दुष्कर्मी को सजा-ए-मौत ही अंतिम समाधान
आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2018 को दी मंजूरी, राष्ट्रपति ने भी लगाई मुहर
किरण राय
दुष्कर्म न सिर्फ दंडनीय अपराध होता है बल्कि समाज एवं पीड़ित के लिए बेहद पीड़ादायक भी होता है। यह किसी राष्ट्र, उसकी व्यवस्था तथा उस व्यवस्था में आस्था रखने वाली जनमानस के लिए लज्जा और गहन व्यथा का भी विषय होता है। हाल में जम्मू कश्मीर के कठुआ में 8 साल की एक बच्ची और गुजरात के सूरत में एक बच्ची की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई। उत्तर प्रदेश के उन्नाव में भी एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया था। इसके बाद से देश भर में बहुत से प्रदर्शनों और आंदोलनों का आयोजन किया गया तथा इस संदर्भ में चिंता प्रकट करते हुए गंभीर कार्रवाई की मांग की गई। जनमानस के रोष को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2018 को मंजूरी प्रदान की गई। इस अध्यादेश को राष्ट्रपति ने भी तुरंत स्वीकृति दे दी। अब इस अध्यादेश को गजट में अधिसूचना जारी कराकर जल्द ही कानून के तौर लागू कर दिया जाएगा। निश्चित रूप से किसी सरकार द्वारा बच्चियों से दुष्कर्म या फिर दुष्कर्म बाद हत्या करने के दोषियों को फांसी की सजा दिया जाना एक कानूनी प्रक्रिया में अंतिम समाधान है।
केंद्रीय कैबिनेट ने 21 अप्रैल को जिस आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2018 को अपनी मंजूरी दी उसके तहत 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म करने के मामलों में दोषी ठहराए गए व्यक्ति के लिए अदालत को मृत्युदंड की सजा की इजाजत दी गई है। अध्यादेश के अनुसार ऐसे मामलों से निपटने के लिए नई त्वरित अदालतें गठित की जाएंगी और सभी पुलिस थानों एवं अस्पतालों को दुष्कर्म के मामलों की जांच के लिए विशेष फॉरेंसिक किट उपलब्ध कराई जाएगी। अध्यादेश का हवाला देते हुए अधिकारियों ने बताया कि इसमें विशेषकर 16 एवं 12 साल से कम उम्र की लड़कियों से दुष्कर्म के मामलों में दोषियों के लिए सख्त सजा की अनुमति है। इस अध्यादेश के तहत, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), साक्ष्य अधिनियम, आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और यौन अपराधों से बाल सुरक्षा (पोक्सो) अधिनियम को अब संशोधित माना जाएगा। अध्यादेश में मामले की त्वरित जांच एवं सुनवाई की भी व्यवस्था है। दुष्कर्म के सभी मामलों में सुनवाई पूरी करने की समय सीमा दो माह होगी। साथ ही 16 साल से कम उम्र की लड़कियों से दुष्कर्म या सामूहिक दुष्कर्म के आरोपी व्यक्ति को अंतरिम जमानत नहीं मिल सकेगी। हालांकि बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने बच्चियों से दुष्कर्म के मामले में मौत की सजा का विरोध किया है।
बाल अधिकारों के लिए लड़ने वाले हक सेंटर की भारती अली का कहना है कि एक ऐसे देश में जहां दुष्कर्म की ज्यादातर घटनाओं को परिवार के सदस्य अंजाम देते हैं, वहां मौत की सजा का प्रावधान करना आरोपियों के बरी होने की सिर्फ गुंजाइश ही बढ़ाएगा। ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं कराए जाएंगे। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक दुष्कर्म की 95 फीसदी घटनाओं को परिवार के सदस्यों ने ही अंजाम दिया है। महिलाओं से दुष्कर्म के मामलों में दोषसिद्धि दर करीब 24 फीसदी है। पॉक्सो कानून के तहत यह 20 फीसदी है। कैलाश सत्यार्थी के चिल्ड्रेंस फाउंडेशन के हालिया अध्ययन के मुताबिक, बाल यौन अपराधों से जुड़े लंबित मामलों का निपटारा करने में अदालतों को दो दशक लग जाएंगे। कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार को मौजूदा कानूनों को मजबूत करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए, पीड़िताओं और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए, मुकदमों की त्वरित सुनवाई करानी चाहिए और जागरूकता पैदा करना चाहिए।
