगन से भिवानी के इस गांव के लिए काम किया।
धुन के पक्के ग्रेवाल ने फिर अपनी आवाज वन रैंक वन पैंशन के लिए बुलंद की। एक सैनिक जो डटकर काम करता है हार नहीं मानता ठीक उसी तर्ज पर अपने साथियों के साथ ग्रेवाल जुट गए। हरियाणा के अपने दूसरे साथियों के साथ सोमवार को ग्रेवाल रक्षा मंत्री से मिलने की इच्छा लिए दिल्ली आए। दस्तावेजों के साथ, जिसमें लिखा था कि OROP का लाभ कई पूर्व सैनिकों को नहीं मिल रहा है। छठें और सातवें वेतन आयोग द्वारा तय की गई पेंशन उन्हें बकाये रकम के साथ नहीं मिल पा रही है।
ग्रेवाल ही वो शख्स थे जिन्होंने गांव की बेटियों के लिए स्कूल खुलवाया। गांव में पानी की पाइपलाइन डलवाईं,जिससे काफी हद तक पानी की समस्या दूर हुई और शौचालय की समस्या सुलझी। इनके अभूतपूर्व काम को सरकार ने सम्मान भी दिया। और 2008 में उन्हें निर्मल ग्राम पुरस्कार भी भेंट किया। उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने पुरस्कृत किया था। बामला कुछ निर्मल ग्रामों में से एक बना। गौरतलब है कि इस योजना के तहत सरकार खुले में शौच करने से मुक्त और शौचालय सम्पन्न गांवों को सम्मानित करती रही है। योजना की शुरुआत 2003 में हुई थी।
ग्रेवाल को उनके सामाजिक कार्यों के लिए भी सम्मानित किया गया था।उन्हें शंकर दयाल शर्मा सम्मान भी मिला था। इसके अलावा भारतीय थल सेना के 21वें सेनाध्यक्ष जनरल विज ने भी उन्हें प्रशस्ति पत्र दिया था। यही कारण है कि उनकी खुदकुशी से बामला सदमें में है। सभी उस सैनिक को याद कर रहे हैं जिसने सही मायनों में बेटियों को पढ़ाने के लिए काम किया। गांव का स्कूल जो 10 वीं तक था उसे 12 वीं तक कराया और गांव की लड़कियों के लिए अलग व्यवस्था कराई। शायद इसलिए जुझारू रामकिशन की खुदकुशी को लोग पचा नहीं पा रहें हैं उन्हें यकीन नहीं हो रहा कि जिस शख्स ने पूरी शिद्दत से सबके लिए काम किया वो यूं ही दुनिया को अलविदा कह कर चल दिया।