चीन में अब शी जिनपिंग युग का आगाज
प्रवीण कुमार
चीन अब जिनपिंग के कार्यकाल से जिनपिंग युग में प्रवेश कर गया है क्योंकि चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने 64 वर्षीय राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विचारधारा को संविधान में शामिल करने का फैसला किया है। संविधान में शी जिनगपिंग को चीन के पहले कम्युनिस्ट नेता और संस्थापक माओत्से तुंग के बराबर का दर्जा दिया गया है।
24 अक्टूबर 2017 को राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब चीन की राजधानी बीजिंग के ग्रेट हॉल ऑफ पीपुल में अपने नए पोलित ब्यूरो के साथ सामने आए तो पूरे साल भर चली एक जटिल खींचतान पर विराम तो लगा ही, वह चीन के सबसे सशक्त नेता के तौर पर भी उभरे। नवंबर, 2012 में जब जिनपिंग पहली बार पार्टी महासचिव चुने गए थे तो उनकी टीम के मनोनीत सदस्य उनकी पसंद के नहीं, बल्कि पार्टी के अनेक गुटों की आम सहमति से नामित हुए थे। सहमति बनाने की प्रक्रिया से ही वह इस पद तक पहुंचे थे। पिछले पांच वर्षों में जिनपिंग का इतना शक्तिशाली नेता बन जाना उतना ही आश्चर्यजनक लगता है जितना पिछले तीन दशकों में चीन का विश्व की दूसरी सबसे बड़ी और तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था हो जाना।
आज जिनपिंग विश्व के सबसे प्रभावशाली नेता माने जा रहे हैं। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 19वें पार्टी सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में कहा भी कि मैंने केवल मक्खी या लोमड़ी जैसे अफसरों के ही नहीं, बल्कि बड़े-बड़े बघियारों के खिलाफ भी जांच शुरू कराई है। इनमें चीन के सबसे शक्तिशाली केंद्रीय सेना आयोग और पार्टी के पोलित ब्यूरो के सदस्य भी शामिल हैं। सम्मेलन से ठीक एक सप्ताह पोलित ब्यूरो के सदस्य सून चंगसाए को राष्ट्रपति शी के खिलाफ साजिश करने की वजह से अचानक सभी पदों से हटा दिया गया। इससे पहले यही माना जा रहा था कि 2022 में जिनपिंग के बाद वही चीन की कमान संभालेंगे। लेकिन अब यह साफ-साफ दिख रहा है कि अब चीन के अधिकांश नेता राष्ट्रपति जिनपिंग के चुने हुए हैं और वे न केवल उनकी योजनाओं को आगे बढ़ाएंगे, बल्कि भविष्य में उनकी विरासत को भी संभालेंगे।
जिनपिंग का लक्ष्य चीन की जीडीपी को 2020 तक बढ़ाकर दोगुना करने का है। नए नेतृत्व के साथ से इस महत्वाकांक्षी मुकाम को हासिल करने की संभावनाएं और बलवती हो जाएंगी। नए नेतृत्व को देखकर ऐसी अटकलें भी लगाई जा रही हैं कि जिनपिंग परंपराओं को धता बताते हुए अपने लिए तीसरे कार्यकाल की कोशिशें भी कर सकते हैं। चीन के सामूहिक नेतृत्व के सिद्धांत को वह पहले ही नकार चुके हैं। पिछले पांच वर्षों में चीनी प्रांतों में 47 बड़े पदों पर उन्होंने अपनी पसंद के नेताओं को मनोनीत कराया है। इनमें 27 गवर्नर और 20 प्रांतीय सचिवों के पद थे। हटाए गए नेताओं में 21 को या तो उम्र अधिक हो जाने के कारण या भ्रष्टाचार अथवा अनुशासनहीनता के कारण उनके पदों से चलता किया गया। इन नए प्रांतीय नेताओं में से ही कुछ भविष्य में चीन के राष्ट्रीय नेता बनेंगे। इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जिन्होंने पिछले दशकों में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ काम किया है और उनका विश्वास जीता है। इसलिए न केवल मौजूदा, बल्कि भविष्य में भी चीनी नेतृत्व पर भी उनकी छाप बनी रहेगी।
चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विचारधारा को संविधान में शामिल करने का फ़ैसला किया है। संविधान में शी को चीन के पहले कम्युनिस्ट नेता और संस्थापक माओत्से तुंग के बराबर दर्जा दिया गया है। संविधान में 'शी जिनपिंग थॉट' लिखने के पक्ष में सर्वसम्मति से मतदान किया गया है। बीज़िंग में बंद दरवाज़े के भीतर इस कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस में दो हज़ार से ज़्यादा प्रतिनिधि शामिल हुए। यह चीन की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक बैठक थी जिसमें फैसला लिया गया कि आने वाले पांच सालों में देश की कमान शी जिनपिंग के पास होगी। कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस 18 अक्टूबर को शुरू हुई थी। इसकी शुरुआत में शी जिनपिंग ने तीन घंटे का जो भाषण दिया था उसमें शी ने पहली बार 'नए युग में चीनी ख़ूबियों के साथ समाजवाद' के दर्शन को पहली बार पेश किया। उसी वक़्त इस बात का संकेत मिल गया था कि शी ने पार्टी में अपना असर छोड़ दिया है। बीबीसी चीन की संपादक कैरी ग्रेसी का कहना है कि पार्टी के संविधान में 'शी जिनपिंग थॉट' प्रतिष्ठापित हो जाने का मतलब यह हुआ कि प्रतिद्वंद्वी अब ताक़तवर शी जिनपिंग को बिना कम्युनिस्ट पार्टी के नियमों का हवाला दिए चुनौती नहीं दे सकते हैं।
अब स्कूल के बच्चे, कॉलेज स्टूडेंट, सरकारी कर्मचारी 9 करोड़ कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों के साथ शी जिनपिंग थॉट पढ़ेंगे। चीन में शी जिनपिंग थॉट के साथ ही नए तेवर में चीनी समाजवादी युग शुरू हो गया है। पार्टी ने इस नए युग को आधुनिक चीन का तीसरा चैप्टर क़रार दिया है। पहला चरण चेयरमैन माओ का था जिन्होंने गृह युद्ध में फंसे चीन को निकलने के लिए लोगों को एकजुट किया था। दूसरा चरण देंग ज़ियाओपिंग का रहा जिनके शासनकाल में चीन और एकजुट हुआ। ज़ियाओपिंग ने चीन को अनुशासित और विदेशों में मजबूत बनाया। अब तीसरा युग शी जिनपिंग का शुरू हुआ है। अब शी जिनपिंग का नाम पार्टी संविधान में शामिल किया गया है, जिसके बाद से उन्हें कोई चुनौती नहीं दे पाएगा जब तक कि कम्युनिस्ट पार्टी के नियमों पर कोई आंच न आए।
भारत के लिए बड़ा मौका है शी जिनपिंग युग
शी जिनपिंग ने अपने सिद्धांत में चीन के सामने मौजूद 'मुख्य विरोधाभास' की बात की है। उन्होंने कहा है कि देश के सभी हिस्सों का विकास और देश के भीतर और बाहर नागरिकों के बेहतर जीवन के लिए काम किया जाएगा। 'शी जिनपिंग सिद्धांत' को संविधान में शामिल करने के बाद शी के पास अब रणनीतिक तौर पर दो बड़े काम हैं- पहला, चीन को राजनीति शक्ति के रूप में विकसित करने के अलावा साल 2021 तक इसे उदारवादी संपन्न देश बनाना। इसका मतलब है कि 2010 तक चीन का जो सकल घरेलू उत्पाद था उसे 2021 तक दोगुना करना। सरल शब्दों में कह सकते हैं कि चीन को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाना प्रमुख लक्ष्य होगा। इस लिहाज से शी जिनपिंग का चीन की सत्ता में ताकतवर होना भारत के लिए एक बड़ा मौका है।