अध्यादेश के प्रावधान
आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2018 के मुताबिक, 12 साल से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने वालों को मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। दुष्कर्म के मामलों में सात वर्ष के सश्रम कारावास की न्यूनतम सज़ा को बढ़ाकर 10 किया गया है। इसे बढ़ाकर आजीवान कारावास में तब्दील किया जा सकता है। 16 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ दुष्कर्म के मामलों में न्यूनतम सज़ा को 10 वर्ष से बढ़ाकर 20 वर्ष कर दिया गया है। इसे बढ़ाकर आजीवन कारावास किया जा सकता है। 16 साल से कम उम्र की लड़की से दुष्कर्म के आरोपित या सामूहिक दुष्कर्म के आरोपितों को अग्रिम ज़मानत नहीं दी जाएगी। इतना ही नहीं इनकी ज़मानत पर निर्णय देने से पूर्व न्यायालय को 15 दिन पहले लोक अभियोजक या पीडिता के प्रतिनिधि को नोटिस भेजना होगा। इसके अतिरिक्त अध्यादेश के अंतर्गत दुष्कर्म के मामले में जल्द से जल्द सुनवाई पूरी करने के संबंध में भी व्यवस्था की गई है। ऐसे मामलों में दो महीने के अंदर ट्रायल को पूरा करना होगा। एक तरफ जहां दुष्कर्म की फारेंसिक जांच के लिए सभी पुलिस स्टेशनों और अस्पतालों को विशेष किट उपलब्ध कराई जाएगी, वहीं दूसरी ओर नए फास्ट ट्रैक कोर्ट भी स्थापित किये जाएंगे। इन मामलों में एक तय समय सीमा में जांच के लिये विशेष कर्मचारियों की भी नियुक्ति की जाएगी। साथ ही पीड़िता की सहायता के लिए चलाए जा रहे वन स्टाप सेंटरों को देश के सभी जिलों में स्थापित किया जाएगा। आपराधिक कानून में संशोधन संबंधी इस अध्यादेश के माध्यम से भारतीय दंड संहिता, साक्ष्य कानून, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और लैंगिक अपराधों से बालकों से संरक्षण कानून (पोक्सो एक्ट) में नए प्रावधान लाए जाएंगे, ताकि ऐसे मामलों में दोष साबित होने पर मौत की सजा सुनाई जा सके।
पोक्सो एक्ट क्या है?
पोक्सो, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act–POCSO) का संक्षिप्त नाम है| संभवतः मानसिक आयु के आधार पर इस अधिनियम का वयस्क पीड़ितों तक विस्तार करने के लिये उनकी मानसिक क्षमता के निर्धारण की आवश्यकता होगी। इसके लिये सांविधिक प्रावधानों और नियमों की भी आवश्यकता होगी, जिन्हें विधायिका अकेले ही लागू करने में सक्षम है। यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम, 2012 अठारह साल से कम आयु के व्यक्तियों, जिनको बालक के रूप में समझा जाता है, के विरूद्ध यौन अपराधों से निपटता है। इस अधिनियम में पहली बार यौन प्रहार एवं यौन हमला को परिभाषित किया है। यदि किसी पुलिस अधिकारी, लोक सेवक, रिमांड गृह, संरक्षण या प्रेक्षण गृह, जेल, अस्पताल या शैक्षिक संस्था में स्टाफ के किसी सदस्य द्वारा या सशस्त्र अथवा सुरक्षाबलों के किसी सदस्य द्वारा यह अपराध किया जाता है तो उसे और गंभीर माना जाता है। यह अधिनियम यौन हमला, यौन उत्पीड़न एवं अश्लील साहित्य