मराठा आक्रोश और सियासी दबाव के बाद झुका सामना, मांगी माफी
सत्ता विमर्श ब्यूरो
मुंबई: मराठा आक्रोश को देखते हुए सामना के कार्टूनिस्ट ने मराठाओं से माफी मांग ली है। इस कार्टून को लेकर महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों से काफी तीखी प्रतिक्रियाएं आई थी। कार्टूनिस्ट श्रीनिवास प्रभुदेसाई ने 'सामना' के मुख्य पृष्ठ पर छपे बयान में कहा कि मेरे कार्टून से मराठा समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंची है, लेकिन मेरा इरादा किसी को ठेस पहुंचाने का नहीं था। फिर भी मैं अनजाने में पहुंची ठेस के लिए माफी मांगता हूं।
गौरतलब है कि, जिस हिंसात्मक विरोध के जरिए शिवसेना मराठाओं के हक की लड़ाई लड़ने की बात करती है उसे उसी तरह के विरोध का सामना मंगलवार को करना पड़ा। सेना के मुखपत्र सामना में छपे कार्टुन से नाराज मराठाओं ने नवी मुंबई स्थित कार्यालय पर जमकर पत्थर बाजी की। मराठा सामना में छपे एक कार्टुन से नाराज हैं जिसमें मराठा आंदोलन का मजाक उड़ाया गया था।
इस बीच नवी मुंबई के कमिश्नर हेमंत नागरले ने दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया है। कार्टून महाराष्ट्र में चल रहे मराठा आंदोलन की खिल्ली उड़ा रहा है जिसमें आरक्षण की मांग की गई है। इस कार्टून में पहले मूक मोर्चा लिखकर फिर एक जोड़े को किस करते दिखाया है और लिखा है मुका मोर्चा। मराठी भाषा में मुका का मतलब चुम्बन होता है।
गौरतलब है कि मराठा समाज की एक लड़की के बलात्कार के बाद हत्या के विरोध और आरक्षण की मांग के साथ इस मूक आंदोलन का जन्म कोपार्डी से हुआ। खास बात ये कि इस पूरे आंदोलन का कोई नेता नहीं है।
क्या है मूक मराठा आंदोलन
14 जुलाई को महाराष्ट्र के कोल्हापुर के रेजिडेंसी क्लब में मराठा समाज से जुड़े संगठनों की एक गोलमेज परिषद हो रही थी, तभी 13 जुलाई की एक घटना की ख़बर पहुंची जिसमें एक मराठा लड़की के साथ कथित रूप से तीन दलित लड़कों ने बलात्कार किया है और लड़कों ने एससी एसटी एट्रोसिटी एक्ट में फंसाने की धमकी दी थी।
उस बैठक में मराठा समाज के लिए काम करने वाले पूरे प्रदेश भर से कोई तीस संगठन बुलाए गए थे। समाजशास्त्री, इतिहासकार और पत्रकार भी थे। वहां समाज से जुड़े बीस मुद्दे पर चर्चा हो रही थी। गोलमेज परिषद को बुलाने वाले बहुजन आंदोलन और फूले शाहू अंबेडकर विचारधारा के लोग हैं। इनका मकसद यही था कि मराठा समाज में ब्राह्मणवादी कर्मकांडों का असर बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा वहां दो सबसे बड़े मुद्दे थे। एक यह कि आत्महत्या करने वाला 90 फीसदी किसान मराठा है। गांवों से दूसरी जातियां पलायन कर रही हैं मगर मराठा किसान गांव में मरने के लिए मजबूर हैं। मराठा के वोट लेकर मराठा नेता इन किसानों की समस्या का हल नहीं करते हैं। इसी के साथ मराठा युवाओं का मुद्दा था कि इंजीनियरिंग, मेडिकल और अन्य प्रोफेशनल कोर्स की फीस बहुत महंगी होती जा रही है। ओबीसी और अनुसूचित जाति को फीस माफी और छात्रवृत्ति मिलती है। मराठा युवकों के ग़रीब तबके को छात्रवृत्ति तो मिलती है लेकिन बाकी युवाओं को नहीं मिलती है। इस कारण ये युवा आरक्षण को दोषी मानने लगे हैं। युवाओं का गुस्सा इस बात को लेकर भी है कि कोई भी राजनीतिक दल महंगी शिक्षा को आवाज़ नहीं दे रहा है।
इन मांगों और कोपराडीह बलात्कार कांड को लेकर अहमदनगर में कोई 10-12 संगठनों ने मार्च निकाला. 10-12 हज़ार लोग ही शामिल हुए। उसके बाद औरंगाबाद में मार्च निकला। सोशल मीडिया के ज़रिये इन्होंने अपनी बात सैकड़ों तक फैलाई जाएगी। जलगांव के मूक मार्च को ड्रोन से शूट किया गया मराठा समाज को लगा कि बिना नेता के भी उनकी रैली सफल हो रही है। मीडिया चुप रहा मगर लोग बातें करने लगे। जलगांव के बाद बीड और परभणी में मूक मोर्चा निकला, जिसमें लाखों लोग आए।
औरंगाबाद की रैली में इस आंदोलन की रूपरेखा तय हो गई कि कोई नेता मंच पर नहीं होगा. होगा भी तो सबसे पीछे चलेगा। भाषण नहीं होगा, नारा नहीं लगेगा।
हाल का इनका पुणे में किया गया आंदोलन काफी उत्साहवर्धक रहा। यहां सैकड़ों की संख्या में लोगों ने शिरकत की। आंदोलन इतना बड़ा था कि राज्य की फड़नवीस सरकार ने भी इनकी मांगों पर ध्यान देना शुरू कर दिया है। इस रैली में कई मराठा दिग्गज भी शामिल हुए। इनकी मांग मुख्यतया मराठा-कुणबी समाज को आरक्षण देने और राज्य में अत्याचार अधिनियम में सुधार की है। इन प्रतीकात्मक मोर्चों में महिलाओं और युवाओं की संख्या अधिक दिखाई देती है और सभी दलों के मराठा नेता इनमें शामिल हो रहे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राव साहब दानवे भी इसमें शामिल हो चुके हैं। महाराष्ट्र में मराठाओं की आबादी 34 से 36 फीसद है।