पत्रकारिता जगत की एक बुलंद आवाज गौरी लंकेश को कुछ समाज विरोधी तत्वों ने हमेशा-हमेशा के लिए खामोश कर दिया गया है। 16 पन्नों की उनकी पत्रिका 'गौरी लंकेश पत्रिके' हर हफ्ते निकलती है। लेकिन 13 सितंबर का अंक इसका आख़िरी अंक साबित हुआ। गौरी कन्नड़ भाषा में लिखती थीं। कुछ काबिल पत्रकारों ने उनके आखिरी संपादकीय का हिन्दी में अनुवाद किया है ताकि देश को पता चल सके कि आखिर गौरी ने ऐसा क्या लिखा कि उसे जान गंवानी पड़ी।