के अपराधों से बच्चों की रक्षा का प्रावधान करने के लिये एक व्यापक कानून है, जबकि लोक अभियोजकों तथा नामोदिष्ट विशेष न्यायालयों की नियुक्ति के माध्यम से अपराधों की रिपोर्टिंग, साक्ष्य की रिकार्डिंग, अन्वेषण एवं त्वरित सनुवाई के लिये बच्चों के अनुकूल तंत्रों को शामिल करके हर चरण पर न्यायिक प्रक्रिया में बच्चों के हितों की रक्षा की गई है। अधिनियम में अपराधों की रिपोर्टिंग, रिकार्डिंग, अन्वेषण एवं सुनवाई के लिये बालोनुकूल प्रक्रियाएं शामिल की गई हैं। अधिनियम में ऐसे अपराधों के लिये कठोर दंड का प्रावधान है जिन्हें अपराध की गंभीरता के अनुसार श्रेणीबद्द किया गया है। पोक्सो अधिनियम की धारा 39 के तहत राज्य सरकारों से बच्चों की मदद के लिये सुनवाई पूर्व एवं सुनवाई चरण के साथ संबद्ध करने के लिये गैर-सरकारी, संगठनों, पेशेवरों एवं विशेषज्ञों या व्यक्तियों के प्रयोग के लिये दिशा-निर्देश तैयार करने की अपेक्षा है।
अध्यादेश के महत्वपूर्ण बिन्दू
जहां तक बच्चों के विरूद्ध यौन हिंसा का सवाल है, यह कानून लिंग आधारित नहीं है। उल्लेखनीय है कि पोक्सो अधिनियम में 'बलात्कार' की जगह 'यौन आक्रमण' शब्द का इस्तेमाल किया गया है। इसकी परिभाषा बहुत विस्तृत है और इसके तहत गैर शीलभंग क्रिया सहित मुख और गुदा यौन तथा योनि, गुदा और शरीर के अन्य छिद्रों में किसी वस्तु के जबरन प्रवेश संबंधी अपराधों को भी रखा गया है। यदि पीड़ित को गंभीर चोट पहुंचे या अपराध किसी अधिकार सम्पन्न व्यक्ति द्वारा किया गया है तब इन अपराधों को 'गंभीर' अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
देश के किन-किन राज्यों ने बनाए हैं कानून?
मध्य प्रदेश : साल 2017 में बच्चियों से दुष्कर्म के मामलों में सबसे पहले मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दुष्कर्म के मामलों में दोषियों के खिलाफ बेहद कड़ी सजा की पहल की गई। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 12 साल तक की बच्चियों से रेप के मामले में दोषियों के खिलाफ फांसी की सजा का प्रस्ताव पारित किया गया। इसके साथ ही कैबिनेट द्वारा सामूहिक दुष्कर्म के मामले में दोषियों को मौत की सजा देने के एक प्रस्ताव को भी पास किया गया। दुष्कर्म के दोषियों के खिलाफ जुर्माने और सजा को बढ़ाने के लिए दंड संहिता में संशोधन के प्रस्ताव को भी मंज़ूरी दी गई।
राजस्थान : मार्च 2018 में नाबालिग से दुष्कर्म के दोषियों को मृत्युदंड देने संबंधी विधेयक को राजस्थान विधानसभा में पारित किया गया। इसके तहत 12 साल तक की उम्र की बालिकाओं के साथ दुष्कर्म के दोषियों के लिये मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। पारित विधेयक में आईपीसी में 376 क और 376 घघ दो नई धाराएं जोड़ी गई। 376 घ में सामूहिक दुष्कर्म को शामिल किया गया है। अब सामूहिक दुष्कर्म में शामिल हर व्यक्ति को मृत्युदंड देने का प्रावधान निहित किया गया है। यह विधेयक पारित करने वाला राजस्थान मध्य प्रदेश के बाद दूसरा राज्य बन गया है।
हरियाणा : मार्च 2018 में ही हरियाणा में भी ऐसा ही एक बड़ा फैसला लेते हुए 12 साल से कम उम्र की लड़की से दुष्कर्म के दोषी को फांसी की सजा के प्रावधान वाले विधेयक को हरियाणा विधानसभा द्वारा पास किया गया। इस विधेयक के अनुसार, न्यायालय द्वारा किसी भी आरोपित को 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ दुष्कर्म का दोषी पाने पर मौत की सजा सुनाए जाने की व्यवस्था की गई है। सरकार द्वारा महिला अपराधों से संबद्ध भारतीय दंड संहिता के कानून की धारा 376, 376 डी, 354, 354 की धारा 2 में कुछ नई धाराएं भी जोड़ी गई हैं।
