विधानसभा चुनाव परिणाम भाजपा के लिए खतरे की घंटी
महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव समेत 17 राज्यों की 51 सीटों पर उपचुनाव के जो परिणाम सामने आए हैं वह केंद्र समेत अधिकांश राज्यों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए सबक भी है और आने वाले वक्त में खतरे की घंटी भी। देश के तमाम राजनीतिक दलों के लिए संकेत है, एक सबक है कि जनता अब अपनी लड़ाई लड़ने खुद मैदान में उतर चुकी है।
यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम एक खतरनाक संकेत
आने वाले वक्त में देश में बेरोजगारी का संकट बढ़ने वाला है। नौकरियां और कम होने जा रही है। इस हालात से निपटने के लिए अभी से राजनीतिक दलों के नेता बेरोजगार युवाओं की बढ़ती फौज को संभालने के लिए न्यूनतम मासिक आमदनी (यूबीआई) के रूप में लॉलीपॉप थमा रही है।
भारत में रोजगार संकट बेपर्दा
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के पिरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे की रिपोर्ट को मानें तो पिछले 45 सालों की तुलना में साल 2017-18 में देश में सबसे अधिक 6.1 प्रतिशत बेरोजगारी रही। इन नए आंकड़ों से तय मानिए, रोजगार संकट बेपर्दा हो गया है क्योंकि इस वक्त देश में रोजगार की हालत पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा खराब है।
साफ नीयत-सही विकास या विश्वासघात?
केंद्र की मोदी सरकार के चार साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है। एक तरफ जहां भाजपा के नेता और राजग सरकार के प्रधानमंत्री व मंत्री अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान करते थक नहीं रहे, वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस इसे देश की जनता से विश्वासघात करार दे रही है। हालांकि किसी भी सरकार के कामकाज की समीक्षा करने के लिए चार साल का वक्त बहुत ज्यादा नहीं होता है, लेकिन चूंकि जब सामने सरकार का मुखिया नरेंद्र मोदी जैसा नेता हो तो कामकाज की समीक्षा न करना भी गलत होगा।
कर्नाटक तय करेगा शाह का भविष्य
राजनीतिक गलियारों में इस बात का शोर मचा है कि कर्नाटक चुनाव में अगर भाजपा हारी तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और भाजपा की चुनावी जीत के चाणक्य अमित शाह की छुट्टी हो जाएगी। लिहाजा कर्नाटक चुनाव शाह के लिए सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा है। अमित शाह को करीब से जानने वाले बताते हैं कि भाजपा अध्यक्ष को इतना नर्वस उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। इसकी वजहें भी हैं। पहली यह कि भाजपा का आंतरिक सर्वे भी उन्हें कर्नाटक में जीत की गारंटी नहीं दे रहा है और दूसरी आरएसएस के नीति-नियंता कर्नाटक की चुनावी बिसात पर शाह की चली गई चाल से बेहद नाराज हैं।
योगी कभी हारता नहीं
गोरखपुर की सियासत को करीब से जानने वाले इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि यहां मठ की राजनीति सर्वोपरि है। दूसरे यहां की सियासत ब्राह्मण बनाम ठाकुर की चलती है। कई दशक पहले शुरू हुई इस तरह की सियासी जंग आज भी बरकरार है। ऐसा माना जाता है और यही सच भी है कि गोरखपुर में भाजपा की हार की आधी स्क्रिप्ट तो उसी तारीख में लिख दी गई थी जब वहां से उपेंद्र दत्त शुक्ला को उपचुनाव का प्रत्याशी बनाया गया था। वह इसलिए क्योंकि एक तो उपेंद्र शुक्ला गोरखनाथ मठ से बाहर के प्रत्याशी थे, दूसरा योगी आदित्यनाथ की पसंद के नहीं थे और तीसरा उनका ब्राह्मण होना था।
प्रधानसेवक का राजधर्म?
भारत के पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में वामपंथ को हराकर भाजपा को जीत हासिल किए महज 48 घंटे ही बीते थे कि दक्षिणपंथी संगठनों (भाजपा की टोपी पहने लोग) ने जेसीबी मशीन लगाकर लेनिन की मूर्ति को जमींदोज कर जीत का जश्न मनाया और दिखाने की कोशिश की कि वही हिटलर के असली वंशज हैं जो प्रतिमाओं को तोड़कर, किताबों को जलाकर, लेखकों को मारकर प्रतिस्पर्धी विचारों को खत्म कर देंगे।
न्यू इंडिया के सपने की हकीकत
न्यू इंडिया मतलब नया भारत। एक ऐसा भारत जहां कोई गरीब नहीं हो, कोई भूखा न हो, कोई अनपढ़ न हो, कोई बेरोजगार न हो, सर्वधर्मसम्भाव का मान हो, जय जवान-जय किसान का नारा बुलंद हो। जानकार मानते हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने जो वायदे देश की जनता से किए थे, अगर उसे भी पूरा करने में सरकार सफल रही तो खुद-ब-खुद नया भारत यानी न्यू इंडिया बन जाएगा।
सुशासन बाबू की यारी गजब की न्यारी
जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिन्हें प्यार से सुशासन बाबू भी कहा जाता है ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि अवसरवादी राजनीति से उनकी यारी गजब की न्यारी है। 12 साल में 6 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेना वाकई कमाल की बात है।
'नीतीश की जय' या 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि'
भाजपा द्वारा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को जब प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा की गई थी तो बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था, 'विनाश काले विपरीत बुद्धि'। आज जब नीतीश को लग रहा है कि नरेंद्र मोदी देश के सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री बन गए हैं तो उनके हर फैसले का समर्थन कर एनडीए में वापसी की राह देख रहे हैं। नीतीश जैसे राजनीतिक रूप से प्रतिबद्ध शख्स के लिए यह विनाशकाले विपरीत बुद्धि जैसा ही होगा।