स्थापना दिवस पर 90 साल बाद RSS स्वयंसेवकों ने बदला चोला
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : विजयादशमी की तिथि और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बदल दी अपनी दशकों पुरानी पहचान। जी हां! आज यानी दशहरा के शुभ दिन पर संघ के स्वयंसेवी खाकी रंग के हाफ पैंट (निक्कर) में नहीं बल्कि ब्राउन कलर की पतलून में पथ संचलन करते दिखे। संघ मुख्यालय नागपुर में आयोजित समारोह में सरसंघचालक मोहन भागवत, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी नए गणवेष में दिखे।
1925 में स्थापना काल से ही आरएसएस स्वयंसेवकों की पहचान खाकी हाफ पैंट पहनने वालों के रूप में की जाती रही है। लेकिन 90 साल बाद अब आरएसएस का गणवेष बदल गया है। हालांकि इसका फैसला पिछले साल ही ले लिया गया था। तय हुआ था कि भारतीय नवसंवत्सर पर संघ का गणवेष बदल जाएगा। लेकिन तब देशभर के स्वयंसेवकों के लिए नया ड्रेस (ब्राउन फुलपैंट) उपलब्ध नहीं था। सो इसे टाल दिया गया।
दशहरा पर एक साथ देश भर के संघ स्वयंसेवकों ने खाकी हाफ पैंट को अलविदा कर ब्राउन फुटपैंट में पथसंचलन किया। आज का दिन आरएसएस का स्थापना दिवस भी है। अब संघ स्वयंसेवक भी आधुनिक हो गए हैं। फुलपैंट के साथ ही मोजों का रंग भी भूरा हो गया है। सफेद रंग की कमीज होगी और टोपी पहले की तरह काले रंग की। आरएसएस ने भारत के विभिन्न हिस्सों में अब तक करीब 8 लाख पतलूनें बांटी हैं जिसमें से 6 लाख सिली हुई और 2 लाख पैंट के कपड़े दिए गए हैं।
मालूम हो कि 1925 में स्थापना के बाद से ही ढीला खाकी हॉफ पैंट आरएसएस की पहचान बना हुआ था। हालांकि ड्रेस में छोटे-मोटे बदलाव होते रहे, लेकिन खाकी हॉफ पैंट नहीं बदला गया। साल 1925 के सितंबर में स्थापना के समय स्वयंसेवक खाकी हॉफ पैंट, शर्ट और टोपी पहनते थे। 1930 में खाकी टोपी के स्थान पर काली टोपी शामिल हो गई। 1940 में खाकी शर्ट के स्थान पर सफेद शर्ट को स्वीकृति मिली। 1958 में पैरो में ऊंचे बूट या विकल्प में रेक्जीन के काले जूतों को शामिल किया गया। 1973 में अपेक्षाकृत हल्के जूते का इस्तेमाल किया गया। 2011 में चमडे़ के बजाए कैनवास बेल्ट का इस्तेमाल शुरू हुआ और 2015 में भूरे रंग की पतलून को स्वीकृति मिली।
संघ के राष्ट्रीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य की मानें तो संघ के गणवेष (ड्रेस कोड) में बदलाव लंबे विचार विमर्श के बाद किया गया। संघ से जुड़े सूत्रों की मानें तो गणवेष परिवर्तन में फैशन डिजाइनर की भी मदद ली गई। वह भी और कोई नहीं 2015-16 का अंतर्राष्ट्रीय वुलमार्क पुरस्कार जीतने वाले फैशन डिजाइनर सुकेत धीर की। सूत्र बताते हैं कि सुकेत ने आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य से मुलाकात की थी। इस दौरान रंग और डिजाइन को लेकर चर्चा हुई थी। दरअसल धीर के पिता संघ से कई सालों तक जुड़े रहे इसलिए स्वाभाविक रूप से संगठन के सबसे महत्वपूर्ण बदलाव में उनसे योगदान मांगा गया।
आरएसएस को दो विकल्प दिए गए थे- खाकी और भूरा रंग। भूरा रंग गर्मी और सर्दी दोनों ही मौसमों के लिए मुफीद होता है। ये कपड़े किसी भी दुकान पर आसानी से मिल भी सकते हैं। बहुत ज्यादा गंदा होने पर भी ये साफ ही दिखते हैं। पुराना होने के बाद भी भूरा रंग फीका नहीं पड़ता। लिहाजा भूरा रंग चुना गया।
आरएसएस की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा के नागौर में हुए तीन दिवसीय सालाना सम्मेलन में पिछले साल परिधान में बदलाव का फैसला किया गया था। चूंकि कई बुजुर्ग सदस्यों को निक्कर पहनने में परेशानी होती थी। ठंड के दिनों में भी खाकी निक्कर पहनकर बाहर जाना कठिन होता था। अब नए परिधान में मुख्य धारा से जुड़ना अधिक सहज होगा। इससे युवाओं में भी आकर्षण बढ़ेगा साथ ही संगठन की विचारधारा भी प्रभावित नहीं होगी।