क्या दुनिया से लोकतंत्र वाकई खत्म हो रहा है?
बब्बन सिंह
संवैधानिक तरीके से लोकतंत्र की रक्षा नहीं हो सकती तो इसकी रक्षा कैसे हो सकती है? यह सवाल जनवरी 2018 में प्रकाशित एक पुस्तक 'हाउ डेमोक्रेसी डाई' अर्थात 'लोकतंत्र कैसे खत्म होता है' में लेखक स्टीवन लेवित्स्की और डेनियल ज़िब्लाट्ट ने एक जगह उठाया है। पुस्तक में ही इसका जवाब देते हुए वे लिखते हैं, लोकतंत्र की रक्षा दो ही तरीके से हो सकती है। पहला- एक-दूसरे के साथ सहिष्णुता का व्यवहार हो यानि तमाम विरोधाभासों और वैचारिक मतभेदों के बावजूद एक-दूसरे की विचारधारा को बर्दाश्त करना सीखना होगा अर्थात विरोधी विचारधारा के लोगों को राष्ट्र विरोधी या असंवैधानिक करार देने के बदले उन्हें मन से स्वीकार करना होगा। दूसरा- सत्ता व प्राधिकार में बैठकर भी सहनशीलता को बनाए रखने की कला सीखनी होगी यानि अपने अधिकारों व विशेषाधिकारों को संयम से इस्तेमाल करना सीखना होगा, लिखित संविधान की जगह उसकी मूल भावना के मुताबिक चलने का प्रयास करना होगा।
Also Read : हाउ डेमोक्रेसी डाई पर आधारित विस्तृत लेख 'न्यू रिपब्लिक' के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है। इसे आप यहां Click कर पढ़ सकते हैं।
हाल के वर्षों में दुनिया भर में दक्षिणपंथी कट्टरपंथी जमातों के सत्ता में आने से चिंतित लेखकों ने अपनी ताजा किताब में अमेरिका व विश्व के अन्य भागों में लोकतंत्र के प्रति बढ़ते आक्रोश के कारणों और उससे उभरने के तरीकों पर चर्चा की है। वे मानते हैं कि लोकतांत्रिक तरीके से सरकार में आ रही ये दक्षिणपंथी शक्तियां पहले व दूसरे विश्व युद्ध के दौर में उभरी विभाजनकारी शक्तियों से ज्यादा होशियार और प्रभावकारी हैं और इनसे बहुत सावधान रहने की जरूरत हैं अन्यथा दुनिया से लोकतंत्र का लोप हो सकता है।
किताब के एक भाग में वे लिखते है, डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में आने से बहुत पहले से अमेरिका में असहिष्णुता और घृणा की राजनीति की शुरुआत हो गई थी। 1979 में न्यूट गिनग्रिच जब पहली बार निर्वाचित होकर कांग्रेस में भाग लेने वाशिंगटन रहने आए तो उन्होंने रिपब्लिक पार्टी की राजनीति में घृणा, असहिष्णुता व बड़बोले वादों के तत्वों को शामिल किया। छोटे से पर एक नियंत्रित समूह के बल पर उन्होंने नई मीडिया टूल 'सी-स्पैन' के जरिए अमेरिकी आम जनता में अपनी पहुंच बनाई और अपनी जहरबुझी जुबान से 'जुमले पर आधारित राजनीति' की शुरुआत की। इस टूल के जरिये वे डेमोक्रेट सदस्यों को मानसिक रूप से बीमार और भ्रष्ट साबित करने में काफी हद तक सफल हुए। इटली के भ्रष्ट तानाशाह मुसोलिनी से तुलना करते हुए वे डेमोक्रैट सदस्यों को अमेरिकी राष्ट्र बर्बाद करने वाले की उपमा से नवाजते थे।
2,000 से ज्यादा ऑडियो टेप के सहारे गिनग्रिच ने अपनी घृणा और असहिष्णुता की राजनीति को पूरे देश में फैलाया। इसके लिए उन्होंने 'गोपाक' नाम के राजनीतिक प्रचार संगठन का निर्माण किया जिसकी सहायता से वे अपनी घृणा और असहिष्णुता की राजनीति के तत्वों को अन्य दलों में घुसपैठ कराने में सफल हुए। उनके राजनीतिक सचिव टोनी ब्लान्क्ले की मानें तो वे ईरान में हुई रिपब्लिक रेवोल्यूशन के लिए इस्तेमाल किए गए अयातुल्ला खोमिनी के प्रचार के तरीके से अमेरिका में झूठ और घृणा पर आधारित राजनीतिक व्यवस्था लागू करना चाहते थे।
हालांकि उस जमाने में बहुत कम लोगों ने गिनग्रिच की उस नीति को ठीक से समझा पर वे उस समय व्यवस्था के प्रति लोगों में उभर रहे विद्रोह को भुनाने में कोई कोताही नहीं की। वे राजनीतिक लडाई को युद्ध के स्टाइल में करने में विश्वास करते थे और इसके लिए अमेरिकी समाज में घृणा के तत्वों को बोने से भी उन्हें गुरेज नहीं था। बहरहाल, उस समय वे इस काम में पूरी तरह सफल नहीं हो सके। पर उन्होंने उस समय की संसद में ध्रुवीकृत राजनीति का बीज बोने में कामयाब रहे। 1994 की भारी जीत के बाद रिपब्लिक सदस्यों ने कांग्रेस में जीत के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाए। मसलन, नवम्बर 1995 में बजट पर वीटो लगाकर पहले 5 दिन और बाद में 21 दिनों तक सरकार के कामकाज को रोकने में कामयाब हुए थे। उस समय शुरू विभाजनकारी राजनीति के तत्व आज फिर से अमेरिकी कांग्रेस में उसी रूप में दोहराया जा रहा है।
लेकिन इस तरह की राजनीति की चरम स्थिति 1998 में तब बनी जब अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए गिनग्रिच समर्थक रिपब्लिक सदस्यों ने बगैर किसी तथ्यात्मक साक्ष्य के राष्ट्रपति क्लिंटन के खिलाफ महाभियोग जैसे अस्त्र का भी इस्तेमाल किया। व्हाइटवॉटर छानबीन से शुरू हुआ ये महाभियोग अभियान राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के अवैध संबंधों पर जा टिका। उल्लेखनीय है कि अमेरिकी राजनैतिक इतिहास में किसी राष्ट्रपति के खिलाफ दूसरी बार पेश ये महाभियोग घृणा और असहिष्णु राजनीति की चरम पराकाष्ठ थी। हालांकि तब ये सफल नहीं हुआ और राष्ट्रपति अपनी गद्दी बचाए रखने में कामयाब रहे थे।