उत्तर प्रदेश : नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भी कठोर कदम उठाए गए हैं। सरकार द्वारा ऐसे मामलों में फांसी की सजा का प्रावधान किया है। इस बाबत कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा पर अलग-अलग जनपदों में हुई समीक्षा के बाद यह फैसला लिया गया। जल्द ही उत्तर प्रदेश में भी नाबालिग से दुष्कर्म पर फांसी की सजा होगी। सरकार विधानसभा में 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म के संबंध में फांसी की सजा का प्रस्ताव पास कर इसे स्वीकृति के लिए केंद्र को भेजेगी। मंज़री मिलने के बाद यह कानून के रूप में लागू हो जाएगा।
महाराष्ट्र : महाराष्ट्र सरकार ने दुष्कर्म और तेजाब हमलों की शिकार महिलाओं के लिए मनोधैर्य योजना शुरू की है जिसके तहत प्राथमिकी दर्ज होने के कुछ ही सप्ताह के भीतर मुआवजा दे दिया जाता है। इस योजना के तहत सुनवाई के दौरान कानूनी मदद भी उपलब्ध कराई जाती है। लेकिन इस कानून में इन अपराधों और इनके लिए आवंटित सजा को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। इसी तरह स्टाकिंग को भी एक दंडनीय अपराध मानते हुए तीन साल की सजा की व्यवस्था की गई है। इसी प्रकार एसिड अटैक के लिए 10 साल की सजा के दी गई।
अलग-अलग देशों में अलग-अलग सजा का प्रावधान
दुनिया के कई देशों में दुष्कर्म के मामलों में अलग-अलग सजा का प्रावधान है। ज्यादातर देशों में इसके लिए मौत की सजा की व्यवस्था की गई है। दुनिया में दो तरह के देश हैं। एक वो जहां दुष्कर्म के आरोपी को फांसी की सजा का प्रावधान है। दूसरे वो देश जहां किसी भी अपराध के लिेए मौत की सजा का प्रावधान नहीं है। जिन देशों में अपराध के लिए मौत की सजा का प्रावधान होता है उन देशों को रिटेशनिस्ट देश कहा जाता है। कई रिटेशनिस्ट देशों में भी बच्चों से रेप के लिए फांसी की सजा का प्रावधान नहीं है। सऊदी अरब में किसी भी महिला के साथ दुष्कर्म करने वाले को बड़ी दर्दनाक सजा दी जाती है। यहां गुनाहार को तब तक पत्थर मारे जाते हैं, जब तक उसकी मौत न हो जाए। जहां तक बाल अपराधियों की बात है तो एमनेस्टी इंटरनेशनल की 2013 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में सिर्फ आठ देशों में बाल अपराधियों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान है। ये देश हैं चीन, नाइजीरिया, कांगो, पाकिस्तान, ईरान, सऊदी अरब, यमन और सूडान।
ईरान में दुष्कर्म पीड़ित महिला को न्याय दिलाने के लिये दोषियों को मौत की सजा दिये जाने का प्रावधान है। यहां दी जाने वाली मौत की सजा में 15 फीसदी मामले दुष्कर्म के ही होते हैं। हालांकि ईरान में महिला को मुआवजे के लिए राजी करने का भी प्रावधान है। मिस्र में भी दुष्कर्म के दोषियों को मौत की सजा देने का प्रावधान है। यहां दोषियों को फांसी पर लटका दिया जाता है। संयुक्त अरब अमीरात में दुष्कर्म के दोषी को सीधे मौत की सजा दी जाती है। ऐसे अपराधियों को महज सात दिनों के भीतर फांसी पर लटका दिया जाता है। उत्तर कोरिया में दुष्कर्म के अपराधियों के प्रति किसी भी प्रकार की दया या सहानुभूति नहीं दिखाई जाती। यहां इस प्रकार के अपराधियों के लिए सिर्फ मौत की सजा का प्रावधान है। दुष्कर्मी के सिर में गोली मारकर उसको मौत दी जाती है। अफगानिस्तान में इस्लामी कानून का पालन किया जाता है, जिसके अनुसार दुष्कर्मी को महज चार दिनों के अंदर गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया जाता है। चीन में भी दुष्कर्म की सजा के तौर पर सिर्फ मौत की सजा दी जाती है। यहां दोषियों को सजा देने में देरी नहीं की जाती है।
