'नफरत गर्ल' नहीं अब 'MY GIRL' बनी हिलेरी
2008 में राष्ट्रपति पद के डेमोक्रेटिक उम्मीदवार के लिए ओबामा और हिलेरी आमने-सामने थे। 2008 के अभियान में बराक ओबामा ने 'होप एंड चेंज' का नारा दिया था। हिलेरी ने ओहियो की रैली में इसका मजाक उड़ाया था। केट का इस किताब में कहना है कि हिलेरी का ऐसा करना ही मिशेल की नाराजगी की मुख्य वजह बनी थी। लेकिन शायद 'रात गई बात गई' की तर्ज पर पिछले कुछ हफ्तों से मिशेल हिलेरी की जबरदस्त समर्थक बनकर उभरी हैं।
नहीं चेते मुलायम तो रिपीट होगा सिंधिया घराने का इतिहास
अगले साल यानी 2017 में विधानसभा चुनाव होने हैं। सभी प्रमुख दल अपने लाव-लश्कर के साथ मैदान में हैं। किसी पार्टी से जुड़ने और किसी से टूटने का सिलसिला जारी है। लेकिन इन सबके बीच निगाहें फिलहाल राज कर रही पार्टी पर है। गुजरे एक महीने में पार्टी के भीतर इतना कुछ घटा कि परिवार के साथ-साथ सत्ता का सियासी गणित भी गड़बड़ाने लगा।
स्थापना दिवस पर 90 साल बाद RSS स्वयंसेवकों ने बदला चोला
विजयादशमी की तिथि और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बदल दी अपनी दशकों पुरानी पहचान। जी हां! आज यानी दशहरा के शुभ दिन पर संघ के स्वयंसेवी खाकी रंग के हाफ पैंट (निक्कर) में नहीं बल्कि ब्राउन कलर की पतलून में पथ संचलन करते दिखे। संघ मुख्यालय नागपुर में आयोजित समारोह में सरसंघचालक मोहन भागवत, नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस भी नए गणवेष में दिखे।
ड्रैगन पर दबाव की रणनीति से ही बनेगी बात
पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए सरकार कई विकल्पों पर चर्चा कर रही है। रणनीतिक और राजनीतिक तौर पर अलग थलग करने के लिए भारत को चीन को उसी अंदाज में समझाना होगा जिसे वो बखूबी समझता है। उस प्रेशर टैक्टिक्स को अपनाना होगा जिसकी भाषा उसे समझ में आती है यानी सटीक आर्थिक रणनीति बनानी होगी। ऐसे अनगिनत मौके आए हैं जब चीन ने भारत के बजाए पाकिस्तान की बात को गंभीरता से लिया है।
गरीब की रसोई में फिर लगेगा दाल का तड़का!
मौजूदा वर्ष में दलहन का रकबा बढ़ने, दालों का भंडारण बढ़ाने तथा विदेशों में दलहन की खेती कराने के प्रयासों से आने वाले समय में गरीब की रसोई में एक बार फिर ‘दाल का तड़का’ लगने की उम्मीद है। सरकार द्वारा जारी आंकडों के अनुसार सिर्फ ‘दाल- रोटी’ के लिए दिनभर कडी मेहनत करने वाले आम आदमी की थाली में एक बार फिर दाल की कटोरी आने की संभावना दिखाई दे रही है।
...तो क्या BSP का होगा बेड़ा पार?
उत्तर प्रदेश चुनाव 2017 को लेकर सभी बड़ी पार्टियां अपने-अपने दावे और वायदे के साथ मैदान में हैं। चुनावों का ऐलान नहीं हुआ है लेकिन प्रचार-प्रसार का काम रफ्तार पकड़ चुका है। चुनाव पूर्व सर्वेक्षण भी आने लगे हैं। कोई सपा नीत सरकार पर, तो कोई यूपी के ट्रेंड के हिसाब से इस बार बसपा पर दांव लगा रहा है। पिछले दिनों आए सर्वेक्षण के मुताबिक हंग एसेम्बली के आसार प्रबल है। सब को ऐसा लगता है कि एक खास तबके या वर्ग पर उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। जोर-आजमाईश हर स्तर पर दिख रही है। जितनी बड़ी पार्टियां उतने बड़े हथकंडे अपनाए जा रहें हैं।
शर्मिला कंबा लूप
शर्मिला इरोम होने का मतलब खुद को फ़ना करने का नाम है। कम से कम 'आयरन लेडी ऑफ मणिपुर' के हाल के फैसले से तो यही साबित होता है। एक सामाजिक कार्यकर्ता जो एक साल नहीं दो साल नहीं बल्कि 16 साल तक भूख हड़ताल पर बैठी रही उसने तार्किक आधार पर अपनी राह चुनने का फैसला क्या लिया मानो उसके सगे ही गैर हो गए? SAKAL यानी शर्मिला कंबा लूप (शर्मिला को बचाओ) संगठन ने AFSPA हटाने की मुहिम से शर्मिला को अलग करने का फैसला ले लिया है। उन्हें कष्ट इस बात का है कि इस शहीद ने उनसे मशविरा किए बिना इतना बड़ा फैसला कैसे ले लिया। मुहिम के कर्णधार इरोम को ठग और खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहें हैं।
अरूणाचल प्रदेश : तुकी से तुकी तक का घटनाक्रम
अरुणाचल प्रदेश में जो कुछ हुआ और हो रहा है वो किसी हिन्दी फिल्म की सस्पेंस थ्रिलर से कम नहीं है। इस कहानी में कई ट्विस्ट हैं। इसमें सत्ता की हनक, साजिश, आरोप-प्रत्यारोप जैसे मसाले और अंत में सब कुछ बेहतर करने वाले मसीहा (SC) की ऑन टाइम एंट्री है। 'दी एण्ड' फिलहाल हैप्पी लग रहा है, लेकिन कहानी का दूसरा अंश अभी बाकी है। बहरहाल सर्वोच्च न्यायालय के दखल के बाद राज्यपाल द्वारा 9 दिसंबर 2015 से अभी तक लिए गए सभी फैसलों को खारिज करने तक का घटनाक्रम हमारी राजनीतिक बिरादरी की नियत और नीति के बारे में बहुत कुछ कहता है।
जानिए! मोदी कैबिनेट में किस मंत्री को मिला कौन सा मंत्रालय
राजग सरकार के दो साल के कार्यकाल में मंगलवार को दूसरे बड़े विस्तार के बाद मोदी मंत्रिपरिषद में 19 नए मंत्रियों को शामिल किए जाने और पांच मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में मंत्रियों की कुल संख्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिलाकर 78 हो गई है।
बांग्लादेश में ब्लॉगर ही नहीं, विदेशी और अल्पसंख्यक भी हैं टारगेट
15 जनवरी 2013 को ब्लॉगर आसिफ मोहिनुद्दीन पर हमला बांग्लादेश में कट्टरपंथ की पहली दस्तक थी। इसके बाद कट्टरपंथियों ने पिछले तीन साल में तीन दर्जन से ज्यादा हमले किए। इस दौरान अल्पसंख्यक भारतीय, विदेशी, नास्तिक और धर्मनिरपेक्ष लोगों पर हमले हुए। लेकिन इस दौरान लेखकों और ब्लॉगरों को सबसे ज्यादा टारगेट बनाया गया।