अन्नदाता का दर्द और बेरहम प्रधान सेवक
गुलाम और आजाद भारत कई तरह के विरोध प्रदर्शनों का गवाह रहा है, लेकिन दिल्ली के जंतर मंतर, प्रधानमंत्री कार्यालय और प्रधानमंत्री आवास के बाहर अंतराल दर अंतराल ऐसा प्रदर्शन (तमिलनाडु के किसानों का आंदोलन) कभी नहीं देखा। गांधी के सत्य और अहिंसा से प्रेरित किसानों का एक महीने से अधिक समय से चला आ रहा विरोध प्रदर्शन यह जताने के लिए पर्याप्त है कि सूखा, कर्ज और बेकार की नीतियां देश के किसानों को किस तरह से लील रही हैं।
भाजपा के मंत्री क्यों मना रहे हैं मातम?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 403 विधानसभा सीटों में से एक भी सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया। चार चरण का चुनाव खत्म होने के बाद अचानक ऐसा क्या हो गया कि एक के बाद एक भाजपा नेता व मोदी सरकार के वरिष्ठ मंत्री पार्टी की इस गलती को कोस रहे हैं और मातम मनाने की भरपूर नौटंकी कर रहे हैं। राजनाथ सिंह, उमा भारती और मुख्तार अब्बास नकवी ने इस संदर्भ में पार्टी के फैसले क्षोभ व्यक्त किया है।
और अब 'बबुआ' का समाजवाद!
लगता है अब वो समय आ गया है जब बॉलीवुड उत्तर प्रदेश में वंशवाद की समाजवादी राजनीति पर एक फिल्म बनाए। फिल्म का नाम होना चाहिए 'बबुआ का समाजवाद' और उसका शीर्षक गीत (टाइटल सांग) जनवादी कवि गोरख पांडेय की समाजवाद के भटकाव पर लिखी कविता से शुरू होनी चाहिए- 'समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई...हाथी से आई, घोड़ा से आई...लाठी से आई, डंडा से आई...समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई...
मिशन-84 के तिकड़म में त्रिशंकु का तीर
असम में 126 विधानसभा सीटों के महासंग्राम में 'मिशन 84' का तीन तिकड़म अंतिम चरण में है। सत्ता पलट की गुंजाइश है, लेकिन परिवर्तन की आंधी नहीं दिख रही। अगर कोई चमत्कार न हो तो नि:संकोच यह कहा जा सकता है कि पिछली बार की तरह ही इस बार भी त्रिशंकु विधानसभा होगी।
बिहार चुनाव में भाजपा नीत एनडीए क्यों हारी?
बिहार चुनाव में महागठबंधन की भाजपा नीत एनडीए पर भारी जीत के साथ ही भाजपा के अंदर इस बात पर मंथन शुरू हो गया है कि जिस पार्टी में पीएम मोदी जैसा प्रखर वक्ता हो, अमित शाह जैसा रणनीति बनाने वाला चाणक्य हो और संघ कार्यकर्ताओं की फौज हो, उसकी इतनी बड़ी हार कैसे हो गई।
...ताकि 'आप' में भरोसा बना रहे
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए कहा था कि लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन है। लेकिन बदलते परिवेश में लोकतंत्र को फिर से परिभाषित करते हुए नेता का, नेता के लिए और नेता द्वारा शासन प्रणाली कहा जाए तो यह गलत नहीं होगा। नेताओं ने अपनी हनक के लिए लोकतंत्र को ‘नेता-तंत्र’ में बदल दिया है।
सवालों के घेरे में 66 साल का भारतीय गणतंत्र
गणतंत्र सिर्फ राजनीतिक ढांचा नहीं होता। गणतंत्र एक प्रक्रिया है जिसका आधार कानून की व्यवस्था है। और जब किसी गणतंत्र में कानून की व्यवस्था लुप्त हो जाए या लोगों के अधिकारों पर राजनीतिक नियंत्रण थोपा जाए तो उसके गणतंत्र कहलाने पर सवालिया निशान लग जाता है।
चुनौतियों के बीच राजा फड़णवीस की ताजपोशी
देवेंद्र फड़णवीस ने वानखेड़े स्टेडियम में महाराष्ट्र के 18वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेकर इतिहास रचा है। स्टेडियम में 30 हजार लोगों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उद्धव ठाकरे, लालकृष्ण आडवाणी की मौजूदगी में फड़नवीस ने जिस शाही अंदाज में शपथ ली वो किसी राजा के शपथ लेने जैसा ही था।
कांग्रेस की हार, कौन जिम्मेदार
आम चुनाव-2014 में कांग्रेस की बुरी पराजय क्यों हुई? पराजय के बाद पार्टी के अंदर से लगातार विरोधी आवाजें उठ रहीं हैं। ये आवाजें पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र के लिए बेहद अहम हैं, बशर्ते कांग्रेस हाईकमान अपना अभिमान त्याग कर इसपर ईमानदारी से आत्ममंथन करे।
'मैं जहां भी रहूं, तेरी याद तो आती है'
'मैं जहां भी रहूं, तेरी याद आती है', एक भारतीय के दिल में यह पंक्ति कूट-कूट कर भरी होती है। भले ही वह अपना शरीर लेकर किसी अन्य देश में बस गए हों, लेकिन आज भी उनका दिल भारत के लिए धड़कता है। प्रवासी भारतीय दिवस इन्हीं भावनाओं को जोड़ने का एक मौका होता है जिसकी शुरूआत 2003 में हुई थी।