ग्रीस में किसी भी प्रकार के शारीरिक शोषण, यौन उत्पीड़न, जान से मारने की धमकी देकर शारीरिक संबंध बनाने को दुष्कर्म की श्रेणी में रखा गया है। दोषियों को जेल में बेड़ियों में बांधकर रखा जाता है। नीदरलैंड में किसी भी प्रकार के यौन उत्पीड़न अथवा जबरन यौन संबंध बनाने को दुष्कर्म माना जाता है। इसके अलावा जबरन चुंबन को भी इसी श्रेणी में रखा गया है। यहां इस अपराध के दोषियों को 4 से 15 साल तक की कैद की सजा का प्रावधान है। फ्रांस में दुष्कर्म के आरोपियों को 15 साल की सजा का प्रावधान है। अगर पीड़िता की उम्र 15 साल या उससे कम होती है तो आरोपी को 20 साल की सजा दिये जाने का प्रावधान है। इसके अलावा किसी भी प्रकार का शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न करने पर आरोपी को उम्रकैद की सजा दी जाती है। पोलैंड में दुष्कर्म के आरोपी को सुअरों से कटवाया जाता है। हालांकि अब एक नया कानून आ चुका है जिसमें आरोपी को नपुंसक बना दिया जाता है। इंडोनेशिया में भी दोषियों को नपुंसक बनाने के साथ उनमें महिलाओं के हॉर्मोन्स डाल दिये जाने का प्रावधान है। पाकिस्तान में पिछले ही साल एक बिल पास किया गया जिसके तहत दुष्कर्म के दोषी को 25 साल की कैद की सजा का प्रावधान किया गया। इसके अलावा नाबालिग बच्चों और मानसिक रूप से विक्षिप्त से दुष्कर्म करने पर दोषी को मौत की सजा दिये जाने का प्रावधान है। मलेशिया में बच्चों के साथ होने वाली यौन हिंसा के लिये सबसे ज्यादा 30 साल की जेल और कोड़े मारने की सजा का प्रावधान है। सिंगापुर में 14 साल के बच्चे के साथ रेप होने पर अपराधी को 20 साल जेल, कोड़े मारने और जुर्माने की सजा होती है।
अमरीका में बच्चों के साथ रेप के लिए पहले मौत की सजा का प्रावधान था, लेकिन कैनेडी बनाम लुइसियाना (2008) मामले में मौत की सजा को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया। न्यायालय के अनुसार जिस मामले में मौत नहीं हुई है उसमें मौत की सजा देना अनुपाती नहीं है यानी सजा जुर्म से ज़्यादा बड़ी है। इसलिए अब अमेरिकी राज्यों में मौत की सजा नहीं है। हालांकि, अमरीका में बच्चों के साथ रेप के मामले में राज्यों के अनुसार प्रावधान भी अलग-अलग हैं। फिलीपींस में बच्चों के साथ रेप पर सबसे सख्त कानून है। यहां बच्चों के साथ रेप साबित होने पर दोषी को बिना पैरोल के 40 साल तक जेल की सजा हो सकती है। ऑस्ट्रेलिया में बच्चों के दुष्कर्मी को 15 साल से 25 साल तक की जेल की सजा है। कनाडा में बच्चों के साथ रेप पर अधिकतम 14 साल जेल की सजा का प्रावधान है। इंग्लैंड और वेल्स में बच्चों के साथ रेप पर 6 साल से 19 साल की जेल से लेकर आजीवन कारावास की सजा दी जाती है। जर्मनी में बच्चों के साथ दुष्कर्म के बाद मौत पर उम्र कैद की सजा है। लेकिन, सिर्फ दुष्कर्म के लिए 10 साल की अधिकतम सजा तय की गई है। दक्षिण अफ्रीका में रेप का दोषी पाए जाने पर पहली बार में 15 साल जेल की सजा का प्रावधान है। दूसरी बार दोषी पाए जाने पर 20 साल की कैद और तीसरी बार में 25 साल की कैद का प्रावधान है। न्यूज़ीलैंड में इस तरह के अपराध पर सजा 20 साल तक की है।
क्या कड़ी सजा से थम जाएगा दुष्कर्म ?
