डॉ. राधाकृष्णन के गुरु मंत्र जिसने सबको किया लाजवाब
किरण राय
देश के एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति जो विशुद्ध शिक्षक थे। राजनीति से सीधा वास्ता कभी नहीं रहा... लेकिन जब भी शैक्षिक व्यवस्था में सुधार को लेकर सवाल उठे तो अपने ज्ञान से सबको चित्त कर दिया। ऐसे शख्स जिन्हें जितना ईस्ट चाहता था उतना ही वेस्ट भी प्यार करता था। ऐसे महान दार्शनिक, शिक्षक, विचारक, वक्ता का नाम है डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन। जिन्हें पिताजी तो मंदिर का पुजारी बनाना चाहते थे लेकिन इनके टैलेंट के आगे नतमस्तक हुए और अंग्रेजी स्कूल में भर्ती भी कराया। गरीब ब्राह्मण परिवार के सुपुत्र राधाकृष्णन ने अपने ज्ञान और योग्यता के सहारे जो हासिल किया उसे हमेशा संजोए रखा। शिक्षा को व्यवहार में कैसे लायें इसकी मिसाल दर मिसाल पेश करते चले गए।
हमेशा एक शिक्षक की तरह जहां रहें वहां ज्ञान पुंज सरीखे प्रकाश फैलाते रहे। जिससे मिले वो इनका कायल हुआ और जिन्दगी से जुड़ा अदूभुत सबक लेकर ही गया। बहुत कहानियां, बहुत वाकये हैं। इनमें से कुछ आपके समक्ष:
नेहरू बोले इन्होंने माहौल को पारिवारिक बना दियाः डॉ राधाकृष्णन दो बार देश के उपराष्ट्रपति रहे। उच्च सदन के स्पीकर भी। उन्होंने हमेशा संसद की गरिमा को बनाए रखा। जब भी सदन में किसी मुद्दे पर बहस अनियंत्रित होती तो वो सांसदों को भगवद् गीता या फिर बाइबल की सीख याद दिलाते। संस्कृत पर भी गजब का कमांड था। यही वजह रही कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उनके कायल थे। उन्होंने कहा- इन्होंने संसद को कुछ इस तरह चलाया है कि लगता है जैसे हम किसी पारिवारिक समारोह में आये हैं।
नस्लवाद को करारा जवाब: लंदन में एक बड़े भोज का आयोजन किया गया। गणमान्य लोग आए। उसी दौरान एक ब्रिटिश नागरिक ने बड़ी तीखी टिप्पणी की। उसने कहा सभी भारतीय ब्लैक हैं। डॉ राधाकृष्णन ने बड़ी सहजता और बुद्धिमानी से गजब का सबक सीखा डाला। बोले- भगवान ने एक ब्रेड जरूरत से कुछ ज्यादा पका दिया, तो वो तथाकथित निग्रो हो गया। फिर भगवान का अगला एक्सपेरिमेंट किया, इस बार वो अधपका रह गया सो वो यूरोपीय हो गया। अब भगवान ने आखिरी एक्सपेरिमेंट किया। उन्होंने एक दम सही ब्रेड पकाया और वो सटीक ब्रेड- भारतीय रहा।
माओ को भी किया शांत: सितंबर 1957 में बतौर उप राष्ट्रपति के तौर पर टीम सप्ताह की विदेशी यात्रा पर थे। इसमें चीन यात्रा शामिल थी। चीन में यह माओ का दौर हुआ करता था।माओ के बारे में मशहूर था कि उनका दिन रात आठ बजे से शुरू होता था... वो देर राज तक काम करते और सुबह 5 बजे सोने जाते थे। जब राधाकृष्णन जब माओ से मिलने उनके आवास चुंग नान हाई पहुंचे तो माओ उनकी अगवानी के लिए खुद आए। जैसे ही दोनों ने हाथ मिलाए, राधाकृष्णन ने उनके गाल थपथपा दिए। इससे पहले कि माओ कुछ कह पाते राधाकृष्णन ने जो कहा उससे वो हैरान हुए और मुस्कुरा भर दिए। राधाकृष्णन बोले- मिस्टर प्रीमियर परेशान मत होइए, मैंने ऐसा स्टालिन और पोप साथ भी किया है।
स्टालिन को गुरु मंत्र: 1949 में शीत युद्ध का आगाज हो चुका था। दुनिया के हर देश दो में एक खेमे को चुनने के लिए बाध्य था। ऐसे में सोवियत रूस जैसे देश में पंडित नेहरू को एक जिम्मेदार आदमी की तलाश थी। आखिर में यह काम दिया गया डॉ. राधाकृष्णन को। उन्हें सोवियत यूनियन में भारतीय राजदूत बनाया गया। नेहरू के इस फैसले पर कई लोग नाराज भी हुए। आखिर एक कम्युनिस्ट देश में एक हिंदू दर्शनशास्त्री को भेजे जाने का औचित्य क्या है?
खैर, राधकृष्ण की स्टालिन से मुलाकात हुई। इससे पहले वो किसी भी भारतीय राजदूत से नहीं मिले थे। स्टालिन को पता था कि दार्शनिक डिप्लोमेट जल्दी सो जाता है, इसलिए उन्होंने मीटिंग रात में 9 बजे रखी। (के. सच्चिदानंद की किताब “राधाकृष्णन: लाइफ एंड आईडिया से ब्योरा)
राधाकृष्णन क्रेमलिन में दाखिल हुए और भूल-भुलैय्या जैसे रास्तों से गुजरते हुए स्टालिन के दफ्तर में पहुंचे। इसके बाद दोनों के बीच औपचारिकता धीरे-धीरे पिघल गई। कुछ मिनट के लिए तय हुई यह मुलाक़ात 3 घंटे चली। बात चीत के दौरान राधाकृष्णन ने सम्राट अशोक का उदाहरण बोले- हमारे यहां एक सम्राट हुआ करता था। उसने कलिंग पर हमला बोला और जीत हासिल की। इस युद्ध के बाद उसे समझ में आया कि जंग का कोई मकसद नहीं और इसके बाद वो संन्यासी बन गया। आपने भी ताकत के जरिए सत्ता हासिल की है। कौन जाने आपके साथ भी ऐसा ही कुछ हो। स्टालिन अवाक था। उसने कहां- जी प्रोफेसर करिश्मा होता है। हो सकता है। इस मुलाकात में स्टालिन राधाकृष्णन को ‘प्रोफेसर’ और राधाकृष्णन स्टालिन को ‘मार्शल’ कह कर संबोधित करते रहे।
इसके बाद जब राधाकृष्णन की देश वापसी थी तो स्टालिन रूआंसे हो गए। उस समय वो बिमार थे। तब उन्होंने स्टालिन की पीठ थपथपाई उसे समझाया। स्टालिन के लिए ये भी अद्भुत था। उससे रहा नहीं गया। उसने कहा- आप पहले शख्स हैं जिसने मुझे इंसान समझा एक हैवान नहीं। आपके जाने का मुझे दुख है।ऊपर वाले से प्रार्थना है कि आप दीर्घायु हों। इस वाकये के छह महीने बाद स्टालिन की मौत हो गई।