झारखंड में भी भाजपा ने गंवाई सत्ता, सीएम रघुबर तक नहीं बचा पाए अपनी सीट, झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन को स्पष्ट बहुमत
सत्ता विमर्श ब्यूरो
रांची : झारखंड विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को एक और हार का सामना करना पड़ा। यहां झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के गठबंधन ने 47 सीटें जीतकर 81 सीटों वाले विधानसभा में स्पष्ट बहुमत हासिल किया। तमाम एग्जिट पोल और आरएसएस के आंतरिक सर्वे में भी भाजपा की हार का अंदेशा जताया गया था। इस हार के साथ ही झारखंड ऐसा पांचवां राज्य बना जहां भाजपा ने पिछले एक साल में अपनी सत्ता गंवाई है। झारखंड के अलावा इसी साल भाजपा को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनावों में सत्ता गंवानी पड़ी थी। इसके अलावा इस वर्ष मई में आये लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद भाजपा की किसी राज्य विधानसभा चुनाव में यह पहली स्पष्ट हार है।
झारखंड विधानसभा चुनाव 2019 में सोमवार को आए नतीजों के अनुसार, 81 सीटों वाली विधानसभा में झारखंड मुक्ति मोर्चा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। पार्टी को यहां 30 सीटें हासिल हुईं, वहीं भाजपा को सिर्फ 25 सीटों से संतोष करना पड़ा और कांग्रेस के खाते में 16 सीटें गईं। इसके अलावा झारखंड विकास मोर्चा ने तीन, निर्दलीय और एजेएसयू ने दो-दो और राजद, एनसीपी तथा सीपीआईएमएल ने एक-एक सीटों पर जीत दर्ज की। इस प्रकार झामुमो, कांग्रेस और राजद गठबंधन को कुल 47 सीटें प्राप्त हुईं। झामुमो नेता हेमंत सोरेन ने 27 दिसंबर को मोरहाबादी मैदान में नई सरकार के शपथ ग्रहण की घोषणा की है।
कुल सीटों की संख्या- 81
भारतीय जनता पार्टी- 25
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा- 30
इंडियन नेशनल कांग्रेस- 16
झारखण्ड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक)- 03
आजसु पार्टी- 02
भाकपा (माले-लिबरेशन)- 01
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी- 01
राष्ट्रीय जनता दल- 01
निर्दलीय- 02
झारखंड में सत्ताधारी भाजपा की बड़ी हार इस मायने में कही जा रही है क्योंकि भाजपा का नेतृत्व कर रहे सूबे के मुख्यमंत्री रघुवर दास स्वयं जमशेदपुर पूर्व से करीब 16 हजार से अधिक मतों से अपने ही मंत्रिमंडल के सहयोगी रहे सरयू राय से चुनाव हार गए। इसके अलावा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा भी अपनी सीट गंवा बैठे। इन चुनावों में झामुमो ने रिकार्ड 30 सीटें जीतीं जिससे वह विधानसभा में सबसे बड़ा दल भी बन गया जबकि सिर्फ 25 सीटें जीत पाने से भाजपा का विधानसभा में सबसे बड़ा दल बनने का सपना भी चकनाचूर हो गया।
झारखंड विधानसभा की 81 सीटों के लिए 30 नवंबर से प्रारंभ होकर 20 दिसंबर तक पांच चरणों में हुए चुनावों के अंतिम परिणाम सोमवार देर रात को घोषित हुए। इसके अनुसार जहां भाजपा को सिर्फ 25 सीटें प्राप्त हुईं, वहीं विपक्षी गठबंधन को कुल 47 सीटें प्राप्त हुईं। गठबंधन में झामुमो को जहां 30 सीटें हासिल हुईं वहीं कांग्रेस को भी 16 और राजद को एक सीट प्राप्त हुई। इनके अलावा भाजपा की सरकार में सहयोगी रही आजसू को भी गठबंधन धर्म तोड़ने का खामियाजा भुगतना पड़ा और उसे सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा जबकि उसने 53 सीटों पर चुनाव लड़ा था। पिछले विधानसभा चुनावों की बात करें तो भाजपा ने 37 सीटें जीती थीं जबकि उसकी सहयोगी रही आजसू आठ सीटों पर लड़कर पांच सीटों पर जीती थी। इस बार के चुनाव को देखें तो कम से कम 12 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां दोनों पार्टियों के मत जोड़ देने से उनके उम्मीदवार की जीत संभव थी।
आजसू के अध्यक्ष सुदेश महतो सिल्ली से और गोमिया से लंबोदर महतो ही पार्टी की ओर से विधानसभा पहुंच सके। झारखंड विकास मोर्चा ने भी बड़ी उम्मीदों के साथ सबसे अधिक 81 की 81 सीटों पर अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे थे लेकिन उसे अपने सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी और विधायक दल के नेता प्रदीप यादव के अलावा सिर्फ एक और सीट पर जीत हासिल हुई और वह शेष 78 सीटों पर चुनाव हार गई। इसके अलावा इन चुनावों में भाकपा माले लिबरेशन के विनोद सिंह और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के कमलेश सिंह तथा दो निर्दलीयों ने भी सफलता हासिल की।