पिछले कुछ दिनों में सूरत, कठुआ, उन्नाव, दिल्ली जैसे शहरों की बात करें तो समय, दिन और जगह भले ही अलग हों लेकिन हर जगह कम उम्र की बच्ची के साथ ही दुष्कर्म के मामले सामने आए हैं। और हर घटना पिछली घटना से ज्यादा दर्दनाक और वीभत्स थी। यही वजह है कि भारत में बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामले में फांसी की सजा की मांग तेज होती गई। इसके बावजूद दुष्कर्म के मामलों में फांसी दिये जाने के संबंध में विचार बंटे हुए हैं। कोई इससे अपराध में कमी होने का तर्क रखता है तो कोई पहले से ही मौजूद कानूनों को पर्याप्त बताता है। समाज को यह संदेश देना जरूरी है कि इस तरह के कृत्य सभ्य समाज में बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं हैं। दुष्कर्म के लिए जेल और दुष्कर्म के के हत्या के लिए भी उम्रकैद का प्रावधान यह संभावना बढ़ा देगा कि अपराधी दोनों ही अपराधों को अंजाम दे दें और ऐसे में यह भी संभावना रहेगी कि उसका अपराध कभी सामने ही न आए। आधी से अधिक दुनिया इसका समर्थन करती है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने बच्चों के साथ दुष्कर्म के दोषियों के लिए मौत की सजा के प्रस्ताव का स्वागत किया है। आयोग का कहना है कि ये बहुत जरूरी है कि लोग इस बात से डरें कि अगर वे ऐसा करते हैं तो उन्हें इसकी कड़ी सजा, यहां तक कि फांसी भी मिल सकती है। हालांकि इसके लिए अधिक जरूरी यह है कि इन कानूनों को कड़ाई से लागू किया जाए। जहां तक बात पोक्सो एक्ट में बदलाव की है तो इसके अंतर्गत 'रेयरेस्ट ऑफ द रेयर' मामले में ही फांसी की सजा हो सकती है। बच्चों के साथ दुष्कर्म के मामले पोक्सो एक्ट के तहत ही दर्ज किये जाते हैं। इस कानून में फिलहाल बच्चों के साथ दुष्कर्म के दोषियों के लिए 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है। मृत्युदंड के विपक्ष में तर्क देने वालों की मानें तो ऐसा कोई प्रमाण नहीं जिनसे ये निर्धारित किया जा सके कि मृत्युदंड से दुष्कर्म और दुष्कर्म बाद हत्या जैसे अपराधों की संख्या में कमी आई है। दुनिया के ज्यादातर देशों ने फांसी की सजा का प्रावधान अपनी न्यायिक व्यवस्था से हटा दिया है। मृत्युदंड, प्रतिशोध का एक कृत्य मात्र है जबकि सभ्य समाजों में दंड का उद्देश्य सुधार या अपराध का निवारण होता है। जान के बदले जान, गांधीजी के उस कथन की भांति ही है जिसमें वे कहते हैं कि आंख के बदले आंख की नीति सारे संसार को अंधा बना देगी।
पितृसत्तात्मक ढांचे में परिवर्तन की जरूरत
