Just do it! क्या भारत में यह संभव है?
किरण राय
इन दिनों अमेरिका में एक ब्रांड और एक नाम की चर्चा जोरों पर है। कुछ के लिए ये ट्रम्प सरकार को सीधेतौर पर आंख दिखाने वाला जिगरा लग रहा है तो कुछ इसे अपने देश का अपमान मान रहें हैं। यहां बात NFL के बेरोजगार खिलाड़ी केपरनिक कोलिन और स्पोटर्स प्रोडक्टस बनाने वाले मशहूर ब्रांड नाइकी की हो रही है। कम्पनी ने कोलिन का साथ दिया और सरकार को आड़े हाथों ले लिया। जिक्र भले ही सात समंदर पार का हो रहा हो लेकिन हमारे देश में भी बेचैनी दिख रही है। इस बेचैनी के बीच ही सवाल उठता है कि क्या ये हमारे देश में संभव है? क्या कोई बड़ा ब्रांड दक्षिणपंथी विचारधारा या यूं कहें कि सरकार के विरोध में आवाज बुलंद करने का हौसला रखता है? आज की तारिख में जवाब का अंदाज शायद हमें भी है। इतिहास गवाह रहा है कि देश में जिसकी सत्ता रहती है उसके खिलाफ जाने की हिम्मत हमारा मार्केट उठा ही नहीं पाता। बहाव के विरुद्ध नहीं बल्कि बहाव के साथ चलने और बहने का आसान तरीका सबको रास आता है।
कौन है कोलिन?
दरअसल, अफ्रीकी-अमेरिकी मूल के कोलिन ने अपनी सरकार की भेदभाव भरी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने का जिम्मा दो साल पहले ही उठा लिया था। उन्होंने नस्लीय हिंसा के खिलाफ आइना दिखाने के लिए जो रास्ता चुना उसे देश का अपमान माना गया। उन्होंने राष्ट्रीय गान के वक्त खड़े रहने के बजाए घुटनों के बल बैठने का फैसला लिया और करके दिखाया। अपनी इस हिमाकत के जवाब में उन्हें बेरोजगारी का दंश झेलना पड़ रहा है। ये वाकया 2016 नेशनल फुटबॉल लीग में उस वक्त सैन फ्रान्सिस्को 49ers की ओर से क्वार्टरबैक प्लेयर कॉलिन केपरनिक ने एक मैच के दौरान ऐसा किया था। और आज नाइकी ने केपरनिक को अपने नए एडवर्टाइजिंग कैंपेन का चेहरा बनाया है। केपरनिक के चेहरे को ब्रांड के ऐड का नया चेहरा बनाने के बाद से ही अमेरिका में नाइकी का विरोध शुरू हो गया है। वहां लोग विरोध में नाइकी के शूज़ जला रहे हैं, निवेशकों ने अपने शेयर बेच दिए हैं और ग्राहकों ने कंपनी का बायकॉट करने की मांग उठाई है। पहली नजर में देखें तो कंपनी फिलहाल बड़ा विरोध झेल रही है लेकिन मार्केटिंग एक्सपर्ट की मानें तो इसमें कंपनी को ही फायदा है। बाजार के विशेषज्ञों ने कहा कि ये सबकुछ वही है, जो कंपनी को चाहिए था और कंपनी इसमें सफल भी होगी।
ट्रम्प के आगे भी नहीं झुका ब्रांड
किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए ये एक अच्छी बात कही जा सकती है। जहां देश का मुखिया ब्रांड का मुखर विरोध करता है। एड को वापस लेने की बात करता है लेकिन ब्रांड समझौता नहीं करता वो अपने स्ट्रेटजी कहें या जिद्द कहें इस पर कायम रहता है। गौरतलब है कि 2016 में हुई घटना पर कॉलिन केपरनिक के आलोचकों में से एक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी रहे हैं। उन्होंने उस वक्त केपरनिक के इस कदम को कृतघ्न और अपमानजनक बताया था। उन्होंने एक इंटरव्यू में नाइकी के इस कैंपेन को एक भयावह फैसला बताया। ट्रंप ने उस वक्त एनएफएल पर अपने खिलाड़ियों को ऐसा बर्ताव न करने देने का दबाव बनाया था, जिसे एनएफएल को मानना पड़ा था लेकिन नाइकी के कैंपेन में केपरनिक को लिए जाने के इस फैसले की एनएफएल ने भी सराहना की है। बता दें ये वही एनएफएल एपिसोड होने के बाद केपरनिक को एनएफएल से अलग होना पड़ा और अभी वो किसी भी टीम का हिस्सा नहीं हैं।
रणनीतिक कौशल की मिसाल
