हरियाणा नगर निगम चुनाव परिणाम ; पंजे के सिंबल पर लड़ती कांग्रेस तो नतीजे कुछ और होते
ओमप्रकाश तिवारी
हरियाणा के पांच नगर निगमों करनाल, हिसार, पानीपत, यमुनानगर और रोहतक में भाजपा के मेयर प्रत्याशी विजयी रहे हैं। इन पांचों शहरों में कांग्रेस के अलग-अलग नेताओं के समर्थित निर्दलीय प्रत्याशियों ने उन्हें सीधी टक्कर दी है। वहीं, रोहतक और यमुनानगर में इनेलो-बसपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि कांग्रेस नगर निगम चुनाव पंजे के सिंबल पर लड़ती तो परिणाम कुछ और होते। यदि भाजपा निगम चुनाव में मिली जीत में आने वाले विधानसभा और लोकसभा में भी विजयश्री खोज रही है तो यह उसकी भूल ही साबित होगी। इस हकीकत से मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी वाकिफ लगते हैं। यही वजह है कि उन्होंने पहले ही यह कह दिया कि निगम चुनाव के नतीजे विधानसभा चुनाव के लिए जनादेश नहीं है। यह हकीकत भी है। जिस तरह से सीएम सिटी करनाल में भाजपा प्रत्याशी रेणु बाला गुप्ता केवल 9,348 वोटों से जीती हैं, उससे मनोहर लाल के लिए भी खतरे की घंटी बज गई है।
जानकारों की मानें तो यदि कांग्रेस सिंबल के साथ मैदान में उतरती तो पंजे का दम दिखाई देता। मतदान के दौरान ऐसी शिकायतें आईं थीं कि मतदाता कांग्रेस को वोट देने के लिए उसका चुनाव चिह्न खोज रहे थे, लेकिन जब वह नहीं मिला तो दूसरे को वोट दे दिया। रोहतक और हिसार में जिस तरह से निर्दलीय पार्षदों ने जीत हासिल की है, उससे संकेत मिलता है कि सिंबल पर चुनाव लड़ने का फायदा कांग्रेस को मिलता। स्थिति यह है कि रोहतक के 22 वार्ड में से भाजपा के केवल 8 पार्षद जीते हैं। हिसार के 20 में से 7 पार्षद भाजपा के विजयी रहे हैं। यमुनानगर में 22 में से 13 पार्षद भाजपा के जीते हैं। करनाल में 20 में से 12 पार्षद भाजपा के जीते हैं। केवल पानीपत में 26 में से 22 पार्षद भाजपा के विजयी रहे हैं। इससे भी संकेत मिलता है कि इस जीत से भाजपा को किसी गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए। माना जा रहा है कि पांच नगर निगम चुनाव में भाजपा को मिली जीत आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में उसके लिए संजीवनी का काम करेगी।
जानकार मानते हैं कि इस जीत से निश्चित रूप से भाजपा का मनोबल बढ़ेगा और वह उत्साह से चुनाव मैदान में उतरेगी, लेकिन विधानसभा और लोकसभा चुनाव में परिस्थितियां भी बदल जाएंगी। मुद्दों के साथ क्षेत्र और भौगोलिक दायरा भी बढ़ जाएगा। भाजपा के विरोध में कांग्रेस, इनेलो-बसपा गठबंधन, दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी और राजकुमार सैनी की पार्टी के साथ ही निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में आ जाएंगे। इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में शहरी मुद्दे किनारे हो जाएंगे। ऐसे में कई जगहों पर मुकाबला त्रिकोणीय से लेकर चतुष्कोणीय तक हो जाएगा। ऐसे हालात में परिणाम अभी के नगर निगम जैसा शायद ही रहें। इसके बाद होगी असली जंग, जिसमें वही जीतेगा जिसमें दम होगा।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने रोहतक में, सावित्री जिंदल और कुलदीप विश्नोई ने हिसार में, हुड्डा ने करनाल में, कुमारी शैलजा ने यमुनानगर और पानीपत में कांग्रेस नेता बुल्ले शाह ने निर्दलीय प्रत्याशी को समर्थन दिया। सभी दूसरे स्थान पर रहे। जीता कोई नहीं। प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर ने चुनाव के दौरान घूम-घूम कर कहा कि कांग्रेस चुनाव नहीं लड़ रही है। न ही किसी को समर्थन दे रही है। लिहाजा सभी हार गए। इससे यह भी सिद्ध हो गया कि कांग्रेस के दिग्गज भी चुनाव चिह्न पंजे के बिना बेअसर और खोखले हैं।
क्या कहते हैं मेयर प्रत्याशियों को मिले वोट
भाजपा के विजयी और दूसरे नंबर पर रहे प्रत्याशियों को मिले वोट भी संकेत देते हैं कि निगम चुनाव का असर विधानसभा और लोकसभा चुनाव पर कम दिखाई पड़ेगा। करनाल में भाजपा की मेयर प्रत्याशी रही रेणु बाला केवल 9348 वोटों से जीती हैं। उन्हें 69960 वोट मिले, जबकि दूसरे नंबर पर रहीं निर्दलीय आशा को 60612 वोट मिले हैं। पानीपत में भाजपा की अवनीत कौर को 1,26,321 वोट मिले हैं जबकि उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी निर्दलीय अंशु पाहवा को 74,940 वोट मिले हैं। यमुनानगर में भाजपा के मदन सिंह चौहान 40678 वोटों से विजयी रहे हैं। उन्हें 1,96447 वोट मिले हैं जबकि कांग्रेस समर्थित राकेश को 50,964 वोट मिले हैं। तीसरे नंबर पर रहे इनेलो-बसपा प्रत्याशी संदीप गोयल को 32,315 वोट मिले हैं। हिसार में भाजपा के मेयर प्रत्याशी गौतम सरदाना 28091 वोटों से विजयी रहे हैं। उन्हें 68,196 वोट मिले हैं जबकि रेखा को 40,105 वोट मिले हैं। रोहतक में भाजपा के मनमोहन गोयल 14,776 वोटों से विजयी रहे हैं। गोयल को कुल 65,822 वोट मिले हैं, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी सीताराम सचदेवा को 51,046 वोट मिले हैं। तीसरे नंबर पर रहे इनेलो प्रत्याशी संचित नांदल को 32775 वोट मिले हैं। विधानसभा और लोकसभा चुनावों में जब मुद्दे और प्रत्याशी बदल जाएंगे तो मतदाताओं का मूड भी बदला हुआ नजर आएगा। जितने भी मेयर जीते हैं वे सभी कारोबारी वर्ग से आते हैं। जाहिर है कि उनका जनाधार शहरी आबादी में बेहतर हो सकता है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों का दायरा बढ़ने और मजबूत प्रत्याशियों के मैदान में आने से हालात एकदम से बदल जाते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हैं।)