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में जहां दोष साबित कर पाना कठिन होता है, में सज़ा की व्यवस्था करना काफी मुश्किल साबित होगा। आंकड़ों के अनुसार, बच्चों के साथ यौन हिंसा के अधिकतर मामलों में उनके अपने लोग ही शामिल होते हैं, इस कारण उनके खिलाफ शिकायत करने में हिचक होती है। मौत की सज़ा का प्रावधान होने पर और कम लोग सामने आएंगे। ऐसे में पोक्सो में प्रस्तावित संशोधन के बाद संभव है कि परिवार वाले अथवा स्वयं पीड़िता ऐसे मामलों में सामने न आए। साथ ही बच्चियों के साथ दुष्कर्म के मामले में फांसी की सजा होने पर हर दोषी घटना के बाद बच्ची की हत्या करने का प्रयास करेगा, ताकि न तो सबूत रहेगा और न ही अपराध सिद्ध हो पाएगा। स्पष्ट रूप से दुष्कर्म रोकने के लिए सबसे जरूरी यह है कि समाज के पितृसत्तात्मक ढांचे में परिवर्तन किया जाए। यदि किसी व्यक्ति ने दुष्कर्म और हत्या का जघन्य अपराध किया है, परंतु क्या उसे फांसी दे देना न्याय को सुनिश्चित करता है? क्या यह उचित होगा कि मानसिक कुंठा और विकृति में किये गए अपराध के बदले एक सभ्य समाज अपराधी के साथ भी वही व्यवहार करे जो उस अपराधी ने पीड़ित के साथ किया?
जस्टिस जे.एस. वर्मा समिति की सिफारिशें
16 दिसंबर 2013 को निर्भया गैंगरेप कांड के बाद केंद्र सरकार ने यौन अपराधियों के लिये सख्त सजा का प्रवाधान करते हुए देश में दुष्कर्म कानूनों में व्यापक बदलाव किये। लेकिन इस घटना के पांच साल बाद भी यौन अपराध एक बड़ी समस्या बनी हुई है। इस संबंध में अधिक जानकारी के लिये एनसीआरबी द्वारा प्रदत्त आंकड़ों का अवलोकन करना बेहद जरूरी हो गया है। 2013 में संसद ने आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम (Criminal Law (Amendment) Act) पारित किया जिसके अंतर्गत दुष्कर्म की परिभाषा को और अधिक विस्तृत कर दिया गया और कड़ी सजा की व्यवस्था की गई। यह अधिनियम 2 अप्रैल, 2013 को लागू हुआ। इसके अंतर्गत न केवल यौन अपराधिक मामलों में जेल की अवधि में वृद्धि की गई बल्कि दुष्कर्म के मामलों में मृत्युदंड की भी व्यवस्था की गई।
न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति की सिफारिशों पर इन सुधारों को शामिल किया गया। आपराधिक कानून में संभावित संशोधनों के लिए तीन प्रख्यात न्यायविदों की समिति का गठन किया गया था ताकि अपराधियों, महिलाओं के खिलाफ जघन्य यौन उत्पीड़न जैसे अपराधों के अभियुक्तों की सजा को बढ़ाया जा सके और इन मामलों में मुकदमों की शीघ्र सुनवाई की जा सके। इस अधिनियम के अंतर्गत बहुत से अपराधों को शामिल किया गया जैसे कि एसिड हमले, यौन उत्पीड़न, किसी महिला को निवस्त्र करने की इच्छा से उसके साथ मार-पीट करना अथवा आपराधिक बल का उपयोग करना, ताक-झांक करना और स्टाकिंग अर्थात् पीछा करना। इसके तहत गैंगरेप के मामले में 20 वर्ष की सजा का प्रवधान किया गया जिसे बढ़ाकर आजीवन कारावास किया जा सकता है। इससे पहले दुष्कर्म के अपराधों के लिए कानून में कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं था जैसे अवांछित शारीरिक संपर्क, शब्दों या इशारों, यौन पक्षों के लिए अनुरोध या मांग करने, किसी महिला की इच्छा के खिलाफ अश्लील साहित्य दिखाने अथवा यौन टिप्पणी करने आदि को विशिष्ट अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया गया था।