फिर से राम मंदिर का मुद्दा
सरसंघचालक मोहन भागवत ने यह मांग कर के कि सरकार अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए शीघ्र कानून बनाए, असल में सरकार की दुखती रग को छेड़ दिया है। राम मंदिर बनाने का मुद्दा बहुत पुराना है और देश के लिए यह एक ऐसा सवाल बन गया है जिस पर हर दृष्टिकोण से विचार करने की जरूरत होती है। यह सिर्फ धार्मिक मामला नहीं है, यह सिर्फ सांप्रदायिक भी नहीं है, लेकिन कुल मिलाकर बातें ऐसे उलझ गई है कि उनको सुलझाने में न्यायपालिका को भी अच्छी खासी कसरत करनी पड़ेगी। यह मुद्दा भावनात्मक बन चुका है।
देखिए! प्रधान सेवक की बात के.के. पांडेय के साथ, एपिसोड-5 ; गंगा संरक्षण और जी.डी. अग्रवाल की कुर्बानी
'प्रधानसेवक की बात' की 5वीं कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण किशोर पांडेय (के.के.पांडेय) ने गंगा सफाई अभियान और अविरल गंगा की मांग को लेकर प्रो. जीडी अग्रवाल के बेमियादी अनशन के दौरान दिवंगत होने जैसे मुद्दे पर मोदी सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाए हैं।
देखिए! प्रधान सेवक की बात के.के. पांडेय के साथ, एपिसोड-4 : राफेल सौदा विवाद
'प्रधानसेवक की बात' की चौथी कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण किशोर पांडेय (के.के.पांडेय) ने राफेल विमान सौदे को लेकर मोदी सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाए हैं और प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी से इसपर स्पष्टीकरण देने की मांग की है।
जस्टिस गोगोई की पीड़ा
सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ जज रंजन गोगोई ने हाल के एक व्याख्यान में देश के हालात पर एक व्याख्यान दिया है जो वास्तव में आज देश की सही तस्वीर पेश करता है। वक्त की मांग है कि देश की जनता खुद तमाम स्थितियों पर गौर करे और खुद निर्णय ले कि पिछले 70 साल में जो हुआ वह ठीक था या हाल के चार वर्षों में जो कुछ हुआ है वह ठीक है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो जस्टिस गोगोई जैसे लोगों की पीड़ा व्यर्थ ही जाएगी और अर्थ यही निकलेगा कि जैसे सब लोग अपनी बात कहते हैं उन्होंने भी अपनी बात कह दी।
देश की सुप्रीम व्यवस्था से छेड़छाड़ क्यों?
भारतीय संविधान के बारे में एक मान्यता यह भी है कि संविधान में जो कुछ लिखित है वह तो महत्वपूर्ण है ही, लेकिन कुछ अलिखित परंपराएं भी हैं जिनको पूरा महत्व दिया जाता है। आज भारत में यह बात साफ हो गई है कि पिछले 70 साल में किसी ने संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास नहीं किया। लेकिन पिछले चार साल में यह प्रयास लगातार हो रहा है। इससे और भी कई मुद्दे सामने आ रहे हैं।
विकास चाहिए या विनाश?
देश में विकास होगा तो हमारी आगे की पीढ़ियां सुरक्षित रहेंगी। अगर विनाश का दौर शुरू हो गया तो हम खुद ही सुरक्षित नहीं रहेंगे, बाकी बात तो अलग है। आज ऐसे चौराहे पर खड़े हैं जहां हमें सोचना होगा कि धर्म, संप्रदाय, जाति और भाषा के नाम पर लड़कर हम बर्बाद हो जाना चाहते हैं अथवा उस सच्चाई को समझना चाहते हैं कि ये धर्म, जाति आदि जैसे पहले से रहे हैं वो आज भी है और कले भी रहेंगे। इनके नाम पर आपस में मनमुटाव पैदा करने और समाज को तोड़ना आत्मघाती कदम साबित होगा।
गांधी शरणं गच्छामि
मोदीवाद गांधीवाद के विपरीत है। गांधीवाद यह सिखाता है कि अहिंसा को एक हथियार के रूप में हमें इस्तेमाल करना है। मोदीवाद कहता है कि संविधान से लेकर अन्य तमाम संस्थाओं पर जो गांधीवाद का असर है उसको खत्म कर मोदीवाद का असर कायम किया जाए। चुनना आपको है।
गुजरात में 'जीत की हार' के हैं कई मायने
2017 का गुजरात विधानसभा का चुनाव इस अर्थ में बहुत महत्वपूर्ण माना जाएगा कि इस चुनाव ने कई ऐसी संभावनाएं पैदा की हैं जिनपर मतदाताओं को सोचना पड़ेगा। सोचने का असली मुद्दा यह है कि मतदाता अक्सर यह सोचकर वोट देता है कि वह किसी पार्टी को जिताने या हराने के लिए वोट दे रहा है।
संसद सत्र में देरी सरकार की मनमानी
2017 में संसद के शीतकालीन सत्र में विलंब करने के पीछे सरकार की क्या सोच है यह लोग जरूर जानना चाहते हैं। सरकार की ओर से ऐसा कोई कारण भी नहीं बताया गया जिससे लोगों को संतुष्टि हो सके। भारतीय लोकतंत्र में संसद की सर्वोच्चता पर किसी तरह का कोई विवाद नहीं होना चाहिए। क्योंकि इस प्रणाली का नाम ही संसदीय लोकतंत्र है।
चुनौतियों के भंवर में भारतीय अर्थव्यवस्था
कृष्ण किशोर पांडेय