अब तरक़्क़ी के तर्क बदल चुके हैं। खेतों में फसल आयी है यीशु के आशीर्वाद से। अब महाजनों से मतलब नहीं। और शायद, जुमले वाली उस व्यवस्था से भी नहीं। सरकार से जितना मिल जाये, नही मिलने का अफसोस नहीं और मिलने का अभिमान नहीं। खलिहानों से खुशियां आतीं हैं और उन खलिहानों को भरनेवाला बोंगा, वनदेवता या रघुकुल के श्रीरामचन्द्र नहीं-- ऐसा धर्मांतरित आदिवासी मानते हैं। ज़िन्दगी में चमत्कार बाइबिल ने किया है तो इस लोक आस्था को आप भी स्वीकार कीजिये।