पहाड़िया समाज की आबादी लगातार सिमट रही है। यहां के फलदार वृक्षों को जिओ के मोबाइल टावर बांझ बना रहे हैं। परम्परावादी पहाड़िया जिन पहाड़ों पर बसते हैं, उसी पहाड़ी के नीचे संताल लोगों की बस्तियां हैं। सच कहें तो पहाड़िया इलाकों का विकास स्थानीय आबादी के मनोनुकूल नहीं बल्कि वातानुकूलित चैम्बर्स में पनपे विचारों का नतीजा है। ठेकेदारों के घोटालिया रवैये से विकास का अस्थि पंजर ही पहाड़िया समाज की नियति है।