जहां तक भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच समझ-बूझ की बात है तो पिछली तीन मुलाकातों में जमीनी स्तर पर हालात तनावपूर्ण होने के बावजूद उन्होंने हर मौके पर संयम और संतुलन का प्रदर्शन किया है। दोनों नेताओं ने हर बार कोशिश की है कि मतभेद विवादों में न बदले और कूटनीतिक उलझनों की गिरह किसी तरह से खोली जाए। इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत और चीन विश्व की उभरती अर्थव्यवस्थाएं और परिवर्तनशील समाज हैं। भले ही भारत-चीन संबंधों में उलझनें बनीं रहें, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे काबू से बाहर या पटरी से उतर जाएंगे। मोदी और जिनपिंग दोनों ही महत्वाकांक्षी, निर्णायक और प्रभावशाली नेता हैं। इसलिए भारत और चीन मिलकर कोई बड़े कदम न भी उठाएं तो भी कम से कम द्विपक्षीय मामलों पर शांति बनाए रखने का पूरा प्रयास करेंगे।
2021 में कम्युनिस्ट पार्टी के सौ साल पूरे हो जाएंगे. इसके बाद दूसरे स्तर पर उन्हें 2035 तक चीन को इसी स्तर पर यानी इस विकास को बनाए रखना है और इसके बाद वो साल 2049 तक एडवान्स्ड सोशलिस्ट देश यानी सैन्य ताकत, अर्थव्यवस्था, संस्कृति में सबसे बड़ी शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। जब दुनिया के सभी देश वैश्वीकरण से दूर हटने की बात कर रहे थे और सरकारी संरक्षण की बात कर रहे थे, तब शी जिनपिंग ने वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम में वैश्वीकरण का समर्थन किया था। हालांकि उनका कहना था कि ये वैश्वीकरण समावेशी होगा और सतत विकास की धारा पर होगा। इसको हासिल करने के लिए शी ने 'वन बेल्ट वन रोड' का प्रस्ताव दिया है जिसके तहत मध्य एशिया, मध्य यूरोप से लेकर अफ्रीका तक के औद्योगीकरण का प्रस्ताव है। इस प्रस्ताव के अनुसार चीन के नेतृत्व में पूरे एशिया का विकास किया जाएगा।
भारत वैसे भी चीन के साथ कई मामलों में सहयोग करता है। चीन भारत में पूंजी निवेश करता है और ये भारत के लिए बहुत अहम है। चीन फिलहाल 11 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था है और अगर भविष्य में ये 2021-23 तक 18-19 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाती है जैसा कि शी चाहते हैं तो वो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी और निवेश के लिहाज़ से ये भारत के लिए महत्वपूर्ण होगा क्योंकि भारत को विकास के लिए निवेश चाहिए और फिलहाल अन्य देश यहां निवेश नहीं कर रहे हैं। आज 12 मिलियन भारतीय नौकरियों की तलाश में हैं और भारत को इस निवेश की दरकार है। चीन पर भारत की निर्भरता से इंकार नहीं किया जा सकता। चीन विश्व का केंद्र बनने जा रहा है और यूरोप खुद जर्मनी को छोड़कर एक ऐतिहासिक पतन की तरफ बढ़ रहा है तो भारत के पास चीन के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।
कई चीनी टेलीकॉम कंपनियों ने भी भारत में निवेश किया है। अलीबाबा, पेटीएम समेत कई और व्यवसाय हैं जहां चीन का पैसा लगा है। इस बिज़नेस लॉबी ने भी डोकलाम विवाद को ख़त्म करने में अपनी भूमिका निभाई है। लेकिन देखा जाए तो भारत की कंपनियां अब तक चीन में निवेश नहीं कर पाई हैं। भारत को निवेश को कम करने की बजाय उसे बढ़ाने पर ध्यान देना होगा और इस दिशा में रिश्ते को परिपक्व करने के लिए दोस्ताना संबंध बढ़ाने होंगे ताकि स्थायित्व बढ़े।
जिनपिंग के साथ ये 6 नेता चलाएंगे चीन को
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग के अलावा 6 अन्य नेताओं पर डाली है। जिनपिंग समेत ये सातों पार्टी की स्थाई समिति के सदस्य रहेंगे जो पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति जैसी संस्थाओं से भी ऊपर है। 64 वर्षीय राष्ट्रपति शी जिनपिंग के अलावा 62 वर्षीय प्रीमियर ली कचियांग ही ऐसे सदस्य हैं जो नई समिति में भी अपनी जगह बनाए रखने में सफल हुए हैं।
