'सेनिटरी नैपकिन हमारी जरूरत है सर, शौक नहीं '
किरण राय
1 जुलाई से सरकार ने वस्तु एवम सेवा कर कानून लागू कर दिया है। कुछ उत्पादों पर टैक्स कम हुआ है, कुछ NIL श्रेणी में हैं तो कुछ पर टैक्स सोच से परे है। इसी सोच से परे और बढ़े हुए टैक्स की जद में आती है सेनिटरी नैपकिन। आज की तारिख में कई महिलायें, कई बच्चियां इसे प्रयोग में लाती हैं। आधी आबादी से ताल्लुक रखती हूं सो कह सकती हूं कि पुराने या फिर दादी- नानी के जमाने के मुकाबले पर्सनल हाइजिन के लिए काफी अहम हैं। इन्हें हम लक्जरी के तौर पर इस्तेमाल नहीं करते बल्कि ये तो हमारी जरूरत हैं। ऐसे कई सरकारी जागरूकता अभियान चलाए जाते रहें हैं जो महिला स्वच्छता के मद्देनजर अहम हैं। मोदी जी से सिर्फ ये पूछना है कि जब कॉन्डम, गर्भनिरोधक, कुमकुम, बिंदी, सिंदूर, आलता जैसे उत्पादों को NIL श्रेणी में रख सकते हैं तो सेनिटरी नैपकिन क्यों नहीं? क्या महिला स्वास्थ्य से जुड़ी इस जरूरी चीज पर 12 फीसदी कर जरूरी था?
गौरतलब है कि गुड्स एंड सर्विस टैक्स को 20 से अधिक करों अप्रत्यक्ष करों के बदले लगाया जा रहा है। हाल ही में जीएसटी काउंसिल ने कई वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी टैक्स की दरें तय कर दी हैं। 18 मई 2017 को हुई बैठक के बाद जारी की गई रेट लिस्ट में सभी वस्तुओं (सेवाओं नहीं) को लेकर स्पष्ट रूप से टैक्स की दर बताई गई है। हाल ही में संपन्नी हुई बैठक के बाद जारी किए गए इस मसौदे में NIL,5 फीसदी, 12 फीसदी, 28 फीसदी के स्लैब के तहत कॉन्डम, कॉन्ट्रासेप्टिव (निरोध और गर्भनिरोधक) को जीएसटी रेट स्लैब में NIL कैटिगरी में रखा गया है।
सरकार ने निसंदेह स्वास्थ्य और जनसंख्या जैसे मसलों को ध्यान में रखते हुए कंडोम जैसे गर्भनिरोधक उत्पादों तक अधिक से अधिक लोगों की पहुंच बनाने के लिए इन पर टैक्स नहीं लगाने का फैसला लिया गया होगा। कुमकुम, बिन्दी, सिंदूर और आलता भी NIL कैटिगरी में है। यहां तक की प्लास्टिक की चूड़ियां भी इसी के अंतर्गत आती हैं। और तो और भगवान के प्रति आस्था की परकाष्ठा दिखाने के लिए ही कई पूजा सामग्रियों को भी NIL टैक्स स्लैब में रखा है। हैरानी है कि इस मुद्दे को लेकर खुद भारतीय जनता पार्टी की तेजतर्रार विरांगनायें चुप बैठी हैं। भरी संसद में गला काट कर परोसने में यकीन रखने वाली केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, देश क्या विदेशों में रह रही महिलाओं के दुख को समझने वाली विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और गंगा को स्वच्छ बनाने की मुहिम से जुड़ी फायर ब्राण्ड उमा भारती- ये सब खामोश हैं।
क्योंकि सरकार भी जानती है कि ये महज upper class का शगल नहीं है बल्कि करोड़ों महिलाओं की जरूरत है। इस पर टैक्स लगाकर करोड़ों का मुनाफा कमाने की इस कोशिश को भला क्या नाम दें? काश PM साहब आप समझ पाते, आपके कारिंदे आपको समझा पाते कि ट्रिपल तलाक की तरह स्वच्छता भी महिलाओं का अधिकार है। आप समझ पाते कि बेटी तभी बढ़ पायेगी, स्कूलों में पढ़ पायेगी जब वो पसर्नल हाइजेन का सबक समझ जाएगी। काश आप केरल सरकार की उस मुहिम की तरफ गौर करते जिसमें 30 करोड़ तक का खर्चा सिर्फ स्कूल जाती बच्चियों के स्वच्छता के अधिकार को ध्यान में रखकर किया गया है।