हार के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने प्रेस कांफ्रेंस में दो टूक कहा कि यह हार उनकी व्यक्तिगत हार है। यह भाजपा की हार नहीं है। दूसरी तरफ झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने इस जीत को जनता का स्पष्ट जनादेश बताया और कहा कि इससे उन्हें जनता की आकांक्षा पूरा करने के लिए संकल्प लेना होगा। हेमंत सोरेन ने कहा कि आज के चुनाव परिणाम राज्य के इतिहास में नया अध्याय हैं और यह मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने विश्वास दिलाया कि लोगों की उम्मीदें वह टूटने नहीं देंगे। उन्होंने स्पष्ट किया कि महागठबंधन पूरे राज्य के सभी वर्गों, संप्रदायों और क्षेत्रों की आकांक्षाओं का ख्याल रखेगा।
हेमंत ने अपने पिता शिबू सोरेन, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, पार्टी नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और राजद नेता लालू यादव का धन्यवाद किया और कहा कि आज के परिणाम सभी के परिश्रम का परिणाम है। वह अपने पिता से मिलने साइकिल चलाकर पहुंचे। उन्होंने कहा कि अभी गठबंधन के सभी सदस्यों के साथ बैठेंगे और सरकार बनाने के लिए और शासन के लिए रणनीति तैयार करेंगे।
लोकसभा चुनावों की बात करें तो झारखंड में भाजपा ने 14 में से 11 सीटें और उसकी सहयोगी आजसू ने एक सीट जीती थी जबकि कांग्रेस और झामुमो के हाथ सिर्फ एक-एक सीट आई थी। यहां तक कि झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन भी दुमका लोकसभा सीट से चुनाव हार गये थे।
देश में भाजपा शासित हिस्सा अब सिर्फ 35 प्रतिशत
भाजपा के हाथ से निकलते राज्यों में झारखंड के भी शामिल होने के बाद केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की हिस्सेदारी अब देश के मात्र 35 प्रतिशत हिस्से पर रह गई है, जबकि 2017 में पूरी हिंदी भाषी पट्टी पर शासन के साथ 71 प्रतिशत हिस्से पर उसका नियंत्रण था। अप्रैल-मई में हुए लोकसभा चुनावों में बड़ी जीत के बावजूद कई राज्यों में भाजपा की हार से पार्टी के बड़े नेता आगामी विधानसभाओं चुनावों के लिए अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने को मजबूर हो सकते हैं। आने वाले समय में दिल्ली और बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं।
आंकड़ों का विश्लेषण करें तो जिन राज्यों में भाजपा की उसके अपने दम पर या सहयोगियों के साथ सरकार है, वहां आबादी करीब 43 प्रतिशत है जबकि दो साल पहले 69 फीसदी से अधिक आबादी वाले राज्यों में भाजपा की सरकार थी। निश्चित रूप से पार्टी के लिए यह चिंता की बात है कि 2018 से राज्यों के चुनाव में उसका ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। वह इस अवधि में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता खो चुकी है। लोकसभा चुनाव में उसकी जबरदस्त जीत भी राज्यों में लाभ दिलाने में कामयाब नहीं हो पा रही है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि भाजपा नेतृत्व को विधानसभा चुनावों में अपनी रणनीति बदलनी होगी।
हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में विपक्षी दलों ने पिछली बार के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया। भाजपा दोनों ही राज्यों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर तो उभरी लेकिन पहले की तुलना में उसे कई सीटें गंवानी पड़ीं। पार्टी ने हरियाणा में जननायक जनता पार्टी के साथ हाथ मिलाकर सरकार बना ली लेकिन महाराष्ट्र में प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस-एनसीपी के सामने भाजपा का सपना टूट गया जिसने उसकी पुरानी सहयोगी शिवसेना के साथ हाथ मिलाकर सरकार बना ली। झारखंड की स्थापना के बाद से पहली बार भाजपा सबसे बड़ी पार्टी भी नहीं बन पाई। लोकसभा चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत झारखंड में 55 प्रतिशत से अधिक था तो हरियाणा में 58 प्रतिशत था। हालांकि इन दोनों राज्यों में कुछ ही महीने बाद हुए विधानसभा चुनावों में उसका वोट प्रतिशत गिरकर क्रमश: 33 एवं 36 प्रतिशत पर आ गया।