राफेल सौदे पर आखिर कौन बोल रहा है झूठ?
ओमप्रकाश तिवारी
देश के वित्त मंत्री अरुण जेटली और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित कई भाजपा नेताओं ने राफेल सौदे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद कहा कि झूठ की उम्र लंबी नहीं होती है। राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट से सरकार को क्लीन चिट मिली है। राहुल गांधी देश से माफी मांगें, क्योंकि उन्होंने देश को गुमराह किया है।
सचमुच झूठ की उम्र छोटी ही निकली। दोपहर से पहले शीर्ष अदालत ने क्लीनचिट दी, दोपहर बाद शाह और जेटली ने बयान दिया और शाम होते-होते राहुल गांधी ने मीडिया से मुखातिब होकर सरकार के झूठ की पोल खोल दी। उन्होंने साफ कहा कि कैग की रिपोर्ट पीएसी के पास नहीं आयी है। पीएसी के अध्यक्ष चूंकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे हैं। इसलिए सरकार के झूठ की उम्र और कम हो गई। उन्होंने भी कहा कि उन्हें कैग की रिपोर्ट नहीं मिली। राहुल ने कहा कि कैग की रिपोर्ट संसद में भी नहीं आयी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि कैग की रिपोर्ट को पीएसी ने देखा और जांचा है। राफेल खरीद में कोई गड़बड़ी नहीं है। इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला भी सुनाया दिया।
सचमुच यह ऐसा झूठ था जो बंद लिफाफे में माननीय अदालत को दिया गया था। जो अदालत के फैसले के साथ ही बाहर आ गया।
यहां अब पहला सवाल यह उठता है कि यह झूठ क्यों रचा गया? जाहिर है अदालत का फैसला प्रभावित करने के लिए। मनोविज्ञान कहता है कि झूठ सच को छिपाने के लिए बोला जाता है तो सरकार कौन सा सच छिपाना चाहती है? यही न कि राफेल में घोटाला हुआ है। यह सच कहीं सामने न आ जाए। सरकार के झूठ ने मनोवैज्ञानिक रूप से यह साबित किया कि घोटाला हुआ है जिसकी पर्देदारी की जा रही है। दूसरा सवाल यह है कि जब अदालत के फैसले का आधार ही झूठा तथ्य है तो उसके फैसले का मतलब क्या रह जाता है? यह सवाल फिलहाल अनुत्तरित है।
बहरहाल, अपने झूठ को छिपाने के लिए अब सरकार ने टाइपिंग की गलती का सहारा लिया है। फैसले में सुधार के लिए वह कोर्ट पहुंची है। संशोधन याचिका देकर सरकार ने कहा है कि सीलबंद लिफाफे में दायर जवाब के एक बिंदु को समझने में कोर्ट से गलती हुई है। हमने सिर्फ प्रक्रिया की जानकारी दी थी कि कैग रिपोर्ट की जांच पीएसी करती है। उसके बाद रिपोर्ट के संपादित अंश संसद और पब्लिक डिमोन में रखे जाते हैं। लेकिन समझने में गलती के चलते कोर्ट ने फैसले के 25वें पैराग्राफ में लिख दिया कि पीएसी कैग की रिपोर्ट देख चुकी है। उसके संपादित अंश संसद और पब्लिक डिमोन में रखे गए हैं। सरकार का कहना है कि इस पैराग्राफ में दो वाक्यों की गलती के कारण पब्लिक डिमो न में विवाद खड़ा हो गया है। न्याय के हित में इन वाक्यों में तत्काल सुधार की जरूरत है।
अब देखिए! यहां सरकार यह नहीं मान रही है कि उसने गलती की है। बल्कि वह अदालत को बता रही है कि उससे समझने में गलती हुई है। वह केवल दो वाक्यों को सुधार कर दे। अब देखना होगा कि अदालत इसे किस रूप में लेती है। दो वाक्यों में सुधार करती है या अपने पूरे फैसले में सुधार करती है। वैसे कई जानकर कहते और मानते हैं कि अब अदालत के पहले के फैसले का कोई औचित्य नहीं रह गया है। फैसला गलत तथ्यों पर आधारित है। अब आप समझ सकते हैं कि झूठ किसने बोला और माफी किसे मांगनी चाहिए। यहां यह जानना जरूरी है कि राफेल मामले में कांग्रेस पार्टी सुप्रीम कोर्ट नहीं गयी है। उसका साफ कहना है कि इस मामले के लिए सुप्रीम कोर्ट सही जगह नहीं है। वह जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) जांच की मांग कर रही है जो कि सरकार नहीं मान रही है। इसलिए कांग्रेस के लिए यह मुद्दा था, है और आगे भी रहेगा।
देश यह जानना चाहता है कि इतना जरूरी लड़ाकू विमान 126 की जगह सिर्फ 36 ही क्यों खरीदा जा रहा है। एक अनुभवी सरकारी कंपनी एचएएल सौदे से बाहर कैसे हो गई? दस दिन पहले बनी एक नई नवेली निजी कंपनी कैसे इसमें प्रवेश कर गई? कीमत इतनी महंगी कैसे हो गई? क्या इस मामले में टेंडर प्रक्रिया को अपनाया गया? सबसे कम बोली किस कंपनी ने लगाई थी? जब यह मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा है तो उसमें एक निजी कंपनी पर कैसे विश्वास किया जा सकता है? यह भी कि राफेल को बेचने वाली फ्रांस की कंपनी निजी है। उसने और देआहों को भी यह विमान बेचा होगा? ऐसे में विमान की तकनीक और कीमत दोनों ही गोपनीय कैसे रह सकती है? सौदे के संबंध में फ्रांस की मीडिया में भी सवाल उठाए गए हैं। क्या वह गलत हैं? फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति के बयान को कैसे और किस आधार पर खारिज किया जा सकता है? जब सरकार अगस्ता वेस्टलैंड जैसे खारिज हो चुके सौदे की जांच करा सकती है तो रॉफेल युद्धक विमान की क्यों नहीं?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और आलोचक हैं।)