शी जिनपिंग : शी जिनपिंग को चीन के सर्वोच्च नेता और साल 2022 तक पार्टी का चेयरमैन बनाया गया है. जिनपिंग को चीन के केंद्रीय सेना आयोग का अध्यक्ष भी बनाया गया है। साल 1953 में बीजिंग में पैदा होने वाले शी जिनपिंग ने चिंग ख्वा यूनिवर्सिटी से केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। इसके बाद 1974 में वे कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने। चीन के ख़्बे, फूजीअन और जजिआंग में काम करने के बाद साल 2007 में जिनपिंग को शंघाई पार्टी अध्यक्ष बनाया गया था। इसके साथ ही उन्हें भ्रष्टाचार से जुड़े मामले से निपटने का काम दिया गया था। उपनाम 'राजकुमार' से चर्चित शी जिनपिंग कम्युनिस्ट पार्टी के एक शीर्ष नेता के बेटे हैं।
ली कचियांग : जिनपिंग के बाद ली कचियांग चीन के दूसरे सबसे ताकतवर नेता के रूप में अपनी जगह कायम रखने में सफल हुए हैं। 62 साल के ली कचियांग साल 2007 से स्थाई समिति के सदस्य रहे हैं और दो बार उप-प्रधानमंत्री का पद संभाल चुके हैं। कचियांग ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल में सीमित भूमिका निभाई जबकि वह चीन के दूसरे सबसे ताकतवर नेता थे। साल 2015 में हुए चीन के स्टॉक मार्केट क्रैश के लिए उनकी निंदा की जाती है। कचियांग ने पेकिंग यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र विषय में डॉक्टरेट की डिग्री ली है. ऐसा कहा जाता है कि कचियांग को पूर्व चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ का समर्थन हासिल है क्योंकि दोनों ही नेता पार्टी के युवा लीग गुट से आते हैं।
ली जनशू : साल 2012 में पोलित ब्यूरो में पहुंचने वाले ली जनशू ने साल 2012 में जिनपिंग के खास प्रतिनिधि के रूप में रूस की यात्रा की थी। जनशू ने रूस और चीन के बीच मजबूत रिश्ते कायम रखने में अहम भूमिका निभाई है।
वांग यांग : वांग यांग के उप प्रधानमंत्री बनने की संभावना है जो वित्तीय और आर्थिक नीतियों को देखेंगे। पद ग्रहण करने तक वह स्टेट काउंसिल के चार उप प्रधानमंत्रियों में से एक के रूप में अपनी भूमिका निभाएंगे। 62 साल के वांग यांग अब तक दो बार पोलित ब्यूरो के सदस्य रह चुके हैं। वांग ने चीनी-अमरीकी रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने में अहम भूमिका निभाई है और वह वार्षिक अमरीकी-चीनी रणनीतिक और आर्थिक डायलॉग का नेतृत्व करते हैं।
वांग हनिंग : वांग को शी जिनपिंग का करीबी और चीन का 'किसिंगर' कहा जाता है। वांग हाल में तीन पूर्व पार्टी नेताओं और केंद्रीय नेतृत्व के सलाहकार की भूमिका निभा चुके हैं। फूदान यूनिवर्सिटी से पढ़ने वाले वांग की चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधाराओं को बनाने में भूमिका रही है।
जाओ ल्जी : 60 साल के जाओ ल्जी कमिटी के सबसे युवा सदस्य हैं और पार्टी की भ्रष्टाचार विरोधी शाखा की ज़िम्मेदारी संभालेंगे। नई ज़िम्मेदारी संभालने तक जाओ पार्टी के ताकतवर संगठन विभाग की जिम्मेदारी संभालेंगे जिनके हाथों में अधिकारियों का प्रमोशन करने का अधिकार होता है।
खान जंग : खान इस समय शंघाई शाखा का नेतृत्व कर रहे हैं और दो बार मेयर की भूमिका निभा चुके हैं। साल 1954 में पैदा होने वाले खान ने अपना पूरा राजनीतिक जीवन शंघाई में बिताया है। वो शी जिनपिंग जैसे नेताओं के लिए लॉन्चिंग पैड की भूमिका निभा चुका है।