स्ट्रेटजी कंसल्टिंग फर्म विवाल्डी के सीईओ एरिक जोकिमस्टेलर ने कहा कि नाइकी के लिए इससे पैसे ही आएंगे। वो पहले ही ऐसे विद्रोही एटिट्यूड की ब्रांडिंग करते रहे हैं और अब केपरनिक को चुनकर वो ब्रांड को और मजबूत कर रहे हैं। नाइकी केपरनिक को 2011 से स्पॉन्सर करती रही है और कंपनी ने कहा है कि वो अपने स्लोगन 'Just Do It' के 30वीं एनिवर्सिरी के कैंपेन में कई दूसरे चेहरों में केपरनिक को भी शामिल करेगी। कंपनी ने इस नए कैंपेन में केपरनिक के चेहरे के साथ लिखा है, 'अपना विश्वास बनाए रखो। भले ही इसके लिए सबकुछ न्योछावर करना पड़े (Believe in something। Even if it means sacrificing everything)।' मार्केट एक्सपर्ट्स का कहना है कि नाइकी को पता है कि उसके कस्टमर 14-22 साल की उम्र के युवा हैं और उन्हें ये एटीट्यूड पसंद है।
अभी नुकसान लेकिन होगा दूरगामी फायदा
सोमवार को ये कैंपेन लॉन्च हुआ और फिर इसका विरोध शुरू होने के बाद से कंपनी के शेयर में अबतक 4 प्रतिशत की गिरावट आई है। बायकॉट करने की मांग के बाद से सोशल मीडिया पर लोग अपना विरोध जता रहे हैं और इसके बारे में बात कर रहे हैं। सोशल मीडिया एनालिसिस फर्म टॉकवॉकर ने बताया है कि पिछले 24 घंटों में सोशल मीडिया पर 20 लाख से ज्यादा बार नाइकी को मेंशन किया गया है।
दुनिया में और भी हैं कई नजीर
दुनिया में ऐसे कई खिलाड़ी हैं जिन्होंने अपनी सरकारों के खिलाफ या देश में हो रहे अतिवाद के खिलाफ आवाज उठाई है। चाहें वो पड़ोसी देश श्रीलंका के महान क्रिकेटर महिला जयवर्धने हों या फिर सनथ जयसूर्या। इन्होंने देश में हुए दंगों को लेकर अपनी बात पूरे तर्क के साथ सोशल मीडिया पर शेयर की। जयवर्धने का ये लिखना कि मैं नहीं चाहता कि जिस तरह के गृहयुद्ध के माहौल में मैंने पच्चीस साल गुजारे वैसे आने वाली पीढ़ी गुजारे...बहुत कुछ कह जाता है। फिर बात वहीं अपने देश पर आती है क्या हमारे यहां ऐसा होगा? यहां तो फिल्म को लेकर विरोध होता है तो देशहित में माफी मांग ली जाती है। और संसद तक पहुंच कर भी कोई खिलाड़ी किसी भी ज्यादती के खिलाफ आवाज नहीं उठाता। दंगों की बात तो छोड़ ही दीजिए।
कौन भूल सकता है महान बॉक्सर कैशियस क्ले उर्फ मोहम्मद अली का वो दर्द जो उन्होंने रेस्त्रां में झेला और अपना ओलंपिक मेडल ओहिओ नदी के हवाले कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अमेरिकी सरकार द्वारा वियतनामी जनता के खिलाफ शुरू किए गए अन्यायपूर्ण युद्ध में शामिल होने से इंकार करके अपने हेवीवेट पदक को खो देने का मसला हो, वह निरंतर बगावत करते रहे। उन्होंने उसका दंश झेला और जेल की सजा भी भुगती। विद्रोही खिलाड़ियों की इस सूची में टॉमी स्मिथ, जान कार्लोस जैसों का नाम भी स्वर्णाक्षरों से अंकित हैं। 1968 के मेक्सिको सिटी ओलंपिक्स के 200 मीटर दौड़ के मेडल प्राप्त करते वक्त तीनों विजेताओं टॉमी स्मिथ, जॉन कार्लोस (दोनों अमेरिकी) और पीटर नॉरमन (ऑस्टेलिया) ने मिल कर अमेरिका में अश्वेतों के हालात पर अपने विरोध की आवाज पोडियम से ऐसी उठाई की दुनिया हक्की बक्की रह गई।
अफ्रीकी अमेरिकी टॉमी स्मिथ (स्वर्ण विजेता) एवं जॉन कार्लोस (कांस्य विजेता) ने पोडियम पर खड़े होकर अपनी मुट्ठियां ताने चर्चित ब्लैक पॉवर का सैल्यूट दिया था और रजत पदक विजेता पीटर नॉरमन उन दोनों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करते हुए अपने सीने पर ओलंपिक्स फॉर ह्यूमन राइट्स का बैज लगाया था। इन तीनों को ही बाद तक वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे। तीनों ने कभी अपनी करनी पर अफसोस नहीं जताया और अपनी करी पर अटल रहे। इन सभी ने अपने लोगों की नाराजगी लंबे समय तक झेली क्योंकि वो दौर मार्केटिंग का नहीं था लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। सोशल मीडिया है, युवा है और सोच का विस्तार दायरा है। केपरनिक को लेकर बड़ा तबका नाराज है तो तादाद उन लोगों की भी कम नहीं जो इस खिलाड़ी के जज्बे को सलाम कर रहें हैं इनमें नाम सेरेना विलियम्स का भी शामिल है।