क्या था जम्मू कश्मीर से संबंधित भारतीय संविधान की धारा 370 और 35ए? जो अब खत्म हो गया है
सत्ता विमर्श ब्यूरो
भारतीय संविधान की धारा 370 क्या है और इसे संविधान से हटाने के क्या मायने हैं? धारा 370 के प्रावधानों के अनुसार, संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित कानून को लागू करवाने के लिए केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए। इसे इस तरह से समझा जा सकता है।
- इस विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती।
- राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है।
- जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता (भारत और कश्मीर) होती है।
- भारत की संसद जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में अत्यन्त सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है।
- जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग है। वहां के नागरिकों द्वारा भारत के राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना अनिवार्य नहीं है।
- इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का अधिकार है, लेकिन भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते।
- भारतीय संविधान की धारा 360 जिसके अन्तर्गत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती।
- जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
- भारत के सुप्रीम कोर्ट के आदेश जम्मू-कश्मीर के अंदर मान्य नहीं होते हैं।
- जम्मू-कश्मीर की कोई महिला अगर भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जाती है। इसके विपरीत अगर वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती है।
- धारा 370 की वजह से कश्मीर में आरटीआई और सीएजी जैसे कानून लागू नहीं होते हैं।
- कश्मीर में महिलाओं पर शरीयत कानून लागू है।
- कश्मीर में पंचायत को अधिकार प्राप्त नहीं है।
- धारा 370 की वजह से ही कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है।
अनुच्छेद 35 ए क्या है?
- यह संविधान में शामिल किया गया एक प्रावधान है जो जम्मू-कश्मीर की विधायिका को यह तय करने का अधिकार प्रदान करता है कि कौन प्रदेश के स्थायी निवासी हैं, जिन्हें सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों और संपत्ति की खरीद में विशेषाधिकार के साथ-साथ छात्रवृत्तियां व अन्य जनकल्याण संबंधी सहायता प्रदान की जाए।
- इस प्रावधान के तहत आने वाले किसी भी कानून को संविधान या देश के अन्य कानून के उल्लंघन को लेकर चुनौती दी जा सकती है।
- पंडित जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल की सलाह पर तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के एक आदेश द्वारा 1954 में अनुच्छेद 35-ए को संविधान में शामिल किया गया।
- संविधान में शामिल 1954 के विवादास्पद आदेश में पंडित नेहरू और जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला के बीच 1952 में हुए दिल्ली समझौते का अनुपालन किया गया जिसके तहत भारत की नागरिकता को जम्मू-कश्मीर के राज्य का विषय बताया गया।
- राष्ट्रपति का आदेश संविधान के अनुच्छेद 370 (1) (डी) के तहत जारी किया गया था। संविधान के इस अनुच्छेद के प्रावधान के तहत राष्ट्रपति को जम्मू-कश्मीर के राज्य के विषय के हित के लिए संविधान में कुछ अपवाद और परिवर्तन करने की अनुमति प्रदान की गई है।
- लिहाजा, भारत सरकार की विशेष अवधारणा के प्रमाण के तौर पर अनुच्छेद 35-ए को संविधान में शामिल किया गया जिसके तहत जम्मू-कश्मीर में स्थायी निवासी के प्रावधान को शामिल किया गया।
- गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) वी द सिटीजंस द्वारा दायर जनहित याचिका में अनुच्छेद 35ए और अनुच्छेद 370 को चुनौती दी गई है। इसमें बताया गया है कि संविधान सभा में कश्मीर के चार प्रतिनिधि थे लेकिन संविधान में कोई विशेष दर्जा का उल्लेख नहीं किया गया।
- याचिका के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य बनाने और प्रदेश में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए अनुच्छेद 370 महज एक अस्थायी प्रावधान था।
- याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 35 ए भारत के खुलेपन की भावना के विरुद्ध है क्योंकि इसके तहत भारत के नागरिकों के बीच एक वर्ग पैदा होता है।
- इससे दूसरे प्रदेश के लोगों को जम्मू-कश्मीर में नौकरी पाने और संपत्ति खरीदने का अधिकार नहीं मिलता है जोकि संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
धारा 370 के होने और न होने के ये 8 तथ्य
1. पहले जम्मू-कश्मीर का अपना अलग झंडा था। वहां के नागरिकों द्वारा भारत के राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना अनिवार्य नहीं था। लेकिन अब जम्मू कश्मीर का अलग झंडा नहीं होगा और भारत के दूसरे हिस्सों की तरह यहां भी तिरंगा ही लहराया जाएगा। अब वहां के लोगों को भी राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का सम्मान करना होगा।
2. पहले वोट का अधिकार सिर्फ जम्मू-कश्मीर के स्थायी नागरिकों को था। देश के दूसरे राज्यों के नागरिक को वहां की मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराने का अधिकार नहीं था। अब देश के दूसरे राज्यों के नागरिक भी जम्मू-कश्मीर और लद्दाख की मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करा सकते हैं और वोट कर सकते है। धारा 370 समाप्त किए जाने के साथ ही 'वोट का अधिकार सिर्फ जम्मू-कश्मीर के स्थायी नागरिकों' वाला प्रावधान समाप्त हो गया है।
3. पहले जम्मू-कश्मीर के विधानसभा का कार्यकाल छह साल का होता था जबकि देश के किसी भी राज्य में किसी भी राज्य सरकार का कार्यकाल 5 साल से अधिक का नहीं होता है। अब देश के किसी भी राज्य की तरह जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा का कार्यकाल 5 साल का होगा।
4. पहले जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता (भारत और कश्मीर) होती थी। अब जम्मू कश्मीर के लोगों के पास सिर्फ एक भारतीय नागरिकता होगी।
5. पहले भारत के नागरिकों को स्पेशल राज्य का दर्जा प्राप्त जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने की इजाजत नहीं थी। यानी दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते थे। अब धारा 370 के खत्म होते ही दूसरे राज्यों के लोग भी जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीद सकेंगे।
6. पहले जम्मू-कश्मीर की कोई महिला अगर भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जाती थी। इसके विपरीत अगर वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाती थी लेकिन अब अब चूंकि 370 को हटा दिया गया तो दोहरी नागरिकता भी अपने आप खत्म हो गई है। इस हिसाब से जम्मू-कश्मीर की महिला किसी दूसरे राज्य के व्यक्ति से विवाह करती है तो भी वो सिर्फ भारतीय ही कहलाएगी।
7. पहले धारा 370 की वजह से कश्मीर में रहने वाले पाकिस्तानियों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती थी लेकिन अब धारा 370 हटाने के बाद कश्मीर के लोग सिर्फ भारतीय नागरिक हैं। अगर कोई पाकिस्तानी भारतीय नागरिकता लेना चाहता है तो उसे पूरी प्रक्रिया से गुजरना होगा।
8. पहले भारत के सुप्रीम कोर्ट के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते थे। अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में भी भारत के सर्वोच्च अदालत के आदेश मान्य होंगे।