दरअसल, केरल में हाल ही में सरकार की ओर से हर स्कूल में सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन लगाना अनिवार्य कर दिया गया है जिसके जरिए पैड दिए जाएंगे। यह नियम हायर सेकेंडरी स्कूलों में लागू होगा। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने बकायदा फेसबुक पोस्ट के जरिए शी पैड पर खुलकर बात की। उन्होंने बताया कि मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता प्रत्येक महिला का अधिकार है। सरकार शी पैड (she pad) के तहत साफ सुथरे सैनिटरी पैड स्कूल की लड़कियों को देगी। साथ ही नैपकिन डेस्ट्रॉयर (जिससे इस्तेमाल किए गए नैपकिन को नष्ट किया जा सकता हो) भी देगी। पांच सालों तक इस स्कीम को चलाए जाने की कीमत 30 करोड़ रुपये होगी।
यही वजह है कि सोशल मीडिया पर सेनिटरी नैपकिन को टैक्स फ्री करने के मुहिमों की शुरुआत हो चुकी है। कहीं Sorry girl iam expensive, तो कहीं लहू का लगान तक चल चुका है। कई बड़ी सिलेब्रिटिज भी इसमें शामिल हैं। कर्नाटक की कुछ महिलाओं ने भी मिलके एक ऐसी ही मुहिम चलाई है। जो इन दिनों ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सअप पर छाया हुआ है। ये है # don't tax my periods.इन महिलाओं ने मोदी जी को इस मसले पर शिक्षित करने का फैसला लिया है। बड़ी बेबाकी से अपनी बात कह रहीं हैं। इन्होंने कहा है कि सेक्स पसंद के मुताबिक हो सकता है, लेकिन मासिक धर्म नहीं। सवाल किया है- जब कंडोम टैक्स फ्री हो सकता है तो सेनिटरी पैड्स क्यों नहीं? कुछ हलके अंदाज में भी बात कही गई है। लिखा है कि ये GST इसलिए क्योंकि परिषद में सभी पुरुष थे और पुरुषों को मासिक धर्म नहीं आता।
वैसे सरकार हमेशा कि तरह अपने तर्क के साथ सामने आई है। कह रही है कि पहले के मुकाबले अब सेनिटरी नैपकिन पर टैक्स कम है। सेनेटरी नैपकिन पर जीएसटी के पहले 6 फीसदी एक्साइज ड्यूटी और 5 फीसदी वैट लगता था। इस तरह जीएसटी के पहले सेनेटरी नैपकिन पर करीब 13.68 फीसदी टैक्स लगता था जबकि सेनेटरी नैपकिन पर 12 फीसदी जीएसटी लगाई गई है। एक तरह से नए टैक्स व्यवस्था में टैक्स घटा है। लेकिन फिर भी सवाल तो उठता है कि जब बिंदी, चुड़ी, आलता, कॉन्ट्रासेपटिव पिल्स इस दायरे से बाहर कर दिए गए तो ये क्यों नहीं? कहीं ना कहीं ये सरकार की उस कुंद मानसिकता को दिखाती है जिसकी नींव पुरुषवादी और पृतसत्तामक सोच पर पड़ी है। महिलायें सुंदर दिखें, सजी संवरी रहें तो अच्छा लेकिन जब अपने स्वच्छता के अधिकार की बात करें तो बुरा! ये तो उसी सदियों पुरानी व्यवस्था की तरफ धकेलने की साजिश दिखती है जहां अपने दायरे से निकल कर किसी को मासिक धर्म के बारे में बताना उच्छृखंलता मानी जाती थी।